डगमगा रहा है अतिक्रमण विभाग का मनोबल
जबलपुर (जयलोक)। दिखावे की नेतागिरी क्या-क्या नहीं करवाती है इसका एक बार फिर से प्रत्यक्ष उदाहरण सामने आया है। संस्कारधानी के लोगों ने टीवी में, अखबारों में कई बार ऐसे नेताओं के बयान पढ़े हैं और सुनें हैं जो चिल्ला चिल्ला कर गाल बजाकर यह कहते पाए गए हैं कि इन दिनों शहर में चौतरफा अतिक्रमण का जाल फैला हुआ है। शहर की कोई भी ऐसी प्रमुख सडक़ या प्रमुख बाजार नहीं बचा है जहां पर अतिक्रमणकारियों के कारण यातायात अवरोध न हो रहा हो और गुजरने वाले लोगों को परेशानी ना हो रही हो। इसके बाद सारा दोष यातायात पुलिस और नगर निगम प्रशासन एवं अतिक्रमण विभाग पर डाल दिया जाता है। अतिक्रमण विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाए जाते हैं उन पर आरोप भी लगाए जाते हैं। लेकिन बड़ी विडंबना है कि संस्कारधानी में दिखावे की राजनीति करने वाले अतिक्रमण के नाम पर शोर मचाने वाले यही लोग अतिक्रमण विभाग के द्वारा कार्यवाही करने और सामान जप्त करने पर उसे बिना चालान के वापस करने के लिए दबाव बनाते हैं।
दोगली राजनीति का यह चरित्र अब अतिक्रमण विभाग के दस्ते के मनोबल को डगमगाने का काम कर रहा है। अतिक्रमण विभाग का दस्ता अगर फ्री हैंड होकर शहर के हित में आवश्यक समझे जाने वाली अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही करता है तो उस पर तरह-तरह के दबाव बनाए जाते हैं और दूसरी तरफ नागरिकों को सुनाने के लिए ऐसे ही नेता अतिक्रमण विभाग की नाकामी के आरोप भी लगते हैं।
अतिक्रमण विभाग में काम करने वाले अधिकारी कर्मचारियों पर प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव लगातार कार्यवाही करने के लिए बना रहता है। कार्यवाही की जाती है, सामान जप्त किया जाता है, जुर्माना किया जाता है तो राजनीतिक दलों के लोगों के द्वारा ही तत्काल फोन कर जप्त सामान वापस करने का दबाव बनाया जाता है। यहां तक की कई बार अतिक्रमण विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों पर पैसे लेकर या फिर किसी के दबाव में आकर किसी के अतिक्रमण को हटाने और किसी का नहीं हटाने के आरोप भी लग जाते हैं। अतिक्रमण विभाग के अधिकारी कर्मचारियों का स्पष्ट कहना है कि आरोप लगाने वाले सिर्फ दबाव बनाने की नियत से यह कृत्य करते हैं अगर ऐसा है तो फिर उन्हें विभाग से हटा क्यों नहीं दिया जाता। एक दौर था जब जबलपुर के हालात ऐसे थे कि नगर निगम का अतिक्रमण विभाग अपनी उपस्थिति दर्ज करने में भी डर खाता था लेकिन आज परिस्थितियों दूसरी हैं। किसी भी शहर के विकास का सबसे बड़ा रोड़ा अतिक्रमण ही होता है। अवैध रूप से कब्जा कर लोगों द्वारा यह मानसिकता बना ली गई है कि वे जहां चाहेंगे बिना अनुमति के अतिक्रमण कर व्यापार कर सकते हैं या निर्माण कर सकते हैं अब परिस्थितियों बदली है। संस्कारधानी के जनप्रतिनिधियों को सही मायने में जबलपुर के विकास के लिए अतिक्रमण विभाग को फ्री हैंड देना होगा। इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें मनमानी की छूट मिल जाए और वो निरंकुश हो जायें। लेकिन जो कार्रवाई हो रही है उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप कर अतिक्रमण और कब्जा करने वालों का साथ देना उन्हें बढ़ावा देने जैसा ही होता है।
सबसे आसान काम आरोप लगा देना
बड़ी विडंबना है कि अतिक्रमणकारियों का साथ देने वाले राजनीतिक क्षेत्र के लोग इस बात पर विचार नहीं कर रहे हैं कि वह अतिक्रमण रूपी बीमारी को खत्म करने में सहयोग करने के बजाय उसे और बढ़ावा दे रहे हैं। कुछ लोगों के समर्थन और उनकी जी हजूरी के चक्कर में राजनीतिक लोग शहर के हजारों लाखों लोगों की परेशानियों को नजर अंदाज कर देते हैं। अतिक्रमण विभाग पर हर तरफ से दबाव हैं। अतिक्रमण कर करके शहर की सडक़ों और मुख्य बाजारों में लोगों की परेशानी का सबक बने लोगों के लिए सबसे आसान यह है कि वह दबाव बनाने की नीयत से अतिक्रमण विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों पर मनमर्जी के आरोप लगा देते हैं। हालांकि यह बात भी सत्य है कि यह आरोप कभी सिद्ध नहीं होते। राजनीतिक स्तर पर और प्रशासनिक स्तर पर वरिष्ठ लोगों को शहर के हित में अतिक्रमण विभाग का खुलकर साथ देकर शहर विकास में सहयोग करने की हिम्मत दिखानी होगी। अंकुश के साथ अतिक्रमण विभाग की सही दिशा में कार्यवाही जबलपुर की विकसित तस्वीर को जल्द उभार कर सामने रख सकती है।