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माँ काली की प्रतिमा खंडित होने और फिर दर्शन चालू करने का हो रहा विरोध :आस्था की आड़ में धर्म से ना हो मजाक : पंकज पांडेय

कछपुरा में चंदा, चढ़ावे और मेले की कमाई धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ पर हावी

जबलपुर (जय लोक)
संस्कारधानी माँ दुर्गा के उपासना के 9 दिनों में धर्मधानी में तब्दील हो जाती है। लेकिन इस बीच में कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर आस्था से मजाक और खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है। इस बात का तीव्र विरोध होने लगा है और लोग खुलकर इस बात का विरोध कर रहे हैं कि धर्म के नाम पर, आस्था के नाम पर खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। धार्मिक आयोजनों के एक प्रमुख स्तंभ पूर्व पार्षद पंकज पांडेय ने कछपुरा में रखी गई महाकाली की प्रतिमा खंडित होने के बाद उसे पुन: सुधार कार्य कर दर्शन के लिए पंडाल चालू करने के क्रम की घोर निंदा की है। उन्होंने खुलकर इस बात के आरोप लगाए गए हैं कि कछपुरा में माँ महाकाली की प्रतिमा स्थापित करने का क्रम अभी 4-5 सालों से ही प्रारम्भ हुआ है।


यहाँ पर प्रतिमा स्थापना के साथ व्यवसायिक गतिविधियाँ अधिक की जाती हैं। इस बार नवरात्रि के बीच में ही सप्तमी या अष्टमी वाले दिन कछपुरा में माता महाकाली की प्रतिमा कमर के पास से खंडित होने की जानकारी सबको प्राप्त हुई। धर्म के जानकारों का कहना है की प्रतिमा खंडित होने के बाद उसकी रिपेयरिंग या उसमें सुधार कार्य करवा कर पूजन अर्चन नहीं किया जाता है जबकि ऐसी स्थिति में ईश्वरीय शक्ति से क्षमा याचना कर ऐसे वक्त में विसर्जन की प्रक्रिया की जाती है। लेकिन यहां पर समिति सदस्यों द्वारा दो दिन तक पट बंद करके यह बात फैला दी गई की विशेष मुहूर्त में विशेष जाप किया जा रहा है इसलिए दो दिन दर्शन बंद रहेंगे। इस बीच प्रतिमा को पुन: सुधार कार्य करवाकर फिर से दो दिन बाद दर्शन के लिए पंडाल चालू कर दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम को धार्मिक आस्था से खिलवाड़ बताया गया कई लोगों ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म में इस हरकत के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्ति की है।  यहां दर्शन करने गए कुछ श्रद्धालुओं ने बताया कि  यहां पर समिति के सदस्यों द्वारा प्रसाद आदि सामग्री फेंककर श्रद्धालुओं को दी जाती थी।  सैकड़ों-हजारों की संख्या में नारियल, चुनरी, साड़ी माला का अर्पण करने लोग यहां आते हैं।
यहां के कुछ वरिष्ठ जनों और जानकार लोगों ने यह भी बताया की प्रतिमा के पास ही बहुत तेज आवाज में डीजे बजाया जा रहा था। मां काली की प्रतिमा में जरूरत से अधिक मलाई भी अर्पण कर दी गई थी जिसे प्रतिमा पर लगातार वजन बढ़ रहा था।लोगों का कहना है कि डीजे का बेस भी इतना तेज बजाया जा रहा था कि आसपास के घरों की खिड़कियों के कांच भी चटक रहे थे। ऐसे में इन्ही कृत्यों के कारण ही मां की प्रतिमा खंडित हुई है। इस बात की भी घोर निंदा हो रही है कि समिति के सदस्यों ने व्यक्तिगत आकांक्षाओं और वहां चल रहे व्यवसायिक गतिविधियों को निरंतर जारी रखने के उद्देश्य से ही इस बात को सार्वजनिक होने से छुपाया की मां काली की प्रतिमा खंडित हो चुकी है। क्योंकि धार्मिक दृष्टि से प्रतिमा खंडित होने के बाद पूजन अर्चन कर उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है। लेकिन यहां श्रद्धालुओं को रिझाये रखने के उद्देश्य से यह क्रम जारी रखा गया। जो कि धर्म और आस्था की दृष्टि से पूर्ण रूप से गलत माना जा रहा है। नवरात्र में मां दुर्गा या मां काली की प्रतिमा की स्थापना केवल धर्म लाभ के उद्देश्य की जाना चाहिए ना कि चंदा चढ़ावा और वहां पर लगने वाली भीड़ से पैसे कमाने के लिए मेला भरना मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। माता महाकाली की विशेष पूजा अर्चन को वैसे भी आसान व सामान्य पूजन की श्रेणी से अलग माना गया है। बहुत ही विधि विधान और परंपराओं के साथ माता महाकाली की सेवा आराधना पूजन किया जाता है। सामान्य तौर पर इसे हर किसी के लिए संभव ही नहीं माना जाता।इसीलिए एक दौर था जब जबलपुर शहर में केवल कुछ स्थानों पर माता महाकाली की प्रतिमा स्थापित होती थी और पूरे विधि विधान और अनुष्ठान व पूजन क्रम के साथ उनकी उपासना की जाती थी। लेकिन अब जब लोगों ने यह देखा की माता महाकाली की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां आते हैं तो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ समितियों ने भीड़ जोडऩे के मकसद से माता महाकाली की प्रतिमा स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। लेकिन माता महाकाली की पूजा आराधना अनुष्ठान के लिए जो भी परंपरागत और पूजन का विधान होता है उसकी पूर्ति न होने पर इस प्रकार के घटनाक्रम सामने आते हैं।
कछपुरा में स्थापित की गई माता महाकाली के बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जो जानकारियां सामने आई हैं वह बहुत ही चौंकाने वाली और आस्था और धर्म को चोट पहुंचाने वाली है। शहर भर में दुर्गा पंडाल और माता महाकाली की प्रतिमा स्थापित करने वाले ऐसे आयोजकों और समिति सदस्यों को भविष्य के लिए इस बात से सीख लेना चाहिए कि आस्था की आड़ में धर्म से मजाक ना किया जाए और नवदुर्गा के पावन स्वरूप को आस्था से ही जोडक़र रखा जाए ना कि उसकी आड़ में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर चंदा चढ़ावा बटोरने के कार्य को प्राथमिकता दी जाए।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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