जो नेता आंदोलन करता था उसी के नाम पर
यूनियन बन जाती थी
मुंबई से बर्खास्त होकर आये के.जी.कुलकर्णी बने श्रमिक
संगठनों के जनक
(जय लोक)। दुनिया के मजदूरों के लिये मई दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इसी दिन नारा लगता है दुनिया के मजदूरों एक हो। जबलपुर में मई दिवस मनाने की शुरुआत 1937 में हुई। आजादी के बहुत पहले से ही जबलपुर शहर में भी श्रमिक आंदोलनों की शुुरुआत हो चुकी थी। अंग्रेजों की हुकूमत ने 1926 में ट्रेड यूनियन एक्ट पारित किया गया जो आज भी लागू है। 1926 के पूर्व यूनियन गठित करने का मजदूरों को अधिकार नहीं था। तब यह होता था कि जो भी नेता आंदोलन की अगुवाई करता था, उसके नाम की यूनियन बन जाया करती थी।
श्रमिक आंदोलन की चर्चा करने के पहले यह जानलेना जरूरी है कि हमारे जबलपुर में कल-कारखानों की शुरुआत आखिर कब हुई। इतिहास में दर्ज जानकारियों के मुताबिक जबलपुर में सबसे पहले 1889 में ब्रिटिश फर्म बर्न एंड कंपनी की स्थापना हुई। यह कंपनी फायर ब्रिक्स,टाइल्स और चीनी मिट्टी के घड़े बनाने का काम करती थी। यह कंपनी बिजली उत्पादन भी करने लगी। वहीं 1904 में गन कैरिज फैक्ट्री (जी.सी.एफ.) की स्थापना अंग्रेज सरकार ने की। वहीं 1905 में राजा गोकुलदास परिवार ने ग्वारीघाट रोड पर परफेक्ट पाटरी की स्थापना की।
जबलपुर में पहला श्रमिक आंदोलन तब हुआ जब 1921 के फरवरी माह में जी.सी.एफ. में श्रमिकों की वेतनवृद्धि की माँग को लेकर 43 दिनों तक श्रमिक नेता स्व.लेखराज शर्मा के नेतृत्व में हड़ताल चली। पहली बार श्रमिकों की लड़ाई लड़ी गयी और स्व.शर्मा जबलपुर में श्रम आंदोलन के जनक के रूप में उभरे। जी.सी.एफ.में पहली बार यूनियन का गठन हुआ जिसका नाम लेखराज शर्मा यूनियन रखा गया।
सबसे पहले बना मेहतर कर्मचारी संघ
बंबई के श्रमिक नेता के.जी.कुलकर्णी 1930 में रेलवे की हड़ताल में भाग लेने के कारण नौकरी से निकाल दिये गये। कुलकर्णी 1937 में जबलपुर आ गये तथा उन्होंने स्थायी रूप से बस कर जबलपुर में मजदूरों को संगठित करने की शुरुआत की।
के.जी.कुलकर्णी की प्रेरणा से शहर में सबसे पहले 1937 में सबसे पहला रजिस्टर्ड मेहतर कर्मचारी संघ बना। इसको बनाने में बद्रीनाथ गुप्ता, गणेश प्रसाद, नायक भी शामिल थे।
के.जी.कुलकर्णी ने श्रमिक संगठनों की झड़ी लगा दी
के.जी.कुलकर्णी ने शहर में श्रमिक संगठनों की स्थापना की झड़ी लगा दी। उन्हीं के प्रयासों से रेलवे में मजदूर संगठन बना। स्व.कुलकर्णी ने बर्न एंड कंपनी, जी.बी.मिल, बीड़ी वर्कर , म्युनिसिपिल कर्मचारी, बिजली कर्मचारी, शिक्षक संघ, ग्लास फैक्ट्री, परफेक्ट पाटरी, हाथ करघासंघ, रिक्शा ठेला एवं तांगा यूनियनों का गठन किया। प्रांतीय ट्रेड यूनियन एक्ट में बर्न कंपनी यूनियन सबसे पहले पंजीकृत हुई।
जबलपुर के पहले केन्द्रीय सुरक्षा संस्थान जी.सी.एफ. में ही मजदूर कार्यरत रहे। बाद में 1945 में आयुध निर्माणी खमरिया, 506 आर्मी बेस वर्कशॉप तथा केन्द्रीय आयुध भंडार (सीओडी) की स्थापना के बाद जबलपुर में 40 हजार श्रमिकों की एक बड़ी संख्या हो गयी तथा इन श्रमिकों के श्रमिक संगठनों की गतिविधियों ने निरंतर विस्तार पाया।
शहर में लगातार श्रमिक आंदोलनों ने गति पकड़ी तथा श्रमिक हितों की लड़ाई संगठित रूप से लड़ी जाने लगी। हड़तालों का दौर भी लगातार बढ़ता गया।
राजनैतिक विचारधारा पर बने श्रमिक संगठन
शहर में राजनैतिक विचारधारा के आधार पर श्रमिक संगठनों के गठन की भी श्रृंखला चल पड़ी। कांग्रेस, साम्यवादी, समाजवादी और बाद में आर.एस.एस. की मूजदूर शाखा भारतीय मजदूर संघ की भी कई संस्थानों में यूनियनें गठित की गयीं। अलग-अलग झण्डों के नीचे शहर में श्रमिक संगठन लगातार सक्रिय हो रहे हैं। शहर के संस्थानों विशेषकर केन्द्रीय संस्थानों में सबसे ज्यादा मजबूत संगठन कम्युनिस्ट पार्टी के ही शुरू से हैं जो लाल झण्डा यूनियन के नाम से जाने जाते हंै।
शहर में श्रमिक नेताओं के नामों की लंबी फेहरिस्त है। आर्थर फिलीमोन तथा स्व. भागचंद जैन श्रमिक गतिविधियां चलाने के कारण ही नौकरी से निकाले गये। सृष्टिधर मुकर्जी, लक्ष्मी नारायण मल्होत्रा, पी.के.ठाकुर, स्व.महेन्द्र वाजपेयी, सदाशिवन नायर आदि साम्यवादी श्रमिक संगठनों को मजबूत करते रहे। वहीं स्व.गिरिजा नंदन दुबे तथा स्व.डी.पी.पाठक ने कांग्रेसी विचारधारा के संगठन को मजबूत किया।
मई दिवस पर शहर के सभी सुरक्षा संस्थानों में बड़े आयोजन तथा रैलियों के आयोजनों की जो शुरुआत 1937 से हुई वह लगातार जारी है। मई दिवस पर सभी श्रमिक भाईयों को बधाई…।
लोकमान्य तिलक का योगदान
जबलपुर में श्रम आंदोलन को विस्तार देने में लोकमान्य तिलक ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मजदूर आंदोलन का स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा मानने वाले लोकमान्य तिलक 1914 से लेकर 1920 तक की अवधि में जबलपुर आये। तिलक की प्रेरणा से ही आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई। जबलपुर में लेखराज शर्मा ने तिलक की यूनियन के गठन में अहम भूमिका निभायी। जबलपुर में तिलक के अनुयायी वरिष्ठ वकील नाथूराम मोदी तथा बैरिस्टर ज्ञानचंद वर्मा ने जी.सी.एफ. में श्रमिक हड़ताल के दौरान लेखराज शर्मा को कानूनी तथा अन्य जरूरी मदद भी की। 1926 में ट्रेड यूनियन एक्ट लागू हुआ।