भोपाल (जयलोक)
लगातार रेत खनन से प्रदेश की नदियों का सीना छलनी होता जा रहा है। इसकी वजह से कई नदियों के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा होना शुरु हो गए हैं। इस स्थिति के चलते ही अब राज्य सरकार ने नदियों से निकाली जाने वाली रेत की जगह एम-सेंड (मैन्यूफेक्चर्ड सेंड यानी पत्थर से कृत्रिम तरीके से बनने वाली रेत) को बढ़ावा देने का फैसला किया है। इससे न केवल नदियों को नया जीवन मिल सकेगा, बल्कि रेत की कमी भी नहीं होगी। दरअसल, प्रदेश में हर साल करीब 125 लाख घन मीटर रेत की खपत होती है, जिसकी पूर्ति नदियों से की जाती है। इसमें बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन भी होता है। एम-सेंड सस्ती होने के साथ गुणवत्ता में भी अच्छी होती हैं। ऐसे में इस रेत की पर्याप्त उपलब्धता के लिए खनिज विभाग ने एम-सेंड पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार किया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में खनिज विभाग की समीक्षा के दौरान एम-सेंड को प्रोत्साहित करने के निर्देश भी दिए हैं। उन्होंने सभी जिलों में इसके प्लांट लगाने के लिए भी कहा है। खनिज के अवैध परिवहन की रोकथाम के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सहित आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग करने के लिए भी कहा गया है। इसके बाद खनिज विभाग ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। इसके लिए तैयार किए गए ड्राफ्ट में इसकी इकाइयां शुरू करने वालों को छूट और सुविधाएं देने के कई तरह के प्रावधान किए गए हैं। इस तरह की रेत का उपयोग फिलहाल कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान में बड़े पैमाने पर किया जाता है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा 2 करोड़ टन, तेलंगाना में 70 लाख टन, तमिलनाडु में 30 लाख टन, राजस्थान में 1 करोड़ 20 लाख टन एम-सेंड का सालाना उत्पादन हो रहा है। राजस्थान ने 2020 में पॉलिसी बनाई थी। एम-सेंड में मिट्टी और धूल नहीं होने के कारण सीमेंट से पकड़ मजबूत होती है। दाने एक जैसे होते हैं। इसके अलावा प्लास्टर और फ्लोरिंग के लिए काफी उपयोगी है।
नदियों में रेत-खनन से यह नुकसान
रेत खनन से नदियों का तंत्र प्रभावित होता है तथा इससे नदियों की खाद्य-श्रृंखला नष्ट होती है। रेत के खनन में इस्तेमाल होने वाले सैंड-पंपों के कारण नदी की जैव-विविधता पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा नदियों का प्रवाह-पथ प्रभावित होता है। इससे भू-कटाव बढऩे से भूस्खलन जैसी आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है। नदियों में रेत-खनन से निकटवर्ती क्षेत्रों का भू-जल स्तर बुरी तरह प्रभावित होता है। साथ ही भू-जल प्रदूषित होता है। प्राकृतिक रूप से पानी को शुद्ध करने में रेत की बड़ी भूमिका होती है।
यह होगा फायदा
पत्थर से बनाई गई बालू नमी नहीं होती है, जबकि नदी की रेत में नमी होती है जो कंक्रीट की मिक्स डिजाईन के मानक और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करती है।क्रश्ड सैंड कंक्रीट को उच्च स्थायित्व और शक्ति प्रदान करती है। इसकी संकुचन शक्ति अधिक होती है। इसमें सिल्ट नहीं होता है, जबकि नदी की रेत में सिल्ट पाया जाता है, जिसे वॉशिंग की जरूरत होती है। कृत्रिम रूप से नियंत्रित परिस्थितियों में तैयार किये जाने के कारण क्रश्ड सैंड में सभी समान आकार के कण होते हैं, जबकि नदी की रेत में असमान आकार के कण होते हैं, जिन्हें पृथक करना पड़ता है।
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