जबलपुर (जयलोक)
विगत 2 दिनों से नगर निगम के सदन में जिस प्रकार से हंगामा, नारेबाजी, प्रदर्शन और आरोपों की झड़ी लग रही है उसके अनुपात में मेयर इन काउंसिल को जिस मजबूती से जवाब देते हुए तार्किक रूप से अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहिए, इस बात की कमी नजर आ रही है। इसके पीछे मुख्य रूप से दो बातें सामने आ रहीं है। पहली बात तो यह है कि मेयर इन काउंसिल में केवल पांच सदस्य शामिल है जो एमआईसी संख्या के आधे हैं। दूसरी बात यह सभी पांच सदस्य पहली बार के निर्वाचित पार्षद हैं और इन्हें सदन की कार्यवाही का पूर्व अनुभव नहीं है। स्थिति यह हो रही है कि विपक्ष पूरी तरीके से आक्रामक नजर आ रहा है। एमआईसी में वरिष्ठ पार्षदों को स्थान न मिलने के कारण महापौर को ही खुद मोर्चा संभालना पड़ रहा है।
सत्ता पक्ष के लिए मेयर इन काउंसिल का मजबूत होना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि अगर मेयर इन काउंसिल मजबूत नहीं होगी तो शहर विकास के मुद्दों पर ना तो योजनाबध्द तरीके से कार्य हो पाएगा और ना ही नगर निगम के प्रशासनिक तंत्र से उस मजबूती के साथ काम लिया जा सकेगा जिस मजबूती से लिया जाना चाहिए। नगर निगम की संसदीय परंपरा में यह देखा गया है कि महापौर को केवल विशेष अवसर पर और विशेष विषयों पर ही अपनी बात रखने के लिए के आसंदी के समक्ष खड़ा होना पड़ता था। विपक्ष के सवालों का और उठाए गए मुद्दों के संबंध में जो भी तार्किक जवाब होता था वह संबंधित मेयर इन काउंसिल के सदस्य और उस विभाग के प्रभारी द्वारा ही सदन में दिया जाता था। लेकिन वर्तमान में स्थितियां विपरीत नजर आ रही है।
मेयर इन काउंसिल के सदस्यों को नियुक्त करने के मामले में भारतीय जनता पार्टी की ओर से काफी समय लगा दिया गया है। महापौर जगत बहादुर सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो जाने के बाद नए समीकरण बनकर सामने आए इसके बाद आनन फानन में मेयर इन काउंसिल का गठन किया गया जिसमें केवल पांच सदस्यों को शामिल किया गया। मेयर इन काउंसिल में युवाओं को और पहली बार के पार्षदों को स्थान दिया गया इस बात को सकारात्मक रूप से प्रचारित भी किया गया, लेकिन अब कई महीने बीत जाने के बाद भी राजनीतिक छत्रपों की आपसी खींचतान के कारण अभी तक मेयर इन काउंसिल का विस्तार नहीं हो पाया है।
नवनिर्वाचित सांसद के साथ साथ नगर के विधायकों के द्वारा मेयर इन काउंसिल में बनाए जाने वाले जिन सदस्यों पर अंतिम मोहर लगेगी उन सदस्यों के नाम प्रस्तावित किए जाएंगे जिन पर अंतिम मोहर लगेगी। अभी तक कहा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव हो जाने के बाद तत्काल 10 दिन के अंदर मेयर इन काउंसिल के सदस्यों का चयन कर इसका विस्तार कर दिया जाएगा लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है। जिसका खामियाजा विगत 2 दिनों से नगर निगम सदन की बैठक में साफ नजर आ रहा है। विपक्ष कमजोर मेयर और काउंसिल का भरपूर फायदा उठा रहा है जिसके कारण पिछले 2 दिनों से विपक्ष के हर हमले का जवाब देने के लिए खुद महापौर को मुखर होना पड़ रहा है ऐसा नहीं है कि भाजपा के मौजूद वरिष्ठ पार्षद सदन में खामोशी से बैठे रहते हैं लेकिन उन्हें वह अधिकार क्षेत्र भी प्राप्त नहीं है कि वह उसे बुलंदी से सत्ता पक्ष की बातों को सदन में मजबूती के साथ रख पाए।