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ऋषि का श्राप भी वरदान होता है-ब्रह्मचारी श्री चैतन्यानंद

जबलपुर (जयलोक)।
जबलपुर (जयलोक)। श्रीमद्भागवत कथा अखरी चौक शताब्दीपुरम में तृतीय दिवस की कथा का वर्णन करते हुए ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी ने बताया कि भगवान् द्वारा उत्तरा के गर्भ की रक्षा की गई जिसके फलस्वरूप महाराज परीक्षित का जन्म हुआ। महाराज परीक्षित ने धर्मानुकूल शासन व्यवस्था को संचालित करते हुए धर्म की रक्षा की, कलियुग का निग्रह किया, तथा एक बार शिकार के समय एक ऋषि का अपमान मरा सर्प उनके गले में डालकर महाराज परीक्षित द्वारा किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ऋषि पुत्र ने उन्हें श्राप दिया कि जिसने यह कृत्य किया है उसकी आज के सातवें दिन तक्षक सर्प के काटने से मृत्यु होगी। इसके निदान में महाराज शुकदेव जी के दर्शन से श्रीमद्भागवत भागवत् का श्रवण उनके शापोद्धा का स्वरूप हुआ। डॉ.ब्रह्मचारी इंदुभवानंद जी महाराज ने बताया कि तक्षक-नाग-ही कालचक्र है, लोभ का स्वरूप ही हिरण्याक्ष है, लोभ में वास ही हिरण्यकशिपु है। महराज जी ने बताया कि प्रत्येक प्राणी की मृत्यु सात दिन में ही होनी है, अत: समय रहते प्रभु स्मरण करना चाहिए। व्यास पीठ का पूजन अचार्य राजेंद्र शास्त्री  श्यामनारायण चौबे, संतोष कुमार दुबे, आदित्य चौबे, प्रेम चौबे, जागेंद्र पीपरे, आशीष पूजा दुबे, मनोज सेन, तुलसी अवस्थी, विकास पांडे, रश्मि तिवारी आदि भक्त उपस्थित रहे।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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