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फरार अपराधियों के मामले में साइबर और क्राइम सेल की नजर नहीं आ रही ‘उल्लेखनीय भूमिका’

इनाम पर इनाम बढ़ रहा, पकड़ में नहीं आ रहे इनामी अपराधी
जबलपुर (जयलोक)। कुछ पाव शराब और छोटे अपराधियों, छोटे जुआं सट्टा पकडऩे पर क्राइम ब्रांच और साइबर सेल की उल्लेखनीय भूमिका का उल्लेख हर प्रेस विज्ञप्ति में किया जाता है। लेकिन सालों से फरार चल रहे आरोपियों पर इनाम पर इनाम बढ़ता जा रहा है लेकिन साइबर और क्राइम ब्रांच की उल्लेखनीय भूमिका इस मामले में कहीं नजर नहीं आ रही है।
फरार और इनामी अपराधी 500 रुपयों के भी है और 33000 रुपयों के भी। लेकिन पुलिस की कार्यप्रणाली में इनको पकडऩे का अलग ही सिस्टम चल रहा है। अपराधियों की फरारी के दौरान पुलिस अधीक्षक से लेकर जबलपुर रेंज के पुलिस महानिदेशक ने इनके ऊपर इनाम घोषित किए हैं। मजे की बात ये है कि छोटे अपराधियों को पकडऩे के बाद साइबर सेल और क्राइम ब्रांच की उल्लेखनीय भूमिका का जिक्र पुलिस की विज्ञप्ति में होता है। दूसरी ओर गंभीर अपराध में फरार चल रहे, सालों से पुलिस को चकमा दे रहे रसूखदार इनामी फरार आरोपियों के संबंध में साइबर सेल और क्राइम ब्रांच की उल्लेखनीय भूमिका नजर नहीं आती है। जबलपुर पुलिस अधीक्षक अपनी निष्पक्ष कार्यप्रणाली के लिए जाने पहचाने जाते हैं। वे सामान्य पुलिसिंग में राजनीतिक दखलअंदाजी को भी बहुत महत्व नहीं देते। लेकिन अफसोस जिस प्रकार की पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह की कार्यप्रणाली है, उस प्रकार की कार्य करने वाली टीम निर्मित नहीं हो पा रही है। इसकी एक मुख्य वजह नजर आती है।
साइबर सेल और क्राइम ब्रांच में वर्षों से जमे बैठे पुराने लोग हर प्रकार का खेल खेलने में सक्षम है। कौनसी जानकारी और कितनी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचना है यह इनके द्वारा ही तय कर लिया जाता है।
जबलपुर संभाग के 2-3 जिलों में अपराध के मामलों में फरार चल रहे सजायाफ्ता आरोपी अमित खंपारिया के मामले में अभी तक ना तो साइबर सेल और ना ही क्राइम ब्रांच अपनी मौजूदगी का एहसास कर पाई है और ऐसे ही कटनी जिले में चर्चित फरार चल रहे अपराधी किस्सू तिवारी, दोहरी हत्याकांड के इनामी आरोपी प्रेमी मुकुल सिंह नाबालिग प्रेमिका एवं अन्य इनामी अपराधी लगातार पुलिस की गिरफ्तार से दूर बने हुए हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि इनके खिलाफ  दर्ज आपराधिक मामलों में ना तो कोई कार्यवाही आगे बढ़ रही है, नहीं न्यायालय प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, केवल इनाम पर इनाम बढ़ता जा रहा है और यह फरार अपराधी पकड़ में नहीं आ रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल तो पुलिस के मुखबिर तंत्र और अलग से गठित की गई साइबर सेल, क्राइम ब्रांच जैसी यूनिट पर खड़ा हो जाता है। सामान्य अपराधी को पकडऩे के लिए तो थाने का बल अपना काम करता रहता है। साइबर सेल, क्राइम ब्रांच जैसी शाखों का गठन ही इसीलिए किया जाता है कि जो अपराधी सामान्य अपराधियों से अधिक शातिर होते हैं उनसे निपटने के लिए यह विशेष शाखाएं या दस्ते गठित किए जाते हैं। लेकिन आज तक इन दोनों दस्तों की कोई खास उपलब्धि दर्ज नहीं है।
जबलपुर में ही फरार इनामी अपराधियों की लंबी सूची है। इनामी अपराधी हो जाने के बाद यह सूची सार्वजनिक हो जाती है क्योंकि पुलिस द्वारा इनाम घोषित करना एक सार्वजनिक घोषणा है। लेकिन इस घोषणा को सार्वजनिक कहना सबसे बड़ा रहस्य है। जबलपुर में कितने इनामी अपराधी हैं, कितने साल से फरार चल आ रहे हैं, कितनी रकम उनके ऊपर इनाम के रूप में घोषित की गई है, इस बात की जानकारी देने में हर अधिकारी पीछे हट जाता है।
वर्षों से एक ही जगह जमें हैं लोग
बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस बात को सार्वजनिक रूप से कहा जा चुका है उसे बताने में परेशानी हो रही है। जबलपुर पुलिस के एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को साइबर क्राइम और क्राइम ब्रांच की कमान सौपीं गई है। इन अधिकारी का दावा हैं कि उन्होंने जबलपुर में इतना समय बिताया है कि वह गली कूचे के अपराधियों की हर गैंग को पहचानते हैं। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के इसे झांसे में आकर शायद पुलिस अधीक्षक यह नहीं देख पा रहे कि जो कर्मचारी साइबर सेल और क्राइम ब्रांच में पदस्थ है वह कितने पुराने हो चुके हैं। ये अपनी मोनोपॉली चला रहे हैं। इनमें से कई नगर के अपराधियों के साथ मोटी कमाई करने की कड़ी स्थापित कर चुके हैं।
अपराध जगत के सक्रिय सूत्र यह बताते हैं कि जबलपुर से रोजाना लाखों करोड़ों रुपए के हवाला की राशि का पैसा इधर से उधर होता है। छोटे ट्रकों से शराब नर्मदा के पाँच किलोमीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में महंगे दामों पर बिक रही है। सट्टे का कारोबार दुबई में बैठे लोग जबलपुर में संचालित कर रहे हैं। कहीं बड़े सटोरिये रेस्टोरेंट, कपड़ा दुकान, होटल की आड़ में यह अवैध कारोबार कर रहे हैं। यह सब जानकारी साइबर और क्राइम ब्रांच के लोगों को है लेकिन पदस्थापना पुरानी होने के साथ-साथ याराना भी पुराना हो चुका है। आईजी, डीआईजी, पुलिस अधीक्षक अल्प समय की पदस्थापना पर जिले में आते हैं। वर्षों से जमें लोगों को इन्हें घुमाए रखना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और इसी बात का मोटा मेहनताना भी प्राप्त हो ही जाता है। क्राइम ब्रांच और साइबर सेल के बहुत से ऐसे कर्मचारी हैं जो अब चार-पाँच साल की पदस्थापना के बाद खुद के रेस्टोरेंट, बार, होटल प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से चला रहे हैं। मेकला रिसोर्ट में हुई एक हत्या के बाद से यह बिंदु चर्चा में आया था लेकिन इस पर कार्यवाही करने की जरूर किसी ने नहीं समझी। पैसे वालों से दोस्ती अपराधियों को डरा कर वसूली करने वालों ने यह तय कर लिया है कि उन्हें पुलिस विभाग से गद्दारी करके ही चलना है।
नए ऊर्जावान लोगों को मिलना चाहिये अवसर
समय तो यह कहता है कि साइबर सेल और क्राइम ब्रांच में वर्षों से पदस्थ लोगों को बदलने की बहुत ही सख्त आवश्यकता है। नई उम्र के सक्रिय और समर्पित पुलिस कर्मियों अधिकारियों को इन दोनों महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी मिलना आवश्यक है। उनकी लगन और कुछ कर दिखाने का जज्बा जबलपुर के अपराध जगत पर नकेल कसने में कामयाब हो सकता है। यह बात यकीन करने योग्य नहीं है कि जो फरार अपराधी पुलिस की नाक पर बैठे हैं इनाम घोषित होने के बाद भी उनकी जानकारी पुलिस के अधिकारियों और कर्मचारियों के पास ना हो। जानकारियां पूरी है लेकिन जेब का वजन और राजनीतिक दबाव अपना काम कर रहा है। पुलिस अधीक्षक चाहें तो तत्काल बड़े बदलाव करके इन दोनों विभागों को बेहतर ढंग से सक्रिय कर सकते हैं और नई टीम की सक्रियता से बेहतर परिणाम भी सामने आ सकते हैं। जो जबलपुर पुलिस की धूमिल होती छवि को सुधारने में सहायक होगी।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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