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दास्ताने-दास्ताँ गोयम : इंतज़ार हुसैन, एक साक्षात्कार में,विवेचना रंग मंडल द्वारा शहीद स्मारक में 15, 16 नवंबर को जश्ने दास्तान

(जयलोक) विवेचना रंग मंडल द्वारा  शहीद स्मारक में 15, 16 नवंबर को जश्ने दास्तान नाम से दास्तान गोई का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
शायरी और कहानी में एक फक़ऱ् है कि यह जो शायरी है, अपनी ज़मीन में पैवस्त होती है, वो अपनी तहज़ीब में रची बसी होती हैं और उनका अनुवाद करना भी मुश्किल होता है, वो अपनी सीमा से बाहर भी कम जा पाती हैं। लेकिन यह जो कहानियाँ होती हैं, वो आवारा होती हैं। वो एक तहज़ीब से दूसरी तहज़ीब में, एक मुल्क से दूसरे मुल्क में सफऱ करती चली जाती हैं। तो इसीलिए अब मेरी समझ में आया कि शेक्सपीयर का ड्रामा और होमर की ओडिसी का कि़स्सा कैसे मेरी नानी अम्मा तक पहुँच गया।
-(इंतज़ार हुसैन, एक साक्षात्कार में)
दास्तान की बात भी वहाँ से शुरू की जा सकती है, जहाँ इंतज़ार हुसैन ने उसको ख़त्म किया। दास्तान के केंद्र में कहानी है और दास्तानगोई कहानी कहने की कला। फारसी में गोयम/गुयिम का अर्थ है मैं कहता हूँ या मैं बताता हूँ। यह क्रिया गुफ़्तन  से निकली है, जिसका अर्थ है कहना या बोलना। इस तरह दास्तानगो या कि़स्सागो क्रमश: वह है जो दास्ताँ और कि़स्से सुनाए। आपने सुनी ही होगी वह कहावत गोयम मुश्किल वगरना गोयम मुश्किल यानि  मेरा कहना भी मुश्किल और ना कहना भी मुश्किल।  एक औपचारिक परिचय में दास्तान, कहानी और कि़स्से हमेशा मानव इतिहास का हिस्सा रहे, लेकिन दास्तानगोई कि़स्सा कहने की कला है। इसमें कथा का व्यवस्थित, समग्र, विवरणात्मक और रोचक स्वरुप होता है। यह आमतौर पर प्रेम, नायकत्व और साहसिकता के विषयों को एक साथ बुनती है, और ऐतिहासिक घटनाओं, लोककथाओं और पौराणिक कथाओं से प्रेरित होती है। यह शैली फ़ारसी और उर्दू साहित्य में विकसित हुई। यह कब हुआ? कब से शुरू हुआ ? इतिहास में कहाँ ठीक-ठीक ऊँगली रखकर बता सकते हैं जब दास्तानगोई शुरू हुयी होगी। और क्या यह अपनी शुरुआत से ही ऐसी है ? इन सवालों की पड़ताल करना मुश्किल है और यह ऐतिहासिक छान-बीन के तकनीकी प्रश्न हैं जिसपर मेरा कोई ज़ोर नहीं। मैं इसे केदारनाथ सिंह की भाषा में नहीं कह सकता कि दास्तान शुरू हुयी जब दिन में रात हुयी थी।  लेकिन फिर भी दास्तानों का एक अतीत होगा, वैसा ही जैसे सेर्वान्तेस के डॉन कीखोट  का, भले ही वह काल्पनिक पात्र दिखाई दें। कहा जाता है कि पहली बार दास्तान कहने की रिवायत या उसको व्यवस्थित करने की रिवायत आठवीं सदी में शुरू हुयी। उसके हवाले मुश्किल हैं। लेकिन कालांतर में अलग-अलग बादशाहों ने कमीशन्ड करवाया। जिनमें सबसे प्रसिद्ध है दास्ताने-अमीर हम्ज़ा।  आपने वह कथा सुनी ही होगी जिसमें बादशाह अपनी बेटियों से पूछता है कि वह उन्हें कितना प्यार करती हैं और उनमें से एक बेटी जवाब देती है वह उन्हें इतना चाहती है जैसे नमक।  यह कहानी किसकी है ? कोई कहेगा शेक्सपीयर का किंग लीयर, कोई कहेगा चेखव, कोई शहरयार तो कोई बखि़्तयार। ऐसे ही एक और कथा है कि बग़दाद के एक व्यापारी का नौकर बाज़ार में मृत्यु से टकरा जाता है और उससे बचने के लिए सामर्रा भाग जाता है, लेकिन मृत्यु ने दरअस्ल उसी रात सामर्रा में उससे मिलने का वादा किया था। कोई इस कथा को समरक़ंद में मौत कहता है तो कोई इसे मौत से मुलाक़ात नाम से जानता है। इस कथा को बौद्रिलार्द और समरसेट मॉम तक ने अपने अपने ढंग से कहा है। चलिए, इससे भी नज़दीक की कथा हम सबको याद होगी जिसमें सप्तऋषि तारामंडल हैं, इस कथा को आप ईरान में अलग ढंग से सुनेंगे, कहीं यह सात ऋषि हैं तो कहीं सात बहनें और कहीं-कहीं ताबूत उठाकर आकाश में चलते लोग जो दरअसल एक और ईरानी लोक कथा है। इंतज़ार हुसैन की नर-नारी कहानी और गिरीश कर्नाड का हयवदन ? पहले किस ने लिखा? हम नहीं जानते पहले किसने लिखा। लेकिन तेहरान, ताशकंद, अंकारा और कोन्या, वडगाम, गुडग़ांव, जबलपुर या जगदलपुर में अचानक हितोपदेश, पंचतंत्र, कथासरित्सागर या तिलिस्मे होशरुबा की कहानी आपसे अचानक टकरा सकती है।   दास्तानगोई शैली 16वीं सदी के दौरान फली-फूली। दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा के 46 खंड, दास्तान के सबसे पुराने व्यवस्थित, प्रकाशित हिस्से  हैं। पारम्परिक तौर पर काफ़ी हद तक आज भी दास्तानगोई के प्रदर्शन आमतौर पर एक चाँदनी रात में होते थे। इस के दौरान, एक साफ़ संगमरमर के फ़र्श पर एक तख़्त रखा जाता है, जिसके दोनों तरफ पानदान और मोटे तकिए (गावतकिया/मसनद) होते हैं। तख़्त पर एक व्यक्ति मुलायम सफ़ेद चादरों में बैठता है। एक सहायक दास्तानगो के लिए एक चमकदार चाँदी के कटोरे में पानी लाता है। दास्तानगो कुछ घूंट पानी पीता है, गला साफ़ करता है, और फिर कहानी सुनाना शुरू करता है। 16वीं सदी में, दास्तान का यह रूप भारत में आया, संभवत: सबसे पहले दक्कन में, जब मुग़ल सम्राट हुमायूँ ईरान से लौटे।
दास्तानगोई के विकास के साथ, इसमें भारतीय संस्कृति के तत्व भी मिलने लगे और प्रदर्शन अब उर्दू में शुरू हो चुके थे। अकबर ने 16वीं और 17वीं सदी के दौरान इसे बहुत बढ़ावा दिया।  19वीं सदी में, दास्तानगोई विशेष रूप से दिल्ली और लखनऊ में प्रसिद्ध हुई। एक अछी दास्तान में कम से कम चार तत्वों में से एक शामिल होता है: रज़्म (युद्ध), बज़्म (शानदार समारोह ), तिलिस्म (जादू), और अय्यारी (फऱेब/धोखा)। दास्ताने-अमीर हम्ज़ा में यह सभी तत्व शामिल थे और इसी वजह से उसे एक महान दास्तान माना जाता है।  दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा ऐसी ही दास्तानों का संग्रह है जो अमीर हम्ज़ा नाम के नायक के साहसी कि़स्सों का बयान करता है। इन दास्तानों में दिलचस्प जंगें, जादू और विभिन्न अजब-गज़़ब जीव जैसे जिन्न और परियों का सामना शामिल है। ये कहानियाँ इतिहास और ख़्याल का मिलाप हैं, जो अमीर हम्ज़ा के कारनामों और तरह तरह की दुविधाओं को पेश करती हैं।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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