मार्च 2022 में खुलवाया गया था खाता 20 करोड़ रुपए किए गए थे जमा
जबलपुर (जयलोक)। शासकीय इकाइयों को मिलने वाली विकास के कार्य के लिए बड़ी-बड़ी शासकीय राशि पर ब्याज पाने और कमीशन देने का खेल जमकर हो रहा है। वित्त क्षेत्र के सभी जानकार कई सालों से इस पूरे खेलों को देख रहे हैं और समझ रहे हैं। अब जब जबलपुर स्मार्ट सिटी को तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपए का चूना लगा है तब जाकर इस पूरे मामले में मुखर होकर बातें शुरू हो गई हंै। निजी बैंक ने स्मार्ट सिटी के साथ धोखाधड़ी कर उसे एक करोड़ 31 लाख 23 हजार रुपए का चूना लगा दिया है।
अब इस पूरे कांड के खुलासे के बाद सबसे महत्वपूर्ण बिंदु उभर कर यह सामने आ रहा है कि आखिर ऐसी क्या आवश्यकता स्मार्ट सिटी के वित्त अधिकारियों को नजर आ रही थी जो अपना शहर और अपने शहर के राष्ट्रीय एवं अच्छा कार्य कर रहे निजी बैंकों को छोडक़र इंदौर के एक निजी बैंक को उपकृत करने के लिए 20 करोड़ की राशि विभिन्न चरणों में वहां जमा कराई गई। उस पर भी यह राशि जबलपुर के बैंकों के खाते से निकालकर भेजी गई। जबकि इतनी बड़ी राशि के डिपॉजिट के लिए हर प्रकार के बैंक अपनी क्षमता के अनुरूप अधिक से अधिक ब्याज दर देने के ऑफर देते हैं। कुछ विशेष प्रकरणों में बड़ी राशि होने पर विशेष रूप से अच्छे ब्याज दर पर भी राशि जमा करने की स्वीकृति बैंकों द्वारा प्राप्त हो जाती है। तो स्मार्ट सिटी को फिर ऐसी क्या आवश्यकता थी जो इस नए नवेले निजी बैंक को उपकृत करने के लिए यह कार्य किया गया।
2 साल से चल रहा था मामला
स्मार्ट सिटी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में दर्ज पूरे प्रकरण के विवरण को अगर ध्यान से देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि 24 मार्च 2022 को बचत खाता खोलने के लिए आरबीएल बैंक विजयनगर शाखा इंदौर को स्मार्ट सिटी ने फॉर्म भरकर जमा किया। 29 मार्च को आरबीएल बैंक द्वारा स्मार्ट सिटी को भेजे गए मेल में 6.25 प्रतिशत ब्याज दर और बचत खाते का उल्लेख करते हुए सर्टिफिकेट ईमेल पर भेजा गया। पहली किश्त के रूप में स्मार्ट सिटी द्वारा अपने इंडियन बैंक के खाते से 16 करोड़ 80 लाख 2 हजार 647 रुपए इस नई नवेली निजी बैंक को ट्रांसफर कर दिए गए इसके बाद 24- 6-2022 को 2 करोड़ रुपए 30-6-2022 को 2 करोड़ रुपए एचडीएफसी बैंक से निकालकर फिर भेज दिए गए।
इसके बाद 5 जुलाई 2022 को बैंक से जब स्टेटमेंट प्राप्त किया गया तो बचत खाते की जगह पर चालू खाता दर्शाया गया। आरबीएल बैंक ने बिना किसी पूर्व सूचना या अनुमोदन के इस खाते को बचत खाते से परिवर्तित कर चालू खाता कर दिया। तब से लेकर अभी तक स्मार्ट सिटी के अधिकारियों और बैंक के बीच में कई बार पत्राचार हुआ।
बेईमान निकला बैंक का मैनेजर, दिए फर्जी दस्तावेज
पुलिस में की गई शिकायत में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि आरबीएल बैंक का मैनेजर कुमार मयंक बेईमान किस्म का आदमी है और इसने अपनी चोरी और गलती छुपाने के उद्देश्य से स्मार्ट सिटी को फर्जी दस्तावेज बनाकर भी उपलब्ध कराए थे। अलग-अलग दस्तावेजों में अलग-अलग राशि दर्शाई गई थी जो ईमेल के माध्यम से भेजी गई थी। आगे जाकर इस राशि को खाते के विवरण से हटा दिया गया था। इसी वजह से इस पूरे मामले को लेकर संदेह गहरा गया और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों
ने अपने खाते का पूरा विवरण मांगा तो मैनेजर कुमार मयंक ने आधा अधूरा बैंक स्टेटमेंट ही उपलब्ध कराया।
फर्जी एफडी कांड में भी संलिप्त है बैंक मैनेजर
भोपाल की बैरागढ़ पुलिस ने एक पत्र लिखकर जबलपुर स्मार्ट सिटी से खाते के संबंधित कुछ जानकारियां माँगी हैं। कार्यालय सहायक पुलिस आयुक्त बैरागढ़ के माध्यम से यह पता चला कि आरजीपीवी फर्जी एफडी घोटाले में भी यह फर्जी बैंक मैनेजर कुमार मयंक आरोपी है और इसने स्मार्ट सिटी की रकम से प्राप्त हुए ब्याज की राशि से 56 लख रुपए का अवैध रूप से उपयोग किया है। अपनी करतूत को छुपाने के लिए यह लगातार गलत जानकारियां प्रेषित करता रहा है।
सीएसआर का पैसा भी नहीं दिया
पुलिस को प्रेषित शिकायत में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड के तहत स्मार्ट सिटी ने शहर के विकास कार्यों के संबंध में बैंक के योगदान हेतु राशि की मांग की थी। बैंक मैनेजर कुमार मयंक ने आश्वासन दिया था कि वह मदन महल की पहाड़ी में चल रहे कार्य और पौधा रोपण के साथ उन्मुख चौराहे के विकास के लिए बैंक के सीएसआर फंड से राशि उपलब्ध कराएंगे। लेकिन बैरागढ़ पुलिस की जांच में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इस राशि में भी गड़बड़ी करते हुए गफलत बाजी की गई है।
निचले स्तर अधिकारियों कर्मचारियों को अभी मिली जानकारी
स्मार्ट सिटी के कार्यालय में वित्तीय विभाग द्वारा ऊपर ही ऊपर स्तर पर बड़े खेल कर लिए जाते हैं। ब्याज और कमीशन की लालच में बंद कमरों में होने वाली मीटिंग और सेटिंग के पूरे खेल की जानकारी आज सुबह इस पूरे कांड के खुलासे के बाद स्मार्ट सिटी के अधिकांश अधिकारियों और कर्मचारियों को हुई। निचले स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों को तो इस बात की जरा सी भी भनक नहीं थी कि कुछ इतना बड़ा कांड हो चुका है।