100 साल से ज्यादा पुराना भूमि रिकॉर्ड जल्द मिलेगा व्यवस्थित स्वरूप में
कलेक्टर दीपक सक्सेना खुद कर रहे है चल रहे कार्य की निगरानी
जबलपुर (जय लोक)। 2009-10 मिसल और 1954 से लेकर 2000 तक का रिकॉर्ड और अभी तक खसरे रिकॉर्ड के भूमि रिकॉर्ड को बहुत ही व्यवस्थित करने का काम तेजी के साथ चल रहा है। रिकॉर्ड रूम खली हो चूका है और अब जल्द ही यहाँ पर नए तरीके से रैक बनाने, लाइट बढ़ाने और फ्रेम बनाने, एसी लगाने आदि का कार्य भी प्रारम्भ हो जायेगा। कलेक्टर दीपक सक्सेना इस पूरे महत्वपूर्ण कार्य की स्वयं निगरानी कर रहे है और समय समय पर वो एडीएम मिशा सिंह, नाथूराम गौड़ एवं अन्य अधिकारियों के साथ रिकॉर्ड रूम के गतिमान कार्य का दौरा करने भी जा रहे है।
पन्नी में रखकर प्लास्टिक के डब्बों में रखा जा रहा रिकॉर्ड
वर्तमान में रिकॉर्ड को अपडेट करने के काम में उपलब्ध दस्तावेजों को नमी और सीत से बचाने के उद्देश्य से उसे पन्नी में रखकर प्लास्टिक के बड़े-बड़े डब्बे में पैक किया जा रहा। साल दर साल का रिकॉर्ड बनाने के उद्देश्य से व्यवस्थित ढंग से रखा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ या होगा कि अब जरूरत पडऩे पर आम लोगों को बहुत ही काम समय में भूमि के संबंधी रिकॉर्ड के दस्तावेज उपलब्ध हो पाएंगे। यह भी बताया जा रहा है कि इन्हें एक सॉफ्टवेयर से जोडऩे का काम भी किया जायेगा।
कई सालों से इस रिकॉर्ड रूम का दृश्य यह था कि यहाँ कोई भी दस्तावेज तलाश करना भूसे में सुई तलाश करने के जैसा था। यही कारण था कि लोग परेशान होकर या तो पैसे देकर यह काम करवाते थे या फिर वरिष्ठ अधिकारियों के पास शिकायत लेकर पहुँच जाते थे।
रैकिट बनाकर काम कर रहे थे कुछ लोग
कुछ वकीलों और यहाँ के कुछ कर्मचारियों ने एक पूरा रैकिट बनाकर रखा था और जब तक उनको मन के मुताबिक भेंट नहीं मिल जाती थी तब तक दस्तावेज तलाशने का काम शुरू नहीं होता था। कुछ महीने पहले तक यह स्थिति थी कि आवेदन लगाने के बाद महीनों तक व्यक्ति या तो अपनी चप्पल घिसता रहता था या फिर उसे अपनी जेब को ढीली करना पड़ता था। इस परंपरा को तोडऩे के लिए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने नए सिरे से पूरी व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया है। इस दौरान कुछ समय तक के लिए जरूर लोगों को रिकॉर्ड मिलने में दिक्कत जाएगी लेकिन जल्द ही इस व्यवस्था के प्रारंभ हो जाने के बाद आम जनता के लिए बड़ी राहत का कार्य हो जाएगा।
पहले रिकार्ड रूम में घुसने पर केवल ढेर सारे बस्ते नजर आते थे लेकिन अब जल्द ही यहाँ पर व्यवस्थित रूप से बड़े प्लास्टिक के डिब्बों में यह रिकॉर्ड रखा नजर आएगा। कलेक्ट्रेट से संपत्ति या जमीन खरीद-फरोख्त से जुड़े पुराने कागजात निकलवाना बहुत टेढ़ी खीर होती है। नकल निकालने में कलेक्ट्रेट के कर्मचारी महीनों का समय लगा देते हैं। इसमें गलती सिर्फ कर्मचारियों की नहीं है बल्कि उस व्यवस्था की भी है, जिसमें इन कागजात को रखा जाता है। कलेक्ट्रेट में ज्यादातर जमीन जायदाद से जुड़े मुकदमों के कागजात बस्तों में बांधकर रखे जाते हैं। कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम में ऐसे सैकड़ों बस्ते मिल जाएंगे, जिनमें 50 से 60 साल पुराने कागजात रखे हुए हैं। पुरानी कागजातों को सुरक्षित रखने के लिए इनमें फफूंद नाशक और फंगस नाशक पाउडर भी डाला जाता है, जिसकी वजह से कर्मचारियों को भी परेशानी होती है। अब नए सिरे से की जा रही व्यवस्था में कर्मचारियों को भी बहुत आसानी हो जाएगी।
हर डिब्बे पर होंगे नंबर, सॉफ्टवेयर से जुड़ेंगे
रिकॉर्ड रूम में रखे जा रहे हर डिब्बों की नंबर डाले जा रहे है। डब्बों पर जो नंबर डाले जा रहे है उसके आधार पर ही एक सॉफ्टवेयर बनाया जाएगा और यह जानकारी दर्ज की जाएगी की किस डिब्बे में कब तक का रिकॉर्ड रखा गया है और उसमें कौन कौन से दस्तावेज रखे गए है। इसका यह लाभ मिलेगा की जब भी किसी भी जमीन से संबंधित किसी मुकदमें की नकल चाहिए तो केवल इस सॉफ्टवेयर में कुछ एंट्रीज करने के बाद हमें यह पता लग जाएगा कि वह डिब्बा कहाँ रखा हुआ है। इससे सभी के समय की बचत होगी।
पन्नी में रखकर प्लास्टिक के डब्बों में रखा जा रहा रिकॉर्ड
वर्तमान में रिकॉर्ड को अपडेट करने के काम में उपलब्ध दस्तावेजों को नमी और सीत से बचाने के उद्देश्य से उसे पन्नी में रखकर प्लास्टिक के बड़े-बड़े डब्बे में पैक किया जा रहा। साल दर साल का रिकॉर्ड बनाने के उद्देश्य से व्यवस्थित ढंग से रखा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ या होगा कि अब जरूरत पडऩे पर आम लोगों को बहुत ही काम समय में भूमि के संबंधी रिकॉर्ड के दस्तावेज उपलब्ध हो पाएंगे। यह भी बताया जा रहा है कि इन्हें एक सॉफ्टवेयर से जोडऩे का काम भी किया जायेगा।
कई सालों से इस रिकॉर्ड रूम का दृश्य यह था कि यहाँ कोई भी दस्तावेज तलाश करना भूसे में सुई तलाश करने के जैसा था। यही कारण था कि लोग परेशान होकर या तो पैसे देकर यह काम करवाते थे या फिर वरिष्ठ अधिकारियों के पास शिकायत लेकर पहुँच जाते थे।
रैकिट बनाकर काम कर रहे थे कुछ लोग
कुछ वकीलों और यहाँ के कुछ कर्मचारियों ने एक पूरा रैकिट बनाकर रखा था और जब तक उनको मन के मुताबिक भेंट नहीं मिल जाती थी तब तक दस्तावेज तलाशने का काम शुरू नहीं होता था। कुछ महीने पहले तक यह स्थिति थी कि आवेदन लगाने के बाद महीनों तक व्यक्ति या तो अपनी चप्पल घिसता रहता था या फिर उसे अपनी जेब को ढीली करना पड़ता था। इस परंपरा को तोडऩे के लिए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने नए सिरे से पूरी व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया है। इस दौरान कुछ समय तक के लिए जरूर लोगों को रिकॉर्ड मिलने में दिक्कत जाएगी लेकिन जल्द ही इस व्यवस्था के प्रारंभ हो जाने के बाद आम जनता के लिए बड़ी राहत का कार्य हो जाएगा।
पहले रिकार्ड रूम में घुसने पर केवल ढेर सारे बस्ते नजर आते थे लेकिन अब जल्द ही यहाँ पर व्यवस्थित रूप से बड़े प्लास्टिक के डिब्बों में यह रिकॉर्ड रखा नजर आएगा। कलेक्ट्रेट से संपत्ति या जमीन खरीद-फरोख्त से जुड़े पुराने कागजात निकलवाना बहुत टेढ़ी खीर होती है। नकल निकालने में कलेक्ट्रेट के कर्मचारी महीनों का समय लगा देते हैं। इसमें गलती सिर्फ कर्मचारियों की नहीं है बल्कि उस व्यवस्था की भी है, जिसमें इन कागजात को रखा जाता है। कलेक्ट्रेट में ज्यादातर जमीन जायदाद से जुड़े मुकदमों के कागजात बस्तों में बांधकर रखे जाते हैं। कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम में ऐसे सैकड़ों बस्ते मिल जाएंगे, जिनमें 50 से 60 साल पुराने कागजात रखे हुए हैं। पुरानी कागजातों को सुरक्षित रखने के लिए इनमें फफूंद नाशक और फंगस नाशक पाउडर भी डाला जाता है, जिसकी वजह से कर्मचारियों को भी परेशानी होती है। अब नए सिरे से की जा रही व्यवस्था में कर्मचारियों को भी बहुत आसानी हो जाएगी।
हर डिब्बे पर होंगे नंबर, सॉफ्टवेयर से जुड़ेंगे
रिकॉर्ड रूम में रखे जा रहे हर डिब्बों की नंबर डाले जा रहे है। डब्बों पर जो नंबर डाले जा रहे है उसके आधार पर ही एक सॉफ्टवेयर बनाया जाएगा और यह जानकारी दर्ज की जाएगी की किस डिब्बे में कब तक का रिकॉर्ड रखा गया है और उसमें कौन कौन से दस्तावेज रखे गए है। इसका यह लाभ मिलेगा की जब भी किसी भी जमीन से संबंधित किसी मुकदमें की नकल चाहिए तो केवल इस सॉफ्टवेयर में कुछ एंट्रीज करने के बाद हमें यह पता लग जाएगा कि वह डिब्बा कहाँ रखा हुआ है। इससे सभी के समय की बचत होगी।
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