ड्रोन उड़ायें तो खुल जाऐगी माइनिंग विभाग की करतूतें
ऐसी गहराई तक कर रहे खुदाई की हाईवा तक छिप जाते हैं
जबलपुर (जयलोक)। ऐसा लगता ही नहीं की जबलपुर में माइनिंग विभाग का कोई अस्तित्व भी है। यह लगता भी होगा तो केवल उन लोगों को जो अवैध उत्खनन के बदले में मोटी-मोटी रकम पहुँचाने का काम कर रहे हैं। इसके बदले में माइनिंग विभाग सरकारी संपदा को खुलेआम खुले तौर पर लूटने के लिए छोड़ चुका है। जबलपुर तहसील के अंतर्गत आने वाले बरगी क्षेत्र के मानेगांव, बढैय़ाखेड़ा, डुंगरिया आदि गाँव में मानो सरकार का राज नहीं अवैध माफिया का राज चल रहा है। सरकारी भूमि हो या निजी भूमि हो इसको खोदने के लिए खनिज माफिया को किसी प्रकार की कोई अनुमति नहीं लगती है। केवल माइनिंग विभाग से सेटिंग और पैसे का लेनदेन हर प्रकार की अनुमति करवा देता है। ऐसे अवैध काम के लिए माइनिंग विभाग की मौन स्वीकृति भी रहती है।
मानेगांव, बढैय़ाखेड़ा में पोकलेन 220, जेसीबी, हाइवा, डंपर जैसे बड़ी-बड़ी
मशीनों से दिन रात बे हिसाब शासकीय संपदा को लूटने का काम चल रहा है। माइनिंग विभाग का गठन ही इसलिए हुआ था कि वह शासकीय संपदा की रक्षा कर सके और शासन के हित में आने वाले कर और रॉयल्टी को वसूल कर सके लेकिन यहाँ तो मानो चोर को ही चौकीदार बना दिया गया है।
मानेगांव में जस्टिस दीपक वर्मा, कर्नल बिलजुलकर के फार्म हाउस मार्ग नहर के बाजू वाले रास्ते से मुश्किल से 500 मीटर के अंदर से लेकर एक किमी अंदर तक खनन माफियाओं ने पूरे के पूरे सरकारी पहाड़ों को खोदकर तालाब बना दिया है।
सैकड़ों डंपर रोजाना बरगी और बरेला वाली रोड से मुरम पत्थर की चोरी कर बेधडक़ दौड़ रहे हैं। दिखाने के लिए माइनिंग विभाग के द्वारा इक्का-दुक्का कार्यवाही जप्ती की दर्शा दी जाती है। लेकिन ऐसी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती जिससे कि अवैध खनन का यह सिलसिला रुक सके और सरकारी खनिज संपदा के साथ-साथ लोगों की निजी भूमि में खनन माफिया की हो रही घुसपैठ रुक सके।
प्रशासन और माइनिंग विभाग इतना लाचार नजर आता है कि वो अवैध उत्खनन में लगी बड़ी-बड़ी मशीनों तक को जप्त नहीं करता है। केवल सडक़ों पर दौड़ रहे अवैध खनिज परिवहन में लगे वाहनों को पकडक़र अपनी पीठ थपथपाने का काम किया जा रहा है।
कलेक्ट्रेट कार्यालय से लेकर जंगलों तक मुखबिरी का नेटवर्क बिछा हुआ है। सूत्रों का कहना है कि खनिज माफिया और माइनिंग विभाग कितनी तगड़ी साठ गांठ है कि जिला कलेक्टर कार्यालय से अगर माइनिंग विभाग के किसी अधिकारी या टीम की गाडिय़ां निकलती हंै तो यहां से लेकर जंगल के रास्ते के बाहर तक मौजूद मुखबिर मखुविरी का अपना काम बखूबी करते हैं और कुछ ही समय में खनिज माफिया के लोगों तक पूरी जानकारी पहुँच जाती है। माइनिंग विभाग के लोगों के पास हमेशा उत्तर के रूप में यह बहाना मौजूद रहता है कि दो पहियों पर तकवारी करने वाले लोग पहले ही सूचना दे देते हैं और मौके पर केवल खोदा गया माल और कभी-कभी मशीन मिलती हैं जबकि सभी लोग मौके से फरार हो जाते हैं।
यह दो टके का जवाब केवल वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह करने के काम आता है क्योंकि अगर माइनिंग विभाग चाहे तो मौके पर लाखों करोड़ों रुपए की अवैध खुदाई में लगी मशीनों को भी जप्त कर सकता है। ताकि अवैध खुदाई करने वालों को सबक मिल सके और उनके वाहन जप्त होने से उनकी कमर भी टूट सके।
जानकारों का कहना है की तकनीक के इस दौर में ऐसे भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को दरकिनार कर सीधे कार्यवाही करने के बहुत से तरीके हैं। वर्तमान में सेटेलाइट के माध्यम से देश दुनिया की किसी भी भूमि की वास्तविक स्थिति का पता लगाना कोई बहुत कठिन कार्य नहीं है और इस तकनीक का उपयोग शासन विभिन्न स्तर पर करता भी है। उससे और अधिक आसान उपाय सीधे मुख्य मार्ग पर खड़े होकर ड्रोन के जरिए भी 2 किलोमीटर 3 किलोमीटर अंदर तक जंगल में चल रही अवैध गतिविधियों और अवैध खुदाई के संबंध में तत्काल साक्ष्य एकत्रित किए जा सकते हैं। इसी के सहारे तत्काल मौके पर कार्रवाई भी हो सकती है कौन से सरकारी पहाड़ों को खोद कर अवैध खनन माफिया ने तालाब में बदल दिया है यह सब खुद आंखों से देखा जा सकता है। दरकार सिर्फ प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा शक्ति की है जो सरकार के हित में कुछ कार्य करें और सरकारी संपदा को लूटने से बचा पाएं और शासन को हो रही राजस्व की बड़ी हानि भी रुक सके।
