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पहली बार आक्रामक रणनीति से भाजपा ने छिंदवाड़ा में कमलनाथ के किले को ढहाया 1977 की जनता लहर और 2014 तथा 2019 की मोदी लहर भी रही बेअसर

संदर्भ :  छिंदवाड़ा में भाजपा की जीत
सच्चिदानंद शेकटकर, समूह संपादक

2024 के इस बार के लोकसभा चुनाव प्रदेश में एक और नया इतिहास रच गया। भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार कांग्रेस के गढ़ छिंदवाड़ा को छीन लिया है अभी तक छिंदवाड़ा कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है। 1977 में चली जनता लहर और 2014 तथा 2019 में चली मोदी लहर का असर भी छिंदवाड़ा में नहीं पड़ा और कांग्रेस यहां से चुनाव जीती। कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा आजादी के बाद से अभी तक सबसे मजबूत गढ़ रहा है। छिंदवाड़ा में एक बार सिर्फ  उपचुनाव में ही कांग्रेस को यहां हारना पड़ा। बाकी सारे चुनाव तो कांग्रेस ही जीतते आ रही है। छिंदवाड़ा कांग्रेस का ऐसा मजबूत गढ़ रहा है जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने लगातार 44 वर्ष तक इस लोकसभा क्षेत्र का 9 बार प्रतिनिधित्व करके एक नया कीर्तिमान भी रचा है। छिंदवाड़ा तो कमलनाथ के लिए ऐसा लोकसभा क्षेत्र रहा है जहां उन्होंने खुद भी चुनाव जीते और सांसद बने वहीं उनकी पत्नी श्रीमती अलका नाथ भी चुनाव जीत कर सांसद बनी और जब कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए तो उन्होंने अपना छिंदवाड़ा का लोकसभा क्षेत्र अपने बेटे नकुलनाथ को सौंप दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते। नकुल नाथ प्रदेश के इकलौते ऐसे कांग्रेसी रहे जो कि लोकसभा के सदस्य बने। लेकिन इस बार उनको भी हार का मुंह देखना पड़ा है।
भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार आक्रामक रणनीति छिंदवाड़ा में जीत के लिए बनाई। कांग्रेस के उम्मीदवार नकुलनाथ को इस बार हर हाल में हराने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने किसी तरह की कसर बाकी नहीं रखी। भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार गृहमंत्री अमित शाह ने खुद इस बार मध्य प्रदेश की इकलौती कांग्रेस की सीट को हर हाल में छीनने की रणनीति बनाई और भाजपा के दिग्गजों को छिंदवाड़ा में इस बार कमल खिलाने के काम में जिम्मेवारियां भी सौंप दीं। अमित शाह ने खुद छिंदवाड़ा में चुनाव प्रचार के लिए रोड शो किए वहीं रात को भी उन्होंने छिंदवाड़ा में रहकर ही चुनावी रणनीति को मुकाम तक पहुँचाया। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव  भी कई बार छिंदवाड़ा गये। मुख्यमंत्री ने हर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया। जनसभाएं की और रोड शो भी किया। मुख्यमंत्री की मेहनत भी छिंदवाड़ा में रंग लाई। वहीं प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश के मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रहलाद पटेल ने भी छिंदवाड़ा में जी जान से चुनाव प्रचार किया।  छिंदवाड़ा में सबसे अहम भूमिका तो प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने निभाई। वे लगातार तीन दिनों तक छिंदवाड़ा में रहकर चुनावी जमावट जमाते रहे। उन्होंने सबसे बड़ा काम भाजपा के नाराज नेताओं को मना कर चुनाव मैदान उतारने का किया। कैलाश विजय वर्गीय ने छिंदवाड़ा के विकास को लेकर छिंदवाड़ा वासियों को यह भी आश्वस्त किया कि वह खुद छिंदवाड़ा को गोद लेंगे।
कांग्रेसियों का तोड़ा गया जमकर मनोबल – भारतीय जनता पार्टी ने छिंदवाड़ा से जीत हासिल करने के लिए इस बार जमकर छिंदवाड़ा के कांग्रेसियों का मनोबल तोड़ा। चुन-चुन कर कांग्रेसियों को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गया। कांग्रेस की अमरवाड़ा के विधायक को तो भाजपा ने इस्तीफा दिलाकर पार्टी में शामिल कर लिया। इसके अलावा छिंदवाड़ा के और भी कई छोटे बड़े कांग्रेसी नेताओं को भाजपा में लगातार शामिल करके कांग्रेसियों का मनोबल जमकर तोड़ा गया।
कमलनाथ खुद कटघरे में रहे-  इस बार भारतीय जनता पार्टी ने पूरे प्रदेश में कांग्रेसियों का मनोबल तोडऩे के लिए सुनियोजित तरीके से हर दिन कांग्रेस के दिग्गजों को भाजपा में शामिल करने का अभियान छेड़ दिया। प्रदेश भाजपा के कार्यालय में लाइन लगाकर कांग्रेसी भाजपा में शामिल होते रहे। इसी बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ अपने सभी कार्यक्रम अचानक स्थगित करके दिल्ली चले गए। उनके दिल्ली जाते ही यह अटकलें लगने लगीं की यह दोनों भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं। इन अफवाहों का कमलनाथ में खुलकर खंडन नहीं किया और वह पत्रकारों को यही बताते रहे की कुछ होगा तो वह जरूर बताएंगे। लेकिन आखिरी समय तक कमलनाथ ने भाजपा में अपने शामिल होने की अटकलें को खुद खारिज नहीं किया। इस वजह से भी छिंदवाड़ा के कांग्रेसियों में उहापोह की स्थिति बनी रही जिसका असर भी कांग्रेस के चुनाव प्रचार पर पड़ा।
करिश्माई कमलनाथ – कमलनाथ वैसे तो मध्य प्रदेश के रहने वाले नहीं हैं वे कानपुर में जन्मे और बंगाल में कारोबार करते रहे। उन्हें श्रीमती इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं। 1980 में इंदिरा गांधी ने पहली बार कमलनाथ को छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया और वह खुद भी प्रचार करने आयीं। इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा बता कर मतदाताओं से उन्हें जिताने की अपील भी की। 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए हवालाकांड में कमल नाथ घिर गए थे तब उन्होंने इस्तीफा देकर छिंदवाड़ा से अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव लड़वाया था। वह चुनाव जीत भी गई थीं। कमलनाथ जब हवाला के मामले में आरोपों से मुक्त हुए तो उन्होंने अपनी पत्नी अलका नाथ से इस्तीफा भी दिलवा दिया। 1997 में छिंदवाड़ा में लोकसभा का चुनाव हुआ। भाजपा ने अपने दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा को कमलनाथ के खिलाफ  चुनाव लड़वा दिया और कमलनाथ पटवा से चुनाव हार गए। यह पहला चुनाव था जिसमें कमलनाथ को हार का मुंह देखना पड़ा। एक वर्ष बाद हुए चुनाव में उन्होंने अपनी वापसी की और 2014 तक संसद में छिंदवाड़ा का प्रतिनिधित्व करते रहे। 2019 में अपने बेटे नकुलनाथ को कमलनाथ ने उम्मीदवार बनवाकर चुनाव भी जितवा दिया। इस तरह से कमलनाथ और उनका परिवार छिंदवाड़ा से 11 बार लोकसभा का चुनाव जीत चुका है और यह पहला मौका है जब छिंदवाड़ा 44 वर्ष बाद कमलनाथ के प्रभाव से मुक्त हुआ है।
बंटी विवेक साहू ने रचा इतिहास- भाजपा के छिंदवाड़ा के नेता बंटी विवेक साहू ऐसे नेता हैं जो लगातार कमलनाथ से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। वहीं पिछला लोकसभा चुनाव बंटी साहू ने नकुलनाथ के खिलाफ लड़ा तथा विधानसभा चुनाव कमलनाथ के खिलाफ लड़ा था। इस बार फिर वे नकुलनाथ के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़े और कमलनाथ के किले को फतह कर लिया।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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