प्रधानमंत्री मोदी की स्वीकार्यता बुलंदी पर है जो भाजपा के उम्मीदवारों की नैया पार लगायेगी
सच्चिदानंद शेकटकर
लोकसभा के हो रहे चुनाव में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता दांव पर लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस की नेत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की तरह अपने दमखम पर चुनाव जिताने की क्षमता रखते हैं। यह पिछले दो चुनावों में साबित भी हो चुका है। 2014 के चुनाव में पहली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनकर उभरे तब पूरा चुनाव मोदी पर ही केंद्रित रहा। वहीं जब 2019 का चुनाव दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा तब भी उनकी लोकप्रियता ही चुनाव जीतने के काम में आयी। अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव होने जा रहा है तब एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता दांव पर लगी है। 2014 और 2019 की तुलना में इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी पर निर्भरता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। प्रधानमंत्री मोदी की स्वीकार्यता बुलंदी पर हैं जो भाजपा के उम्मीदवारों की नैया पार लगायेगी। इस बार तो भारतीय जनता पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र ही नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर दिया गया है और इस चुनावी घोषणा पत्र को मोदी की गारंटी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के 140 करोड़ लोगों को मोदी का परिवार बताते हैं तो उनकी इस बात पर भरोसा भी किया जा रहा है। क्योंकि मोदी का खुद का कोई परिवार नहीं है। भारतीय जनता पार्टी का इस बार का चुनाव पूरी तरह से मोदीमय हो गया है।
इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया
जब बात इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी की तुलना किए जाने को लेकर हो रही है तो यह जरूरी है कि पहले इंदिरा गांधी के बारे में भी कुछ चर्चा हो जाए। चार बार 1967 से 1977 और 1980 से 31 अक्टूबर 1984 में उनकी राजनीतिक हत्या होने तक श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहीं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्हें गूंगी गुडिय़ा का नाम दिया गया। इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू और पति फिरोज गांधी के सक्रिय राजनीति में होने के बाद भी श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने पति की 1960 में हुई मौत के 4 साल बाद ही राजनीति में कदम रखा। वह पहले सूचना और प्रसारण मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में बनी और वह लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद पहली महिला प्रधानमंत्री भी बनीं। इंदिरा गांधी ने भारत की राजनीति को इतना अधिक बदला की एक समय इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा भी कहा गया। श्रीमती इंदिरा गांधी ऐसी दृढ़ निश्चयी महिला थीं जो कांग्रेस की राजनीति को अपने आसपास ही केंद्रित रखती रहीं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकसभा के सारे चुनाव अपने चेहरे पर ही और अपने दमखम पर ही जीते। इंदिरा गांधी कड़े फैसले के लिए भी जानी जाती रही हैं। इंदिरा गांधी ने राजाओं के प्रिवी पर्स को खत्म किया, बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी किया। वहीं उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बांग्लादेश बनाने का अकल्पनीय कार्य करके दुनिया को चौंका दिया। वहीं खालिस्तान बनाने के आंदोलन को कुचलने के लिए इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सेना को भेजने में भी संकोच नहीं किया भले ही इस काम के लिए उनको अपनी जान भी देना पड़ी। श्रीमती इंदिरा गांधी कड़े राजनीतिक फैसलों के लिए भी जानी जाती रही हैं। उन्होंने कांग्रेस संगठन के अधिकृत राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी संजीव रेड्डी का विरोध किया और अपने प्रत्याशी वीवी गिरी को राष्ट्रपति का चुनाव लाड़वा कर उन्हें जितवा भी दिया। इतना ही नहीं श्रीमती इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को विभाजित भी करने में कोई संकोच नहीं किया और कांग्रेस आई बना ली। 19 महीने तक देश में आपातकाल लगाकर सारे विपक्षी नेताओं को जेल में बंद करने जैसा कठोर निर्णय लेने में भी इंदिरा गांधी पीछे नहीं रही। इंदिरा गांधी विश्व नेत्री बनीं और उन्हें आयरन लेडी भी कहा गया।
इंदिरा गांधी की तरह मोदी ने भी कड़े फैसले लिए
जिस तरह कांग्रेस नेत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में कई कड़े फैसले लिए जिनकी चर्चा आज भी होती है। इसी तरह आजादी के बाद जन्में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कड़े फैसले लेने वाले प्रधानमंत्री साबित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में धारा 370 को हटाने का ऐसा साहसिक कार्य किया, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने में भी अपना जौहर दिखाया। नरेंद्र मोदी ने काले धन को बाजार से निकालने के लिए नोटबंदी जैसा कड़ा फैसला भी लिया। वहीं एक देश एक टैक्स की परिकल्पना करते हुए नये जीएसटी टैक्स को लागू करने का फैसला भी उन्होंने किया। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसी त्रासदी से मुक्ति दिलाने में भी उन्होंने कड़ा फैसला लेकर मुस्लिम महिलाओं को राहत दिलायी। सबसे बड़ा काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 400 वर्षों से अधिक से विवादित राम मंदिर का नवनिर्माण कराने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां खुद राम मंदिर के निर्माण कार्य की आधारशिला रखी वहीं निर्माण कार्य पूर्ण कराकर इसका लोकार्पण भी इसी वर्ष 22 जनवरी को खुद किया। राम मंदिर के निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार लोकसभा का चुनाव अपने नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को लड़वा रहे हैं तब चुनावी परिदृश्य भी बहुत कुछ बदल चुका है। 10 वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के अकाली दल और शिवसेना जैसे सहयोगी अलग हुए वहीं और भी कई छोटे-छोटे दल अलग होते गए। इस बार के चुनाव में उड़ीसा का बीजू जनता दल भी भाजपा के साथ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार उड़ीसा में भाजपा की सरकार बनाने के लिए कमर कस ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर दिन चार-पाँच आम सभाएं और रोड शो कर रहे हैं। देश के अधिकांश राज्यों और प्रमुख लोकसभा क्षेत्र में पहुंचकर नरेंद्र मोदी ने कहीं जनसभाएं की तो कहीं रोड शो भी किए हैं इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत छोटी-छोटी जगह भी चुनाव प्रचार करने के लिए गए हैं। हमारे ही मध्य प्रदेश के बालाघाट, पिपरिया और दमोह जैसे छोटे स्थान पर भी प्रधानमंत्री ने खुद जाकर आम सभाएं की और भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान को मुकाम तक पहुंचाया है।
अबकी बार 400 पार
इंदिरा गांधी की तरह विश्व भर में लोकप्रिय बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार खुद यह नारा दिया है कि अबकी बार 400 पार। प्रधानमंत्री 370 सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में लाने के लिए संकल्पित नजर आ रहे हैं वहीं 30 से अधिक सीटें अपने सहयोगी दलों के खाते में लाने की उम्मीद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री 400 सीटें लाने के लिए यह तर्क दे रहे हैं कि कश्मीर से धारा 370 हटाने और राम मंदिर पर ताला लगवाने वाली ताकतें फिर से काबिज न हो सकें।
दक्षिण में अच्छी सफलता की उम्मीद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के सूखे वाले दक्षिणी राज्यों से इस बार भाजपा का सूखा मिटाने का विशेष रूप से प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने दक्षिणी राज्यों में भी अपनी सबसे ज्यादा ताकत लगाई हुई है इसलिए यह उम्मीद की जा रही है कि इस बार दक्षिण के राज्यों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दम पर भारतीय जनता पार्टी अच्छी सफलता हासिल कर सकती है। 2024 का लोकसभा चुनाव अब जब पूरी तरह से मोदीमय हो चुका है तब 4 जून को ही यह पता चल सकेगा की मोदी के दमखम पर भारतीय जनता पार्टी ने कितनी कामयाबी हासिल की है।