चैतन्य भट्ट
हाल ही में बनाए गए नए जिले ‘मऊगंज’ में पदस्थ अपर कलेक्टर राजेश कुमार ने तो सचमुच प्रदेश के तमाम रिश्वतखोरों की नाक कटवा के रख दी। जिस प्रदेश में पटवारियों, बाबुओं, छोटे मोटे अफसरों, इंजीनियरों के घरों से छापे के दौरान करोड़ों की संपत्ति मिलती हो उस प्रदेश में एक अपर कलेक्टर कुल जमा ‘बीस हजार’ रिश्वत ले रहा था और तो और वो भी किस्तों में और पकड़ा गया। कुछ तो सोचना था उसको, कुछ तो अपने पद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए था कि मैं अपर कलेक्टर हूं अरे लेना ही था दो-चार लाख रुपए मांगते , बीस हजार में मामला तय कर लिया और वो पैसा भी इंस्टॉलमेंट में। लगता है इसको ठीक-ठाक ट्रेनिंग मिली नहीं थी इसलिए बीस हजार में सौदा भी तय कर लिया और पाँच हजार की किश्त लेते हुए पकड़ा भी गया, और किसी से ना सही जबलपुर के एक तहसीलदार, पटवारी, कंप्यूटर ऑपरेटर और उसके भाइयों से थोड़ी बहुत सीख ले ली होती जिन्होंने एक ही झटके में 5 करोड़ की जमीन फर्जी वसीयत के आधार पर अपने नाम पर करवा ली और उसे दो करोड़ में बेच भी डाला । हिम्मत हो तो ऐसी, ये बात अलग है कि अब तहसीलदार साहब जेल की हवा खा रहे हैं और बाकी फरारी काट रहे हैं ,लेकिन इन अपर कलेक्टर साहब ने तो रिश्वतखोरों की बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिला दी। मात्र पाँच हजार लेते हुए भाई साहब को लोकायुक्त पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ भी लिया। अब वे ये भी नहीं कह सकते कि क्या करें भैया हमें ऊपर तक पैसा पंहुचाना पड़ता है। बीस हजार में किस-किस को हिस्सा दोगे इसका हिसाब भी तो नहीं बता पाओगे ना। क्या जलवा था अपर कलेक्टर साहब का ए सी चैंबर, ए सी बंगला ए सी गाड़ी, नौकर चाकर, दफ्तर के दरवाजे पर खड़ा अरदली, और बाहर खड़े प्रार्थी लोग, लेकिन कहते हैं ना लालच बुरी बला करें जितनी तनख्वा मिल रही थी वो क्या कम थी और फिर अगर रिश्वतखोरी करना भी थी तो जरा अपनी पोस्ट के स्टैंडर्ड के हिसाब से तो करते, इतना तो चपरासी और पटवारी भी नहीं लेते जितनी रिश्वत आपने ले ली। लगता है नया-नया जिला बना है अभी उतने काम हुजूर के पास आ नहीं रहे होंगे तो उन्होंने सोचा होगा जो मिल रहा है वही ले लो। ‘भागते भूत की लंगोटी’ ही सही थोड़ी बहुत तो ऊपरी कमाई हो रही है लेकिन क्या पता था कि रिश्वतखोरों की हाय उन्हें लगने वाली है कि वे रिश्वतखोरों की पूरी इज्जत मिट्टी में मिलाए दे रहे हैं उसी का खामियाजा अब उन्हें लंबे अरसे तक भोगना पड़ेगा। अपने को तो पता ये भी लगा है कि तमाम रिश्वतखोरों ने एक मीटिंग करके साफ-साफ ऐलान कर दिया है कि ऐसे फटियल और दो टके के रिश्वतखोरों की अपनी जमात में कोई जगह नहीं है यानी कुल मिलाकर अपर कलेक्टर साहब ना इधर के रहे ना उधर के।
अब जिला मनाने की माँग
पूरे प्रदेश में इन दोनों छोटी-छोटी तहसीलों, कस्बों को जिला बनाने की माँग की जा रही है। हाल ही में अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने बीना को जिला बनाने की घोषणा क्या की उधर पूर्व मुख्यमंत्री के खास रहे पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने अपना बिगुल बजा दिया कि नहीं पहले खुरई को जिला बनाया जाए जिसकी लंबे अरसे से कोशिश की जा रही है। इधर जबलपुर के पास सिहोरा, तहसील को जिला बनाने की माँग तो कई सालों से चल रही है और तो और अब सिहोरा से लगे हुए एक छोटे से कस्बे सलीमनाबाद ने भी जिला बनाने की आवाज बुलंद कर दी है इस चक्कर में बेचारा बीना पिस गया और मामला लटक गया। अरे भैया जिला बनना कोई आसान काम है क्या ? पूरी व्यवस्था करना पड़ती है कलेक्टर एसपी दुनिया भर के अधिकारियों को पोस्टेड करना पड़ता है वैसे ही तो अधिकारियों की मारामारी चल रही है और इतने जिले बना भी दिए तो उससे फायदा क्या होने वाला है पहले कटनी भी जबलपुर के अंतर्गत आता था बाद में कटनी जिला बन गया अब कटनी और जबलपुर के बीच में सिहोरा और सलीमनाबाद को भी जिला बनाने की बात शुरू हो गई है। कुछ दिन में ऐसा ना हो की चार मोहल्ले वाले इकठ्ठे होकर बोले कि हमें एक अलग जिले के रूप में घोषित कर दिया जाए। कल के दिन कोई गांव भी कहने लगेगा कि हमें भी जिला बना दिया जाए ,यानी जिला ना हुआ मजाक हो गया। ये बात सही है कि बड़े जिलों में व्यवस्थाएं अच्छी नहीं हो पाती दूर-दूर से लोगों को आना पड़ता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर 10 किलोमीटर पर एक जिला बन जाए लेकिन राजनीति तो है जो ना करे थोड़ा है, देखना तो ये भी होगा कि मुख्यमंत्री जी कितने जिले सैंक्शन करते हैं और कितने जिले बन पाते हैं क्योंकि अभी तो बीना में ही गाड़ी अटक गई है, एक तरफ कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में आई विधायक है तो दूसरी तरफ शिवराज सिंह के खास अपने जमाने में नंबर दो माने जाने वाले मंत्री भूपेंद्र सिंह है इनमें से जिले की जंग कौन जीतता है यह देखना भी बाकी है लेकिन एक बात हम बताए देते हैं कि अगर इन दोनों को जिला बनाने की स्वीकृति मिल गई तो फिर आप यह समझ लो कि मध्य प्रदेश में अभी वावन चौवन जिले जो है उनकी संख्या बढक़र सौ भी हो सकती है
अब डेटिंग के लिए छुट्टी
बैंकाक तो वैसे भी कई चीजों के लिए बहुत मशहूर है अब वहां कि सरकार ने प्रेमी प्रेमिकाओं को डेट पर जाने के लिए बाकायदा एक हफ्ते की छुट्टी देने की घोषणा कर दी है। जुलाई से लेकर दिसंबर तक जब मौसम बहुत रंगीन और दिलकश होता है उस दौरान डेट पर जाने वाले लोगों को बाकायदा एक हफ्ते का अवकाश दिया जाएगा, उसके पहले उन्हें नोटिस देना होगा कि वे डेट पर जाना चाहते हैं और फिर सरकार उन्हें बाकायदा डेट पर जाने के लिए सात दिन की छुट्टी दे देगी ताकि वे डेट पर जा सके इससे ज्यादा सुविधा और क्या चाहिए। यानी अब जो लोग छुप छुप के डेट पर जाते थे अब वे छाती ठोक कर डेटिंग पर जाएंगे जब सरकार की तरफ से छुट्टी मिली है तो फिर क्या है, अपने को तो लगता है कि अपने देश में भी डेट पर जाने वालों को थोड़ी बहुत सुविधा देना चाहिए ताकि जो प्रेमी जोड़े डेट पर जाना चाहते हैं उन्हें कुछ सुख सुविधा मिल सके।
अपनी तो डेटिंग पर जाने वाले लोगों से ये भी गुजारिश है कि वे सरकार से निवेदन करें कि जैसा बैंकॉक में हो रहा है वैसा इंडिया में भी होने लगे लेकिन अपने को ये भी मालूम है कि ये देश संस्कृति और सभ्यता वाला देश है यहां ये सब नौटंकी करना ठीक नहीं है। बैंकॉक की बात ही अलग है वहां तो बहुत सी चीजें हैं जिनका आनंद उठाने तमाम दुनिया के लोग बैंकॉक आते हैं
सुपरहिट ऑफ द वीक
‘मुझे हवाई अड्डे तक जाना है कितना पैसा लोगे’ श्रीमती जी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा
‘ढाई सौ रुपया’
‘और अगर मैं अपने पति को भी साथ ले लूं तो’
‘तब भी ढाई सौ रुपए ही लूंगा ’
श्रीमती जी ने श्रीमान जी की तरफ देखा और कहा ‘मैं तो पहले ही जानती थी कि तुम्हारी कीमत एक धेले की भी नहीं है।’