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टूट चुका है अब यह तालमेल का तार, राकेश सिंह की केंद्र से दूरी… कहीं भारी ना पड़े जबलपुर पर उठ रही चर्चा-हर निर्णय के अपने फायदे-अपना नुकसान

जबलपुर (जयलोक)। राजनीतिक क्षेत्र में लिए जाने वाला निर्णय सिक्के के दो पहलुओं की तरह अच्छा और बुरा परिणाम वाला होता है। जबलपुर की राजनीति में पिछले विधानसभा के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने कुछ बड़े निर्णय लिए। इन निर्णयों में से एक निर्णय यह भी था कि जबलपुर के लोकसभा क्षेत्र से 4 चुनाव जीत चुके यानी 20 साल तक केंद्र सरकार में जबलपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके तत्कालीन सांसद राकेश सिंह को जबलपुर की सबसे कठिन विधानसभा सीट मानी जा रही पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव लडऩे के  लिए मैदान में उतार दिया गया। इस विधानसभा चुनाव में राकेश सिंह ने 30000 मतों से जीत दर्ज की और वर्तमान में वे मध्य प्रदेश शासन के पीडब्ल्यूडी विभाग के कैबिनेट मंत्री है। अच्छी सोच और भविष्य की कार्य योजना आधारित राकेश सिंह की कार्यप्रणाली का लाभ उनके प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल हो जाने से पूरे मध्य प्रदेश सहित जबलपुर को मिलेगा लेकिन यह लाभ सिर्फ  सडक़ों, पुलों, फ्लाई ओवर से सम्बंधित और सीमित होगा। लेकिन पूरे जबलपुर के प्रतिनिधित्व के हिसाब से अगर देखा जाएं तो राकेश सिंह का सांसद ना रहना यह जबलपुर का नुकसान माना जा रहा है। विगत 20 सालों में जबलपुर के खाते में डुमना विमानतल के विकास, जबलपुर रेलवे स्टेशन के, मध्य प्रदेश के सबसे बड़े फ्लाई ओवर सहित 24 हजार करोड़ रुपए के विकास कार्य जबलपुर के खाते में उनके प्रयासों से आए हैं।
यह राकेश सिंह का जबलपुर के प्रति कोई एहसान नहीं है बल्कि जबलपुर के 17-18 लाख मतदाताओं द्वारा दी गई जिम्मेदारी का निर्वहन है। जबलपुर में स्थापित सुरक्षा निर्माणी और भारतीय सेना के कई कार्यालय और मुख्यालय होने के कारण डुमना विमानतल के विस्तार का सपना अधूरा ही बना हुआ था। इसको साकार करने में बतौर सांसद अपना फर्ज निभाते हुए राकेश सिंह ने देश के गृह मंत्रालय, सेना मुख्यालय, प्रदेश सरकार, जिला प्रशासन सभी के बीच एक सेतु बनाते हुए तालमेल बैठाया हर कदम आगे बढ़ाते हुए आज डुमना विमानतल इस मुकाम पर पहुँचा। अब बड़ी समस्या यह है कि जबलपुर के पास 450 सौ करोड़ का अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित डुमना विमानतल तो है लेकिन यहां से उडऩे वाली फ्लाइट नहीं है, दुर्भाग्य ऐसा है कि जो फ्लाइट थी वह भी बंद हो गईं हैं।
जबलपुर शहर में ना तो फ्लायर्स की कमी है ना ही जबलपुर से मुंबई, जबलपुर से दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, पुणे के लिए उड़ान भरने वाले यात्रियों की कमी है। लेकिन इसके बावजूद भी जबलपुर उड़ानों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के साथ सूने आसमान का मुंह ताक रहा है। बतौर सांसद जबलपुर के लिए राकेश सिंह का एक महत्वपूर्ण प्रयास यह भी था कि उन्होंने सबसे पहले डेक्कन एयरवेज, फिर स्पाइसजेट, इंडिगो आदि विमानन कंपनियों से उनके वरिष्ठ अधिकारियों से स्वयं मिलकर, उन्हें संतुष्ट कर, जबलपुर की यात्री उड़ानों से संबंधित हर जानकारी-आंकड़े उपलब्ध कराकर यह उड़ानेे प्रारंभ करवाई थी। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा है कि अब यह तालमेल का तार टूट चुका है।
पहले भी विमानन कंपनियों ने जबलपुर से अपनी उड़ानों को बंद किया था उस वक्त भी संसद के रूप में अपनी भूमिका अदा करते हुए जबलपुर की बात को हर महत्वपूर्ण प्लेटफार्म पर राकेश सिंह ने रखा और लड़ झगड़ कर संघर्ष कर कुछ उड़ानों को पुन: चालू करवा लिया था। 20 साल केंद्र की राजनीति करते करते राकेश सिंह की परिपक्वता का स्तर उस मुकाम तक पहुँच चुका है जहां उन्हें जबलपुर के विकास से संबंधित काम करने में अड़चनें नहीं आती थीं। पीएमओ, गृह मंत्रालय, रेल मंत्रालय से बेहतर संपर्क और संवाद के कारण जबलपुर के हिस्से में वो कुछ बड़ी उपलब्धि लाने में सफल रहे हैं।
वर्तमान में सबसे गर्म मामला डुमना विमानतल से नदारत हो चुकी उड़ानों का ही है। जबलपुर के साथ हो रहे इस अन्याय की ओर ध्यान सभी का जा रहा है लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना भी लाजमी है कि 20 सालों तक जबलपुर की आवाज केंद्र सरकार के कानों तक पहुँचाने और संबंधित विभागों के बीच में तालमेल बैठाकर जबलपुर के हक और विकास की बात करने का सिलसिला थम गया है।
भाजपा ने अपने मंच से राकेश सिंह की कार्यक्षमता को देखकर ही उन्हें केंद्र में जबलपुर की आवाज बनाकर भेजा था, भाजपा ने राकेश सिंह को लोकसभा का मुख्य सचेतक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी सौंपा था। अब भाजपा ने ही यह निर्णय लिया कि वह प्रदेश सरकार में मंत्रिमंडल में शामिल होकर काम करेंगे। लेकिन इन 20 साल में जो तालमेल स्थापित हुए जिनका लाभ भाजपा सरकार में जबलपुर को मिला उस तालमेल के तार टूट चुके हैं, इसलिए इस बात की चर्चा भी हो रही है की तत्कालीन सांसद राकेश सिंह की केंद्र सरकार से दूरी बनाने का निर्णय बड़ी संवादहीनता साबित हो रहा है और डुमना जैसे बदहाली को देखकर यह निर्णय जबलपुर पर भारी पड़ता भी नजर आ रहा है।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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