जबलपुर प्रवास पर पधारे शंकराचार्य जी से जयलोक के लिए परितोष वर्मा की विशेष चर्चा
जबलपुर (जयलोक)। द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती महाराज का कल अल्पप्रवास पर जबलपुर आगमन हुआ। सिविक सेंटर स्थित शंकराचार्य मठ में पधारे महाराज श्री ने जय लोक से विशेष चर्चा के दौरान विगत दिवस दिल्ली में वृहद स्तर पर आयोजित हुई धर्म संसद में अपने उद्बोधन के विशेष अंशों पर पुन: प्रकाश डाला एवं सभी सनातनियों को अपना संदेश देते हुए कहा कि जाति व्यवस्था नष्ट नहीं की जा सकती, सभी हिंदू एक हो जाएं, महाराज श्री ने कहा कि सभी को अपनी वर्णव्यवस्था का पालन करना चाहिए।
शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सब लोग स्पष्ट रूप से समझ लें की जाति व्यवस्था नष्ट नहीं की जा सकती। यह सनातन धर्म हिंदू धर्म वर्णाश्रम व्यवस्था इसकी रीढ़ की हड्डी है। जाति व्यवस्था किसी भी हाल में झगड़ा कराने के लिए नहीं हैं। हिंदू हिंदू सब एक हो जाएं लेकिन स्वधर्म व्यवस्था का पालन करने के लिए हमें अपनी कुल की परंपरा, कुलदेवी की परंपरा, कुलदेवता की परंपरा का पालन करना ही पड़ेगा। हिंदू होने की पहली प्रतिज्ञा गौ-माता हैं। गौ-माता में जिसकी भक्ति है और जो पुर्नजन्म में जो विश्वास करता है, ओंमकार जिसका मूलमंत्र है, माता पिता की सेवा जो देवता मानकर करता है, जिसे संपत्ति का लालच नहीं उसे हिंदू कहते हैं।
शंकराचार्य जी ने कहा कि भारत की जातिगत व्यवस्था को अंग्रेज और मुगल भी नष्ट नहीं कर पाए। हम अपनी जाति में परिवर्तन नहीं कर सकते माता-पिता की जाति में परिवर्तन करने के हम अधिकारी नहीं है। इसी तरह से धर्म का परिवर्तन भी नहीं किया जा सकता। जाति का परिवर्तन भी नहीं करना चाहिए। वर्ण व्यवस्था सनातन धर्म का मूल आधार है। जाति धर्म से हिंदू स्वधर्म का पालन करता है। जातियां झगड़ा करवाने के लिए नहीं है।
नेताओं और सरकार ने बना दी 35 हजार जातियाँ
लोगों के परंपरागत धर्म का पालन से रोकने के लिए जो नेता जातिगत व्यवस्था को खत्म करने की घोषणा कर रहे हैं वह स्वयं जाति के आधार पर उम्मीदवार खड़ा कर रहे हैं। यह दोहरी मानसिकता समाज के लिए हानिकारक है। यह जरूर आवश्यक है कि समस्त हिंदुओं को हिंदुत्व की रक्षा के लिए एक होना चाहिए। जाति केवल हिंदू या मनुष्य में नहीं होती बल्कि पशुओं में भी जाति है, वृक्षों में भी जाति है पत्थरों में भी जाति है। जैसे पत्थर में ग्रेनाइट, मार्बल आदि अलग-अलग पत्थर आते हैं।
यह विभिन्नता और विचित्रता प्राकृतिक है इसे नष्ट करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हिंदुओं में धर्म शास्त्रों में सीमित जातियां थी नेताओं और सरकार ने 35000 जातियां बना दी और जातिगत आरक्षण के आधार पर राजनीति करना प्रारंभ कर दिया।
सनातन धर्म की रक्षा के लिए हम और हमारे प्रयास तभी सफल हो पाएंगे जब सनातन धर्म के प्रति लोगों में निष्ठा होगी, जिसके प्रति हम निष्ठा रखते हैं उसको महत्व देते हैं, हम उसकी रक्षा भी करते हैं और वह आपात स्थिति में हमारी रक्षा करता है। सनातन धर्म भी कुछ ऐसा ही है। एकता नहीं होने की दिशा में दूसरे हमारे ऊपर शासन करते हैं। हमारा इतिहास इस बात का गवाह है। जब हम में एकता आ जाती है तो कोई भी हमारे ऊपर शासन नहीं कर सकता। हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी इस बात का उल्लेख है कि अकेली लकड़ी जलने पर धुँआ करती है। लेकिन जब कई लकडिय़ों को एक साथ जलाया जाता है तो होलिका जैसी बुराइयां भी जलकर खाक हो जाती हैं। अब समय आ गया है कि हम सनातन धर्म को मानने वाले सभी लोगों को अपनी जाति-पाति छोडक़र, सभी मतभेद बुलाकर, एक हो जाना चाहिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर भी एक हो जाना चाहिए।
शिक्षा का होना चाहिए भारतीयकरण
शंकराचार्य जी ने कहा कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए गौ माता की रक्षा, शिक्षा का भारतीयकरण होना चाहिए, शिक्षा के केन्द्रों में सनातन धर्म की शिक्षा दी जाना चाहिए एवं हमारी यज्ञशाला, धर्मशाला, पाठशाला जो प्राचीन परंपरा से चली आ रही है उनके लिए विशेष प्रयास होना चाहिए।
हमें कृष्ण जन्म भूमि भी प्राप्त होना चाहिए
स्वामी शंकराचार्य श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपनी उद्बोधन में इस बात की भी माँग रखी कि जिस प्रकार से हमें सैकड़ों वर्ष के संघर्ष के बाद श्री राम जन्मभूमि प्राप्त हुई। इसी प्रकार से हमें श्री कृष्ण जन्मभूमि भी प्राप्त होना चाहिए। ज्ञानव्यापी का अर्थ समझाते हुए शंकराचार्य जी ने कहा कि व्यापी का अर्थ हमारे स्मृति ग्रंथों में प्राप्त होता है। व्यापी का निर्माण हमारे ईष्ट कर्म में आता है। व्यापी निर्माण, कुआं निर्माण, भोजनालय का निर्माण करने वाला औषधालय का निर्माण करने वाला यह सब हिंदू और सनातन परंपरा के कार्य है।
हिंदू में हिंदुत्व होना चाहिए
शंकराचार्य स्वामी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हर हिंदू में हिंदुत्व का भाव प्रबल रूप से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसे जल तो होता है लेकिन अगर वह खारा है तो उससे प्यास नहीं बुझेगी। जल में जब तक जलत्व नहीं होगा तब तक वह किसी की प्यास नहीं बुझा सकेगा।
हम हिंदू हैं यह कह देने भर से बात नहीं बनेगी। धर्म में जब धर्मी होगा तभी धर्म का पालन होगा, हिंदू में जब हिंदुत्व होगा तभी हिंदू धर्म की रक्षा होगी, सनातन धर्म की रक्षा होगी।
गौ-माता हमारी राष्ट्र माता है
शंकराचार्य जी ने कहा कि गौ माता हमारी राष्ट्र माता है जैसे ही सनातन बोर्ड बनेगा वैसे ही गौमाता हमारी राष्ट्र माता घोषित हो जाएंगी या पहले गौमाता राष्ट्र माता घोषित हो जाएं फिर सनातन बोर्ड बन जाए एक ही बात है। यह सब सनातन धर्म में शामिल है।
प्रत्येक जिले में शुरू करें आंदोलन
शंकराचार्य जी महाराज ने सनातन संसद के दौरान अपने उद्बोधन में कहा कि प्रत्येक जिले में सनातन धर्म से जुड़ी मांगों को लेकर आंदोलन शुरू करें। 7 सौ से अधिक जिले देश में हैं। गुजरात राज्य की जवाबदारी लेते हुए शंकराचार्य जी ने कहा कि अन्य प्रदेशों की जवाबदारी बड़ें संतों, आचार्यों, मठाधीशों को लेनी चाहिए और वे आगे आकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाए। अगर आंदोलन गर्म नहीं होगा तो सरकार भी इन मांगों को लेकर ठंडी हो जाएगी। वर्तमान समय में हम यह मानते हैं कि सरकार अपने अनुकूल है, हिंदुओं के अनुकूल है देश के अनुकूल है और राष्ट्र के अनुकूल है। इसलिए देश और धर्म की रक्षा करने के लिए वर्तमान सरकार से हम सबकी आशा है। प्रजा ही राजा का निर्माण करती है और राजा से ही आशा करती है।
जनसंख्या नियंत्रण अधिकांश हिंदुओं पर लागू
जनसंख्या नियंत्रण के विषय में शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि हिंदु बोर्ड बिल के द्वारा जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित सभी नियंत्रण हिंदुओं पर लगाए गए हैं। बाकी लोगों को पूरी छूट दी गई है। हमारे देश में बहुमत के आधार पर राजा निर्धारित होता है जब दूसरे लोग 51 प्रतिशत हो जाएंगे तो हमारे देश की शासन व्यवस्था किन लोगों के हाथों में और किस दिशा में जाएगी इस पर विचार कर लेना चाहिए। हिंदुओं पर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर तरह-तरह की पाबंदिया लगी हैं जिसके कारण उन्हें नौकरी में पदोन्नति नहीं मिलेंगी। राजनैतिक क्षेत्र में पद नहीं मिल पाएगा, सरपंच जैसे चुनाव तक नहीं लड़ पाएंगे। इन प्रतिबंधों के कारण हिंदुओं की संख्या पर असर पड़ रहा है और कम होते जा रहे हंै। भारत देश में सबको रहने का अधिकार है लेकिन यह मूल भारत देश हिंदुओं का है जिनके ग्रथों में भारत शब्द का उल्लेख सनातन काल से चला आ रहा है बल्कि अन्य किसी धर्म के ग्रंथों में इनसब का उल्लेख नहीं हैं। हिंदु को जगाना पड़ता है।