चैतन्य भट्ट
जिसे देखो वहीं पुलिस को कोसता हुआ नजर आता है, हर इलाके में लगे जाम में फंसे लोग मन ही मन पुलिस को गालियाँ देते हैं कि ये पुलिस सिर्फ चालान तक ही अपने आप को सीमित रखी हुई है, यहां गाडिय़ां एक दूसरे पर चढ़ी जा रही हैं, एक-एक इंच खिसकने में जान पर बनी हुई है, जाम ऐसा है कि हिलते तक नहीं बन रहा लेकिन पुलिस को इन सब बातों से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन जब से अपने को यह पता लगा जाम सिर्फ अपने शहर में ही नहीं बल्कि यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, शिमला, नैनीताल, कुल्लू, मनाली, मसूरी यानी हर जगह लगा हुआ है तब अपनी आत्मा को शांति महसूस हुई कि जब पूरे देश में जाम लगा हुआ है तो अकेले जबलपुर की पुलिस ही क्यों गाली खाए। वैसे जाम से फायदे भी काफी हैं, अगल-बगल खड़े लोगों से दोस्ती भी हो जाती है क्योंकि वे भी पुलिस को गाली देते हैं और अपन भी और जब दो लोग एक से विचार वाले मिल जाते हैं तो उनमें दोस्ती होना स्वाभाविक है, जाम जब बहुत ज्यादा हो जाता है तो सामान बेचने वाले भी जाम में अपना सामान बेच के चार पैसे कमा लेते हैं क्योंकि जाम में फंसा आदमी सोचता है कि बाजार जाना तो मुश्किल है जो लेना है इसी से ले लो, शराबियों के लिए जाम सबसे महत्वपूर्ण है यदि जाम ना होगा तो फिर मदिरा हलक में किसके सहारे जाएगी। जाम से एक फायदा और है कि लोग स्पीड से नहीं चलते और जब स्पीड से नहीं चलते तो एक्सीडेंट होने का भी डर नहीं रहता सोचिए जब इतने फायदे हैं फिर भी पता नहीं क्यों लोग जाम से इतने परेशान और हलकान रहते हैं, और अब तो सुना है कि ‘माउंट एवरेस्ट’ की चोटी पर भी जाम लग गया है अखबार में एक फोटो छपी है जिसमें 200 लोग एवरेस्ट पर चढऩे की लाइन में लगे हुए जाम में फंसे हैं हाल ये है कि एवरेस्ट की चोटी पर एक मिनट से भी ज्यादा खड़े होने की इजाजत तक नहीं मिल रही है इधर एवरेस्ट भी सोच रहा है कि पता नहीं कौन से पाप किए थे जिसे देखो वही चढ़ा आ रहा है ना तेंन सिंह हिलेरी को अपने ऊपर चढऩे देते और ना आज ये दिन देखने पड़ते। उसी समय उनको धक्का देकर नीचे गिरा देते तो किसी की हिम्मत नहीं थी एवरेस्ट पर चढ़ जाते अब तो जिसको देखो, जिसको टाइम मिला वो ही एवरेस्टपर चढऩे की तैयारी करने लगता है, सरकार का क्या है उसको तो पैसा मिल रहा है लेकिन एवरेस्ट की लाई लुटी जा रही है बर्फ टूट टूट कर गिर रही है और एवरेस्ट बेचारा खून के आंसू रो रहा है। अभी लोग बाग चंद्रमा में भी जाने की कोशिश कर रहे हैं यानी अब वहां पर भी जाम लगने वाला है इसलिए आज से ‘विद्या माई’ की कसम खा लो कि कितने ही जाम में फंसे रहो ना तो पुलिस को गाली दोगे और ना ही जाम की कभी बुराई करोगे, क्योंकि जब हर तरफ जाम ही जाम हो तो फिर अपने जाम से ऐसा घबराना कैसा? जब भी जाम में फंस जाओ एक ही गाना गाओ ‘छलकाए जाम आइएआपकी आंखों के नाम’।
काहे की सीबीआई
अपने देश के लोगों को ‘सीबीआई’ पर बड़ा ही भरोसा था जब भी कोई लफड़ा धपड़ा होता था लोग बाग मांग करते थे कि मामले की जांच सीबीआई से करवाई जाए। कोर्ट में भी जब पिटीशन दायर होती थी और ये माना जाता था कि पुलिस या दूसरी एजेंसियां ठीक-ठाक काम नहीं कर रही तो कोर्ट भी जांच के लिए सीबीआई को आदेश देता था, लेकिन नर्सिंग कॉलेज घोटाले में सीबीआई के अफसरों ने जो खेल खेला उसके बाद समझ में आ गया कि सीबीआई से अच्छी तो अपनी पुलिस ही है थोड़ा बहुत पैसा लेती थी सीबीआई वाले तो लाखों रुपए डकार गए और ऐसे ऐसे कॉलेजों को स्वीकृति दे दी जिनमें न फैकल्टी है, ना कमरे हैं,ना बिल्डिंग है है तो बस रिश्वत का पैसा। अब सीबीआई वालों की जब से नाक कटी है तब से उधर के बड़े अधिकारियों ने दो-तीन इंस्पेक्टर को को सजा दे दी है और भी खोजबीन जारी है कि कौन-कौन इस खेल में शामिल थे। अपना मानना तो ये है कि अब सीबीआई वाले भी करें तो करें क्या? फ्री फोकट में कहां तक जांच करें, वैसे ही उनके ऊपर जांचों का बोझ है उस पर से और जांच पर जांच उनके सर पर मढ़ी जा रही हैं इसलिए उन अफसरों ने सोचा कि जब काम ही काम है तो चार पैसे भी कमा लिए जाए और ‘राहुल राज’ साहब ने ऐसी सेटिंग करी और सबको बराबर से पैसा बटने लगा। अब तो अपने को लगता है कि किसी भी मामले में सीबीआई जांच की मांग करना अपने आप को धोखा देने जैसा है क्योंकि सीबीआई की जो रेपुटेशन थी वो तो मिट्टी में मिल चुकी है। अभी तो सुना है कि इन्हीं महानुभाव ने व्यापम घोटाले की भी जांच की थी अब सुनते हैं फिर से वह मामला उखडऩे वाला है देखें उसमें और क्या-क्या नए-नए खेल खुलते हैं।
फिर वही पुराना राग
बरसों हो गए हमको ये सुनते-सुनते जो भी चीफ मिनिस्टर आता है वो यही कहता है कि कलेक्टरों को अपनी रातें गांव में गुजारना चाहिए ताकि वहां की परिस्थितियों से वे वाकिफ हो सकें,अब आप ही सोचो पचास हजार में एक व्यक्ति कलेक्टर बन पाता है तो वो क्या इसलिए बनता है कि रात में खटिया में सोए, मच्छरों से पूरा शरीर कटवाए, लोटा लेकर खेत जाए, जिनको एसी दफ्तर, एसी गाडिय़ों ए सी बंगलो की आदत हो वो भला गांव क्यों जाएंगे। अब मुख्यमंत्री साहब ने कलेक्टर को छोड़ पुलिस के अफसर को निर्देश दे दिया है कि वे रात में थानों का निरीक्षण करें। अब आप ही बताओ मुख्यमंत्री जी कौन सा अफसर है जो अपनी नींद खराब करेगा और दूर दराज के थानों में जाकर वहां सो रहे पुलिस वालों की भी नींद खराब करेगा। दिन भर तो वैसे ही पिरते रहते हैं पुलिस वाले, थोड़ा बहुत रात में आराम करने का मौका मिलता है उसमें भी आपको चैन नहीं, अब जब अफसर की नींद पूरी नहीं होगी तो चिड़चिड़ापन रहेगा और जब थाने में कर्मचारियों को खर्राटे लेते हुए देखेगा तो फिर उठापटक करेगा। काहे को ये सब कर रहे हो, जैसा चल रहा है चलने दो बहुत ज्यादा आप दम दोगे तो दो-चार बार अफसर लोग रात-बिरात थानों का निरीक्षण कर लेंगे और फिर वही सिस्टम शुरू हो जाएगा, बैठक करो, पीसी करो, वीडियो कांफ्रेंस करो और अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लो। जो ढर्रा बरसों से चल रहा है उसमें परिवर्तन लाने की कोशिश काहे के लिए कर रहे हो बेहतर तो यही है कि अफसर को भी आराम करने दो और थाने में तैनात पुलिसकर्मियों को भी। भगवान ने जब रात सोने के लिए बनाई है तो आप काहे के लिए उसमें डिस्टरबेंस करके लोगों को जगा रहे हो।
सुपर हिट ऑफ द वीक
‘जो भी व्यक्ति चोरी करता है वो बाद में बहुत पछताता है’ श्रीमानजी श्रीमती जी को समझा रहे थे
‘और शादी के पहले जो आपने मेरी नींदें चुराई, मेरा दिल चुराया उसका क्या’ श्रीमती जी ने रोमांटिक अंदाज में पूछा
‘इसलिए तो कह रहा हूं जो चोरी करता है वो बहुत पछताता है जैसे मैं’ श्रीमान जी ने उत्तर दिया।
खबरदार! जो किसी ने ‘जाम’ लगने की शिकायत की…
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