चैतन्य भट्ट
ये डायरी भी बड़ी खतरनाक चीज है कब कहाँ किसे फंसा दे कोई नहीं जानता। बड़े-बड़ों की पोल ये डायरी खोल देती है अब देखो ना परिवहन विभाग के सेवानिवृत्त खऱबपति परम आदरणीय श्री सौरभ शर्मा और उनके मित्र चेतन सिंह की डायरी में ऐसे ऐसे राज दफन थे जो अब कब्र से खुद कर बाहर आ गए ,सब की सिटी पिट्टी गुम है कि पता नहीं डायरी में किस-किस का नाम सामने आ जाए दरअसल दिक्कत ये है कि किसने कितने पैसे लगाए हैं कहां से कितनी वसूली हुई है ये कहीं ना कहीं तो लिखना ही पड़ेगा तो उसके लिए डायरी जरूरी है। लेकिन जिस तरह से डायरी लोगों की पोल खोल रही है उसको देखकर लगता है कि कुछ समय बाद देश में डायरियाँ बिकना बंद हो जाएंगी । अपनी तो एक सलाह ऐसे लोगों को भी है कि भैया जी डायरी फायरी का चक्कर छोड़ो आपके धंधे में जितने भी पार्टनर है या जिन जिन का पैसा लगा है उनके नाम मन ही मान रट लो जैसे बचपन में हमें पहाड़ रटाया जाता था एक से लेकर पचास तक का, वैसे ही आप भी उन तमाम अपने धंधेबाजों के नाम और पैसे रख लो, ताकि जब कभी छापा पड़े तो किसी को ये पता ना लग पाए कि किसका कितना माल कहां खपा है या कितना माल इधर उधर कर दिया है आप रट लोगे तो आपकी याददाश्त भी तेज होगी और वे बेचारे भी इस झंझट से बच जाएंगे जिनका दो नंबर का पैसा आपके धंधे में लगा है या अपने वसूल कर नीचे से ऊपर तक पहुंचाया है और अगर याददाश्त कमजोर है तो किसी सरकारी स्कूल की दीवाल में जाकर कोड वर्ड में उनसे मिली राशि लिख दो उसमें गुणा या भागित का निशान लगा दो कोई सोचेगा की कोई मैथ्स वाली टीचर ने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए यह सब लिखा होगा। वैसे भी सरकारी स्कूलों की हालत जिस तरह की है उसमें ना तो उस दीवाल की सफाई होना है और ना ही पुताई। बीच-बीच में जाकर चेक करते रहोना लोकायुक्त को पता लग पाएगा ना इनकम टैक्स वालों को,ना ईडी वालों को बेहतरीन आपका धंधा चलता रहेगा और वे सब भी आराम की नींद सो सकेंगे जिन्होंने अपना दो नंबर का माल आपके माध्यम से खपा रखा है इससे अच्छी और बेहतरीन सलाह और कौन सी हो सकती है आप ही बताओ ? अपने को तो एक बात ये भी समझ में नहीं आई कि ये दो नंबर का काम करने वाले डायरी रखते ही क्यों हैं? जब मालूम है कि पाप का घड़ा किसी न किसी दिन फूटने वाला है और किसी भी दिन कोई दुश्मन लोकायुक्त को, इनकम टैक्स को ,सीबीआई को, ईडी को टिप्स दे देगा और वे एक साथ टूट पड़ेंगे तो फिर काहे को ये सब डायरी में हिसाब किताब लिखते हो ,दो नंबर के पैसे में तो वैसे भी सारा काम भरोसे पर चलता है और फिर अगर आपने पैसा खा भी लिया तो सामने वाला कौन सा केस कर पाएगा, कोई लिखा पढ़ी तो होती नहीं है दो नंबर के कामों में जब लिखा पढ़ी नहीं होती तो आप ही काहे को डायरी में सारी लिखा पढ़ी कर रहे हो हुजूर अपनी मानो और जो तरकीब हमने बताई है उस पर अमल करो बड़े से बड़ी एजेंसी आ जाएगी आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी आप ठाठ से दो नंबर का पैसा गलाते रहो कहीं कोई लेकूना नहीं मिलेगा और सारी एजेंसियां सर पटक पटक कर हलाकान हो जाएंगी उनके हाथ कुछ नहीं आएगा।
सनी लियोन को पैसे की जरूरत
एक खबर आई है कि छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी वंदन योजना में हर महीने मिलने वाली एक हजार रूपये की राशि पूर्व पोर्न स्टार सनी लियोनी को भी मिल रही है बस्तर जिले के ताल्लूर गांव में सनी लियोनी पति जॉनी जींस के नाम से आवेदन किया गया था और बाकायदा अफसर ने उसको स्वीकृत करके सनी लियोनी के नाम पर महतारी वंदन की एक हजार की राशि हर महीने उनके अकाउंट में भेजी जाने वाली लगी, किसी दिलजले ने इसकी खबर दे दी और ऊपर से नीचे तक हल्ला मच गया कि अरे सनी लियोनी को महतारी वंदन के पैसे कैसे मिल रहे हैं ।अरे भाई सनी लियोनी ने पोर्न स्टार का धंधा तो कब से छोड़ दिया एक दो फिल्मों में चांस मिला था अब वो भी खत्म हो गया उधर से भी पैसा मिलना बंद हो गया और फिल्मों से भी पैसा नहीं मिल रहा, पैसे की जरूरत तो हर इंसान को होती है और फिर सनी लियोनी ने तो वह जलवा देखा है कि उसको साधारण जिंदगी तो पसंद आने वाली नहीं ऐसे में अगर महतारी वंदन के हजार रुपए महीने भी उसको मिल रहे हैं तो इस पर लोगों को क्या एतराज हो सकता है साल भर में कुल जमा बारह हजार ही तो मिलेंगे लेकिन कहते हैं न किसी से किसी का अच्छा होता नहीं देखा जाता सो शिकायत कर दी अब सरकार वो पैसा वसूल करने के चक्कर में है, बेचारी सनी लियोनी करें तो करे क्या? अच्छा भला पोर्न स्टार का धंधा चलता था महेश भट्ट ने मुंबई बुलाकर पिक्चर में काम दे दिया उसको लगा कि अब बॉलीवुड में अपना जलवा खिंच जाएगा लेकिन जलवा चल नहीं पाया इससे अच्छा तो यही था कि जो धंधा कर रही थी वो करती रहती, काहे को इनके चक्कर में पडक़र अपनी लाई लुटवा ली जैसे तैसे हजार रुपया महीना मिल रहा था उस पर भी लोगों की आंखें टेढ़ी हो गई उससे भी बेचारी वंचित हो गई ,अपनी तो उनको एक ही सलाह है कि देख लो कुछ और हो सकता है तो कर लो वरना वहां से गई, यहां से गई, और महतारी वंदन से भी चली गई तो भविष्य में क्या होगा, भविष्य की चिंता करो और कुछ ऐसा सेट कर लो कि कम से कम महीने में चार पैसे तो आने लगे ।
काबिलियत सिद्ध करो
कई बरसों से प्रदेश के निगम मंडल खाली पड़े हैं बड़े अफसर या मंत्री इन निगम मंडलों के सर्वे सर्वे बने हुए हैं बेचारे कार्यकर्ता, छोटे-मोटे नेता कब से आस में है कि निगम मंडल में उनको एडजस्ट कर लिया जाएगा जिंदगी भर दरी फट्टा उठाते रहे हैं, जय जयकार करते रहे नेताओं की ,झंडा बैनर लगाते रहे हैं ,उसके बदले में कुछ तो उनको मिल जाए ,बीच-बीच में खबर आती रहती है कि बस निगम मंडल में नियुक्तियां होने वाली चेहरे पर चमक आ जाती है उन गरीबों की कि हो सकता है इस बार अपना मुकद्दर साथ दे दे लेकिन हर बार फिर मामला फुस्स हो जाता है लेकिन इस बार पता लगा है कि बहुत जल्द यह नियुक्तियां होने वाली है लेकिन इसमें काबिलियत देखी जाएगी अब काबिलियत का क्राइटेरिया क्या है ये किसी बड़े नेता ने नहीं बताया। राजनीति में तो काबिलियत सबसे बड़ी यही है कि बड़े-बड़े नेताओं की चमचागिरी कैसे की जाए ,सुबह से शाम तक उनकी सेवा में कैसे लगा जाए, कैसे उनकी हां में हां मिलाया जाए, अगर यह काबिलियत है तो आप समझ लो कि आपका कुछ ना कुछ हो ही जाएगा लेकिन और कोई काबिलियत को क्राइटेरिया बनाया जा रहा है या फिर कोई और काबिलियत देखी जाएगी ये अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है जैसे भाजपा के महानगर अध्यक्षों की नियुक्ति के बारे में रायशुमारी हो रही है लेकिन सबको मालूम है कि ये सिर्फ फॉर्मेलिटी है जो होना है वो बड़े नेताओं की मर्जी से होना है। तो ऐसा ही कुछ निगम मंडलों के अध्यक्ष उपाध्यक्ष और सदस्यों के मसले में भी होगा काबिलियत धरी कि धरी रह जाएगी और जिसको बनाना होगा उसको बना दिया जाएगा और किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो चूं चपाट कर सके फिर भी अपनी तो नेताओं को एक सलाह है कि काबिलियत का पहला पता लगा लो कि किस तरह की काबिलियत उन्हें चाहिए है फिर उस तरह की काबिलियत पैदा करके निगम मंडलों में का नियुक्ति पा लो।
सुपर हिट ऑफ द वीक
तुम हर बात पर हमेशा मेरा-मेरा करती हो, ‘हमारा’ कहना चाहिए श्रीमान जी ने श्रीमती जी से कहा
कुछ देर बाद श्रीमान जी ने देखा श्रीमती जी आलमारी में कुछ ढूंढ रही है
क्या ढूंढ रही हो ? श्रीमान जी ने पूछा
हमारा पेटीकोट श्रीमती जी ने उत्तर दिया