भोपाल (जयलोक) । विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद मप्र कांग्रेस में बड़ी उम्मीद के साथ बदलाव किया गया था और युवा नेतृत्व को कमान सौंपी गई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। अब पार्टी के लिए आने वाले दिन मुसीबत भरे हो सकते हैं। इसकी बड़ी वजह पार्टी के भीतर ही सुनाई देने वाले असंतोष के स्वर हैं। कांग्रेस में हार पर रार तेज हो गई है और वरिष्ठ नेताओं के निशाने पर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी हैं।
गौरतलब है कि राज्य के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सभी 29 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार के तौर पर इसे देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर मिली हार के बाद प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व और संगठन के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता हार की जिम्मेदारी तय करने और संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की बात कह रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के बाद राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने मप्र में करारी हार पर सवाल उठाते हुए संगठन में बड़े बदलाव के संकेत दिए हैं। हालांकि पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने जीतू पटवारी का समर्थन करते हुए चुनाव में हार की पूरी जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व पर डालने को उचित नहीं बताया है। मप्र में प्रदेश नेतृत्व में बदलाव होगा या नहीं, इसका फैसला पार्टी हाईकमान को करना है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अगली कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में मप्र में चुनावी नतीजों के परिप्रेक्ष्य में प्रदेश नेतृत्व की भूमिका पर चर्चा होगी और सीडब्ल्यूसी ही इस संबंध में कोई निर्णय लेगी। संभवत: जुलाई में सीडब्ल्यूसी की बैठक होगी।
पटवारी का नेतृत्व सवालों के घेरे में- दरअसल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जीतू पटवारी अब तक अपनी नई कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाए है। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के दौरान एक के बाद एक बड़ी संख्या में नेताओं, कार्यकर्ताओं, विधायकों द्वारा पार्टी छोडऩे से पटवारी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और उसमें कांग्रेस को बड़ी हार मिली थी। उसके बाद पार्टी में बड़ा बदलाव किया गया था और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को हटाकर उनके स्थान पर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप गई थी। अब पार्टी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी के भीतर दबे स्वर में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने की बात जोर पकड़ रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि वर्ष 2013 के चुनाव में जब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो जीतू पटवारी को पार्टी की कमान संभाले लगभग पांच माह का वक्त पूरा हो गया है, मगर वह अब तक अपनी पूरी कार्यकारिणी का भी गठन नहीं कर पाए। इसकी वजह भी पार्टी के अंदर जारी खींचतान को माना जा रहा है। इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। इन नेताओं को न तो मनाने की कोशिश हुई और न ही रोकने के प्रयास किए गए। इस बात से भी पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ और कमलनाथ छिंदवाड़ा तक सीमित रह गए। उधर, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव भी अपनी दावेदारी करने में पीछे नहीं रह रहे हैं।
प्रदेश कार्यकारिणी में वरिष्ठ नेताओं ने लगाया अड़ंगा- कांग्रेस नेताओं को बेसब्री से प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा का इंतजार है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी प्रदेश कार्यकारिणी के नामों की सूची किल्ली भेज चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी को उम्मीद थी कि पार्टी हाईकमान 15 जून से पहले प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा कर देंगे, लेकिन अब तक कार्यकारिणी का ऐलान नहीं हो पाया है और निकट भविष्य में भी प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा के आसार नहीं है। सूत्रों का कहना है कि बड़े नेताओं के प्रभाव में प्रदेश कार्यकारिणी का गठन अटक गया है। वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली में शिकायत की है कि प्रदेश कार्यकारिणी के गठन को लेकर उनसे कोई राय-मशविरा नहीं किया गया। दिल्ली भेजी गई सूची में उनके समर्थकों के नाम शामिल नहीं है। नेताओं ने कहा है कि यदि जल्दबाजी में कार्यकारिणी की घोषणा की जाती है, तो पार्टी में कलह और बढ़ सकती है। यही वजह है कि प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा नहीं की गई है। भेजे गए नामों में काट-छांट कर और कुछ नए नाम जोडकऱ सूची जारी की जाएगी। इसमें कुछ समय लग सकता है। गौरतलब है कि इस बार कांग्रेस ने जंबो कार्यकारिणी बनाने के स्थान पर प्रदेश कार्यकारिणी में चुनिंदा नेताओं के नाम शामिल किए है।
कांग्रेस की बढ़ सकती हैं मुश्किल- पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चुनाव में भले ही हार हो गई हो, मगर संगठन को मजबूत करने के प्रयास किए जाने की जरूरत है, जो फिलहाल नजर नहीं आ रहे। यह बात ठीक है कि भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, कांग्रेस इससे खुश हो सकती है, लेकिन राज्य में तो पार्टी को अपनी मजबूती दिखानी होगी। पार्टी में वर्तमान जैसी स्थितियां है, वैसी ही बनी रही तो आने वाले दिनों में मजबूत होने की बजाय पार्टी और कमजोर होगी। सांसद विवेक तन्खा ने कहा, चुनाव में करारी हार के बाद मप्र और छत्तीसगढ़ में संगठन में बड़े बदलाव राज्यसभा को लेकर चर्चा की जा रही है। दोनों ही राज्यों में नई लीडरशिप की जरूरत है। चुनाव में पार्टी क्यों हारी, इस पर आत्ममंथन की जरूरत है। मंथन के बाद तय किया जाएगा कि पार्टी की आगे की रणनीति क्या होगी।