जबलपुर (जयलोक)। नगर निगम प्रशासन का महत्वपूर्ण हिस्सा मेयर इन ए काउंसिल सत्ता परिवर्तन के दौर के बाद से अधूरी पड़ी हुई है। नए पांच सदस्यों के साथ महापौर नगर की व्यवस्था को दुरुस्त करने का जिम्मा उठा रहे हैं। सबसे कचरा की बात यह है कि यह स्थिति भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में समन्वय के अभाव के कारण निर्मित हुई है। मेयर इन ए काउंसिल में 10 सदस्य शामिल हो सकते हैं।वर्तमान में केवल पांच सदस्य ही शामिल है। नेताओं के बीच में संबंध में ना बन पाने के कारण एमआईसी कर अधूरी पड़ी है। सत्ता पक्ष को मजबूती के साथ नगर विकास के कार्य में लग जाना चाहिए उतनी पूरी ताकत एमआईसी अधूरी होने के कारण नहीं लग पा रही है।
इसकी मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि वरिष्ठ पार्षद पिछले तीन चार बार निर्वाचित होकर आने और निगम की कार्यप्रणाली का अनुभव रखते हैं उन्हें भी इस आपसी रसाकशी के कारण दरकिनार कर रखा गया है। भारतीय जनता पार्टी भी अपने इतने वरिष्ठ पार्षदों के अनुभव का लाभ नगर निगम की सत्ता मैं शामिल नहीं कर पा रही है और इनवर्टर पार्षदों की कोई पूछ परख ही नहीं ले रही है।
कुछ समय तक तो इन्वेस्ट पार्षद होने पार्टी के संगठन स्तर पर और प्रदेश स्तर पर अपनी बात रखने का प्रयास किया। जब वरिष्ठ भाजपा के प्रतिनिधियों का अहम् पार्टी की विचारधारा और परिपाटी से अधिक ऊपर नजर आने लगा तो ये लोग भी अपने भाग्य के भरोसे बैठ गए और पार्टी संगठन के ऊपर सब कुछ छोड़ दिया।
एक निर्णय से कई लोग हुए थे प्रभावित
हाल ही में महापौर के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे जगत बहादुर सिंह अनु ने इस बात की घोषणा की कि वे जबलपुर के विकास को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय जनता पार्टी के साथ कदम ताल मिलाकर जबलपुर के विकास को आगे बढ़ाएंगे और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता स्वीकार की। उनके इस निर्णय का सबसे सीधा प्रभाव नगर निगम राजनीति से जुड़े कई लोगों पर पड़ा। नेता प्रतिपक्ष का पद बदल गया, एमआईसी में शामिल लोग केवल पार्षद बनकर रह गए। भारतीय जनता पार्टी के कुछ कर खार खाकर बैठे नेताओं को भी राजनीति करने का मौका मिल गया। नतीजा यह हुआ कि महापौर के ऊपर जिम्मेदारियां का दबाव और बढ़ गया। महापौर श्री अनु नगर निगम की राजनीति के पुराने अनुभवी नेता है इसलिए शहर के आम नागरिकों और नगर निगम प्रशासन को इस बात की कमी महसूस नहीं हो रही है विकास कार्यों की निगरानी में कहीं चूक हो रही हो।
एमआईसी की खिचड़ी में नहीं लग पा रही समझौते की बघार
पार्टी सूत्रों का कहना है कि एमआईसी में सदस्यों को चयनित करने के पीछे ये जो खिचड़ी मच गई है उसके पीछे विधानसभा चुनाव और उसके बाद विधायकों की अपनी अपनी राय और जिद्द के कारण इस मामले में समझौते की बघार नहीं लग पा रही है।