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कौन कहता है आसमान में सुराग हो नहीं सकता…..कलेक्टर का प्रयास, प्रदेश सरकार का निर्णय लायेगा शिक्षा जगत में नई क्रांति @परितोष वर्मा

संदर्भ: जबलपुर का पुस्तक मेला

जबलपुर (जय लोक)। प्रदेश के इतिहास में प्रशासनिक स्तर पर उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों में से एक ऐतिहासिक कदम के रूप में जबलपुर में आयोजित किया गया पुस्तक मेला हमेशा याद किया जाएगा। यह भी याद किया जाएगा कि कैसे एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने अपनी अनुभवशीलता के आधार पर एक बड़ा निर्णय लिया और मात्र 10 दिन की परिकल्पना में पुस्तक मेले जैसा एक सप्ताह का आयोजन सफलतापूर्वक क्रियान्वित करके दिखाया। मेले की सफलता की गूंज राज्य सरकार के कानों तक भी पहुँची। शिक्षा माफिया के खिलाफ  प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ऐलानिया तौर पर कहा था कि हर जिले में उनके खिलाफ  कार्यवाही होगी। बहुत से जिलों में सिर्फ  कार्रवाई हुई और कुछ जिलों में इस समस्या को समाप्त करने के लिए इसकी जड़ यानी निजी स्कूल, प्रकाशकों और कॉपी किताब एवं सामग्री विके्रताओं की संगामित्ति को तोडऩे की दिशा में काम हुआ।
जबलपुर जिला इस कार्यवाही में पूरे प्रदेश में अग्रणी बन गया। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कलेक्टर दीपक सक्सेना ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पुस्तक मेले के आयोजन की परिकल्पना की। श्री सक्सेना कहते हैं कि वह यह मानते हैं कि इस वर्ष इस पुस्तक मेले का आयोजन शैक्षणिक सत्र के अनुसार विलंब से हो पाया। इस प्रकार के पुस्तक मेले मार्च माह में ही लग जाने चाहिए ताकि सही मायने में इसका लाभ बच्चों और उनके अभिभावकों तक पहुँच सके। लेकिन जब इस पुस्तक मेले की चर्चा शुरू हुई तो बहुत से लोगों ने नकारात्मक बिंदुओं को ही उठाया और कहा कि यह सिर्फ  लफ्फाज़ी भरी बातें हैं ऐसा कोई पुस्तक मेला अस्तित्व में नहीं आएगा। कलेक्टर दीपक सक्सेना ने एक कदम और आगे बढ़ाया और अपना ही मोबाइल नंबर सार्वजनिक कर अभिभावकों से सीधे शिकायतें आमंत्रित की। केवल तीन दिनों में ही 350 से अधिक शिकायतें कलेक्टर के पास पहुँची। इन शिकायतों के आधार पर 75 निजी स्कूलों के खिलाफ  प्रकरण दर्ज कर जाँच प्रारंभ की गई। अपर कलेक्टर श्रीमती मिशा सिंह ने कलेक्टर के निर्देशों के परिपालन में सभी पक्षों के बीच समन्वय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी और उनकी टीम को महत्वपूर्ण दायित्व देकर कार्यों आगे बढ़ाया गया। कलेक्टर दीपक सक्सेना की मंशा थी कि स्कूल की कॉपी किताबें, यूनिफॉर्म टाई, जूता, बस्ता, सभी वस्तुएं बच्चों को न्यूनतम दर पर उचित मूल्य पर उपलब्ध हो सकें। इनमें हो रही कालाबाजारी को रोका जा सके। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुस्तक मेले की परिकल्पना की गई जहां पर इन सभी वस्तुओं का उचित मूल्य पर विक्रय हो सके। जबलपुर में आयोजित हुआ मेला सफल रहा और एक दिन इसकी तारीख भी बढ़ानी पड़ी थी। अभिभावकों ने प्रशासन के इस निर्णय का स्वागत किया और भरपूर सहयोग दिया था। मेले की सफलता की खबर राज्य सरकार तक पहुँची तो सरकार ने जिला प्रशासन से इस मेले की पूरी रिपोर्ट तलब की। परिणामस्वरूप कल यह आदेश स्कूल शिक्षा विभाग मध्य प्रदेश शासन की उपसचिव मंजूषा विक्रांत राय के हस्ताक्षर से जारी हुए की प्रदेश के हर जिले में पुस्तक मेले का आयोजन किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों के अभिभावकों पर सामग्री क्रय करने की किसी प्रकार की बाध्यता ना हो और उचित मूल्य पर उन्हें शैक्षणिक सामग्री के साथ स्टेशनरी आदि का सामान भी उपलब्ध हो सके।  शिक्षा माफिया कि यह लूट पूरे देश और प्रदेश में कई सालों से चल रही है और साल दर साल इसमें इजाफा ही हो रहा है। हर वर्ग इससे पीडि़त है लेकिन आवाज उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई गई।
एक पत्थर तो उछालो यारो..
शिक्षा माफिया के खिलाफ  हर साल प्रशासनिक स्तर पर कार्यवाहियाँ हुई, कई कलेक्टर इस कार्यवाही के कार्यवाहक बने लेकिन माफिया की जड़ पर किसी ने प्रहार नहीं किया। पुस्तक मेला एक ऐसा अनूठा प्रयोग बना जिसमें प्रशासन की नजरबंद निगरानी में स्कूल भी शामिल हुए, विके्रता भी शामिल हुए, अभिभावक भी शामिल हुए और मोनोपॉली बनाकर किये जा रहे लूट के कृत्य को रोका गया। प्रशासनिक अधिकारी की सकारात्मक सोच और लक्ष्य निर्धारित कर किया गया कार्य कैसे पूरे प्रदेश में नजीर बनता है इसका उदाहरण पुस्तक मेला बना है। सामाजिक सुविधा के लिए शिक्षा माफिया के खिलाफ  10 दिन की परिकल्पना में लगाया गया पुस्तक मेला अगले 10 दिन के अंदर पूरे प्रदेश का पायलट प्रोजेक्ट बन गया। इस घटनाक्रम पर मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का यह शेर प्रयासों की सही सराहना करता है कि-

कौन कहता है आसमान में सुराग हो नहीं सकता…..
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो..

सामाजिक स्तर पर हो पुस्तक मेले का आयोजन
कलेक्टर दीपक सक्सेना की यह मंशा और प्रयास है कि अगले वर्ष से प्रशासनिक कैलेंडर का हिस्सा बन चुके इस पुस्तक मेले को सामाजिक मेले का स्वरूप प्राप्त हो। जैसे दिवाली के पहले पटाखों का मेला लगता है होली के पहले रंगों का मेला लगता है। इस प्रकार शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के पहले ही हर साल यह पुस्तक मेला लगे। स्कूलों को तय समय में अपने यहाँ लगने वाली किताबें, कॉपियों और ड्रेस आदि की जानकारी अनिवार्य रूप से सार्वजनिक करनी होगी। जिस पर विके्रताओं को उसकी जानकारी मिलेगी और वह समय पर इसकी तैयारी करेंगे। जब मेला लगेगा तो प्रतिस्पर्धा के कारण उचित और न्यूनतम मूल्य पर हर चीज अभिभावकों को उपलब्ध हो सकेगी। अभिभावकों, विके्रताओं, बच्चों को हर वर्ष इस मेले का इंतज़ार होना चाहिए, यह कदम हर मोनोपॉली और लूट की संगामिति को समाप्त कर देगा। शिक्षा जगत के लिए पुस्तक मेेले जैसे आयोजन की परिकल्पना को पूरे प्रदेश में साकार कराने वाले कलेक्टर दीपक सक्सेना को बहुत-बहुत बधाई…।
Jai Lok
Author: Jai Lok

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