चैतन्य भट्ट
वैज्ञानिक शोधों में यह बात सामने आई है कि जब कोई किसी को गले लगाता है तो दोनों को ही बहुत फायदे होते हैं शोध बताते हैं कि गले लगाने से मूड अच्छा होता है, तनाव कम होता है, क्योंकि इससे ‘ऑक्सीटोसिन हार्मोन’ रिलीज होता है यह हार्मोन तनाव को काम करता है और आराम पहुंचता है। ये भी पता लगा है कि ब्लड सकुर्लेश को भी ये क्रिया ठीक करती है, याददाश्त में सुधार होता है, दिमाग शार्प हो जाता है। इतने सब गुण होने के बावजूद ‘न्यूजीलैंड सरकार’ ने हवाई अड्डे पर अपने दोस्तों, संबंधियों, रिश्तेदारों, और अपनी महबूबा को छोडऩे आए आशिकों समेत सभी लोगों के लिए एक बंदिश लगा दी है कि अगर एक दूसरे के गले लगना है तो जहां कारों की पार्किंग हो रही है वहां जाओ और कुल तीन मिनट के भीतर एक दूसरे से अलग हो जाओ। यानी कुल जमा आप तीन मिनट तक ही गले लग सकते हो या लगा सकते हो। ये बड़ा कंफ्यूजिंग है कि एक-एक आदमी को तीन-तीन मिनट का टाइम दिया गया है या पूरी फैमिली को तीन मिनट में अपने बेटे, बेटी या रिश्तेदार से गले मिलना होगा। पहली झंझट तो ये है कि गले लगना है या किसी को गले लगाना है तो दोनों को एयरपोर्ट से बाहर कार पार्किंग की जगह पहुंचना होगा फिर वहां तीन मिनट के भीतर एक दूसरे को गले लगाना होगा,अभी ये भी कंफर्म नहीं है कि वहां पर कोई अलार्म लगा रहेगा कि जैसे ही आपने किसी को गले लगाया घड़ी टिक, टिक, टिक करने लगेगी और जैसे ही तीन मिनट खत्म होंगे उसका अलार्म बज जाएगा, ना कहो अलार्म की जगह छोड़ो, छोड़ो, छोड़ो जैसी कोई जैसी कॉलर ट्यून भर दी जाए। अपने को तो समझ में नहीं आता कि न्यूजीलैंड सरकार को लोगों के आपस में गले मिलने से इतनी तकलीफ क्यों हो गई, गले लगाने और गले मिलने पर तो कितने गीतकारों ने न जाने कितने गीत भी लिख डाले हैं जो भारी मशहूर हुए हैं मसलन ‘मुझको अपने गले लगा ले ए मेरे हमराही’ या फिर ‘लग जा गले से फिर यह हंसी रात हो ना हो’ ‘ए जिंदगी गले लगा ले’ ‘आ लग जा गले दिलरुबा’ ‘आओ ना गले लगा लो ना’ और तो और एक फिल्म भी ‘आ लग जा गले’ बन चुकी है जिसमें शशि कपूर और शर्मिला टैगोर नायक नायिका थी। जब गले लगाने और लगने का इतना जलवा हो तो उस पर बंदिश लगाने का क्या औचित्य है गले लगाना तो प्रेम का एक भाव है, भाई बहन को गले लगा सकता है, मां बेटे को, बेटा-पिता को, आशिक और महबूबा के गले लगने की तो बात ही कुछ अलग है उनको तो जब तक कोई अलग ना करें वे गले लगे ही रहते हैं। अपनी तो न्यूजीलैंड सरकार से यही इल्तज़ा है कि ऐसे मामले में सरकारी दखल ठीक नहीं है जब गले लगाने के इतने फायदे हैं तो उसे रोक कर क्यों नागरिकों का नुकसान कर रहे हो, एक बार फिर सोचो और छूट दे दो कि जिसको जिसके गले लगना है लगता रहे, जितनी देर लगे रहना है उतनी देर लगा रहे इसी में आपका और गले लगने वालों का फायदा है।
कुछ मजा सा नहीं आ रहा – पिछले एक या दो महीने में प्लेन में बम रखने की झूठी अफवाहें लगातार बढ़ती जा रही हैं इस चक्कर में प्रोटोकॉल के तहत पूरी जांच पड़ताल के बाद ही प्लेन को उड़ाया जाता है जिसके कारण अक्सर यात्री भी परेशान होते हैं, कू्रमेंबर भी और एयरपोर्ट के अफसर भी, अभी तक ये पता नहीं लग पाया प्लेन में बम की धमकी कौन दे रहा है, कहां से दे रहा है, और क्यों दे रहा है लेकिन जिस गति से ये धमकियां लगातार आ रही है उसको देखते हुए दो-चार महीने बाद यदि धमकी ना आए तो यात्री भी कहने लगें ‘अरे यार क्या बात है धमकी नहीं आई कुछ मजा सा नहीं आ रहा यात्रा करने में’ क्योंकि अब उन्हें इसकी आदत पड़ गई है जब तक धमकी नहीं आती तब तक कुछ मजा सा नहीं आता। जैसे अगर ट्रेन सही टाइम पर स्टेशन पर पहुंच जाती है तो यात्री एकदम एकदम से भौंचक्का हो जाता है कि ये क्या हो गया, अपने को तो हमेशा से ट्रेन लेट है ये सुनने की आदत हो गई है और जब इसकी आदत पड़ जाती है तो फिर अचानक राइट टाइम पर ट्रेन आने से दिक्कत तो हो ही जाती है। ऐसा ही कुछ हाल प्लेन के यात्रियों का भी हो जाएगा जब तक उन्हें बम रखने की नकली और झूठी धमकी नहीं मिलेगी तब तक वे हवाई जहाज की यात्रा का आनंद नहीं उठा पाएंगे क्योंकि एक बार जिस चीज की आदत पड़ जाए और फिर वह ना हो तो घबराहट भी होने लगती है और उसकी याद भी आने लगती है, ऐसा ही कुछ प्लेन की यात्रियों के साथ भी होने वाला है। कई यात्री तो इसलिए भी अपनी फ्लाइट कैंसिल कर देंगे जब उन्हें पता लगेगा कि अभी तक कोई धमकी नहीं आई वे तब तक प्लेन में यात्रा नहीं करेंगे जब तक उन्हें ये पता नहीं चल जाएगा कि प्लेन में बम रखने की धमकी अब मिल चुकी है। अपने को तो समझ से बाहर है ये धमकी देने वाले आखिर है कौन? लगता है कि उन्हें भी नकली धमकी देने में कुछ मजा सा आने लगा है इसलिए जब चाहे तब फोन उठा कर प्लेन में बम की धमकी दे देते हैं।
काहे की गरीबी – लोग बात कहते हैं कि अपने देश में भारी गरीबी है देश की आधे से ज्यादा आबादी सरकारी अनाज पर निर्भर है लेकिन अपने को लगता है कि ये सब कहने की बातें हैं दूर-दूर तक गरीबी दिखाई नहीं देती, अब दिवाली के पहले ही देख लो अकेले जबलपुर जैसे मझौले कहे जाने वाले शहर में ही दो सौ करोड रुपए का धंधा पुष्य नक्षत्र में हो गया। अकेले सराफा बाजार में पचास करोड़ का लेनदेन हुआ, रियल स्टेट में साठ करोड़ का, गाड़ी घोड़ा खरीदने में सत्तर करोड़, इलेक्ट्रॉनिक सामान में बीस करोड़ का धंधा हो गया अब आप खुद बताओ कि जिस जबलपुर में ना कोई रोजगार के साधन है ना कोई उद्योग उसके बाद दो सौ करोड़ का धंधा अगर हो गया है तो इंदौर की तो बात ही छोड़ दो, भोपाल राजधानी है, ग्वालियर भी बड़ा शहर है और न जाने कितने छोटे मोटे और भी शहर है सब में जमकर खरीदारी हुई होगी और लोग कह रहे हैं कि देश में गरीबी है विशेष कर मध्य प्रदेश में।
इन आंकड़ों को देखकर कहीं से लगता है कि हम किसी गरीब प्रदेश में रह रहे हैं। दरअसल ये सब कहने की बातें हैं हर आदमी गाड़ी पर चल रहा है, होटलों में देखो तो पैर रखने की जगह नहीं है, बाजार में ऐसा जाम लगा है कि निकलना मुश्किल है, मिनी थियेटर में जिसमे दो सौ और तीन सौ रुपए की टिकट हो वो भी हाउसफुल जा रहे हैं। एक-एक गाड़ी की कीमत आठ और दस लाख से कम नहीं है मकान, प्लाट लाखों में बिक रहे और लोग बाग खरीद भी रहे और रोना ये कि बहुत गरीबी है देश में। अपने को तो लगता है कि यदि यही गरीबी है तो भगवान सबको ऐसा ही गरीब बनाए।
सुपरहिट ऑफ द वीक
श्रीमान जी एक गार्डन में बैठे थे इतने में पीछे से एक युवक की आवाज आई जो अपनी महबूबा से कह रहा था
‘तुम्हारी आंखों में मुझे सारी दुनिया दिखाई देती है डार्लिंगसी’
‘भाईसाहब हमारा कुत्ता खो गया है दिखे तो बता देना’ श्रीमान जी ने उससे कहा।