नई दिल्ली (जय लोक)। सुप्रीम कोर्ट ने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी/एसटी वर्ग के छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं और जातिगत भेदभाव के मामलों पर सख्त रुख अपनाया है। रोहित वेमुला और पायल ताडवी की मां द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया कि वह केंद्रीय, राज्य, निजी और मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों से इन मामलों से संबंधित आंकड़े इक करे। सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी को 2012 के रेग्युलेशन के तहत बनाए गए समान अवसर सेल्स (ईओसी) की शिकायतों और उन पर उठाए गए कदमों की रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए नियमित सुनवाई की जाएगी।
2012 रेग्युलेशन के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 से 2024 के बीच आईआईटी संस्थानों में 115 आत्महत्याओं के आंकड़ों पर चर्चा करते हुए कहा कि 2012 के यूजीसी रेग्युलेशन को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए मजबूत तंत्र आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जातिगत भेदभाव के मामलों को खत्म करने के लिए संस्थानों में शिकायत निवारण प्रणाली को और सशक्त बनाना होगा।
रोहित वेमुला और पायल ताडवी के मामले प्रमुख
याचिका में विशेष रूप से रोहित वेमुला और पायल ताडवी के मामलों का उल्लेख किया गया है। रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद विश्वविद्यालय में जातीय भेदभाव के आरोपों के चलते आत्महत्या कर ली थी। इसी तरह, पायल ताडवी, जो मुंबई के टीएन टोपीवाला मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं, ने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली। याचिकाकर्ता ने एससी/एसटी छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ भेदभाव रोकने के लिए मजबूत और प्रभावी तंत्र की मांग की है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता जताई कि संस्थान शिकायतों को गंभीरता से लें और भेदभाव रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत के समक्ष इन मुद्दों की गंभीरता को रेखांकित किया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को प्राथमिकता देते हुए आगे की कार्रवाई का संकेत दिया है।
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