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स्वामी करपात्रीजी और स्वामी स्वरूपानंदजी की रामराज्य परिषद पहले ही चुनाव में तीन सीटों पर जीत गयी

सच्चिदानंद शेकटकर
1 जून को मतदान के बाद लोकसभा के चुनाव के सातवां चरण का मतदान पूर्ण हो जाएगा। इस बार के चुनाव में हिंदू और मुस्लिम भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है। यह चुनावी मुद्दा विपक्षी दलों की कुछ राज्य सरकारों द्वारा मुसलमानों को दिए गए आरक्षण की वजह से बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे चुनाव प्रचार में प्राय: हर दिन यह कहते आए हैं कि वह अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का जो प्रावधान है उसमें कटौती करके मुसलमानों को आरक्षण देना कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। मोदी यह भी कहते हैं कि वह अपने जीते जी मुसलमानों को आरक्षण नहीं मिलने देंगे। गृहमंत्री अमित शाह कह रहे हैं कि जिन राज्यों ने मुसलमानों को आरक्षण दिया है उसे समाप्त कराया जाएगा। विपक्षी दल विशेष कर राहुल गांधी यह आरोप लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव को हिंदू मुस्लिम बना दिया है।
लेकिन हिंदू मुस्लिम की बात की जाए तो शुरू से ही भारतीय राजनीति  हिंदू और मुस्लिम केंद्रित रही है। यदि हिंदुओं के लिए हिंदू महासभा जैसे राजनीतिक दल का गठन किया गया। वहीं राम राज्य परिषद के नाम से  हिंदुओं का एक और राजनीतिक दल गठित किया गया। हिंदू कोड बिल के विरोध में हिंदू महासभा और राम राज्य परिषद दोनों ही हिंदू पार्टियां अपनी पहचान बन चुकी थी। वहीं मुसलमानों के लिए मुस्लिम लीग के नाम से राजनीतिक दल बनाया गया। यह  दल 1952 में हुए लोकसभा के पहले चुनाव में मैदान में उतरे और पहले चुनाव से ही भारतीय राजनीति हिंदू और मुसलमानों पर केंद्रित होती आ रही है। इस बार कांग्रेस ने लोकसभा के चुनाव के लिए अपना जो घोषणा पत्र बनाया उस घोषणा पत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र बता रहे हैं।
यदि 1952 में हुए पहले आम चुनाव की बात की जाए तो इस चुनाव में हिंदूवादी भारतीय जनसंघ को तीन सीटें, हिंदू महासभा को चार सीटें और राम राज्य परिषद को तीन सीटें पहली बार मिली थीं।
रामराज्य परिषद की स्थापना
1948 में रामनवमी के दिन धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ने राम राज्य परिषद की स्थापना की थी। उन्होंने युवा संन्यासी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को राम राज्य परिषद का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। स्वामी करपात्री जी हिंदुओं के बीच देशभर में लोकप्रिय संत रहे। आजादी के बाद देश में हिंदू राज्य की स्थापना के लिए ही करपात्री जी ने राम राज्य परिषद का गठन किया। अखिल भारतीय रामराज्य परिषद ने देश में राम राज्य की स्थापना, हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया। स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने राम राज्य परिषद के अध्यक्ष के पद की कमान संभाली और करपात्री जी के साथ मिलकर देशभर में अपने राजनीतिक दल का विस्तार करने के लिए निकल पड़े। कुछ ही समय में स्वामी करपात्री जी और स्वरूपानंद जी की रामराज्य परिषद एक हिंदू पार्टी के रूप में अपनी पहचान बन चुकी थी। पार्टी का चुनाव चिन्ह ऊगता सूर्य रहा। करपात्री जी और स्वरूपानंद जी जहां भी जनसभाएं करते तो वहां उनको सुनने के लिए भारी भीड़ जमा हो जाया करती थी। स्वामी करपात्री जी और स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने सन 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में राम राज्य परिषद के प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। 1952 पहली बार राम राज्य परिषद के तीन सांसद निर्वाचित हुए। वहीं राम राज्य परिषद की ओर से राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी राम राज्य परिषद के उम्मीदवार उतारे गए। रामराज्य परिषद ने हिंदी पट्टी वाले राज्यों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में अच्छी सफलताएं भी प्राप्त कीं। राम राज्य परिषद ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में 95 सीटों पर 1952 अपने उम्मीदवार उतारे थे। वही बिहार प्रदेश में 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए। राजस्थान में 60 सीटों पर 1957 में राम राज्य परिषद ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ा और यहां बहुत कम सीटों से राम राज्य परिषद की सरकार बनते बनते रह गई। मध्य प्रदेश में भी राम राज्य परिषद उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में उतरे रहे। वैसे तो राम राज्य परिषद का 1971 में जनसंघ में विलय हो गया। लेकिन राम राज्य परिषद के नाम से इसके बाद भी कई उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरते रहे। 2019 में बनारस में हुए लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी राम राज्य परिषद ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था।

1957 में अटल जी पहली बार तीन सीटों पर लड़े करपात्रीजी ने बलरामपुर से जितवा दिया
भारतीय जन संघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जनसंघ के ऊर्जावान नेता के रूप में उभर रहे पंडित अटल बिहारी वाजपेई को 1957 में पहली बार एक साथ तीन लोकसभा सीटों पर भारतीय जनसंघ की ओर से चुनाव लड़वाया। अटल जी लखनऊ,मथुरा और बलरामपुर से एक साथ उम्मीदवार बने। तब स्वामी करपात्री जी ने बलरामपुर से अटल बिहारी वाजपेई को चुनाव जितवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। करपात्री जी अटल जी को चुनाव जितवाने में इसलिए आगे रहे क्योंकि कांग्रेस ने बलरामपुर से एक मुस्लिम उम्मीदवार हैदर हुसैन को चुनाव मैदान में उतार दिया था। हिंदूवादी पार्टी राम राज्य परिषद की स्थापना स्वामी करपात्री जी ने 1948 में महाराजा बलरामपुर पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के सहयोग से बलरामपुर में ही की थी। तब से बलरामपुर करपात्री जी का प्रभाव क्षेत्र रहा। करपात्री जी ने बलरामपुर में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करा कर अटल बिहारी वाजपेई को पहली बार लोकसभा का चुनाव जितवा दिया। तीन जगह से लोकसभा का चुनाव लडऩे वाले अटल जी की मथुरा में तो जमानत भी जप्त हो गई थी।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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