जबलपुर, (जयलोक)
गर्मी के आते ही हर साल दूध के दाम बढ़ जाते हैं। इस साल भी ऐसा ही हुआ। शहर में गुपचुप तरीके से 70 रुपए लीटर दूध बिकने लगा और सब खामोश हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और उपभोक्ताओं से जुड़ी संस्थाओं की खामोशी से लोग हैरान हैं। दूध का क्वालिटी भी घटिया मिल रही है। पानी मिला और ऑक्सीटोसन से उत्पादित दूध बिक रहा हैं और दूधियों के खिलाफ कोई एक्शन दिखाई नहीं दे रहा। दरअसल जानकारों का कहना है कि हर साल गर्मी के समय दही, लस्सी और मठा की मांग बढऩे से दूध की माँग भी बढ़ जाती है। वहीं छेने की मिठाईयां भी गर्मियों में जल्दी खराब होती हैं उसका असर भी दूध की मांग पर पड़ता हैं। दूसरी वजह बड़ी वजह यह है कि जबलपुर से नागपुर बड़ी मात्रा में दूध का निर्यात किया जाता है। जहां तक दूध उत्पादन से जुड़ी सामग्री का सवाल है तो चारा, भूसा, खली, चुनी के दाम के मोल में कोई वृद्धि नहीं हुई है भैसों के दाम जरुर बढ़ गए हैं। वह भी हरियाणा से आने वाली भैसों के दाम कुछ ज्यादा हैं। दूध का रेट बढ़ाना हर साल एक समस्या हो गई। एक बार दाम बढ़ जाते है तो वह स्थाई हो जाते है उत्पादन लागत कम होने के बाद भी दूध महंगा बिकता है। इस बार चुनाव में दूध के दामों का हल्ला न मचे, इससे बचने दूधियों ने दूध के दाम 1 जून से घोषित रुप से बढ़ा दिए है। डेयरियों में 68 रुपए लीटर दूध के दामों के नोटिस बोर्ड टंगे है। जाहिर है आजकल एक या दो के सिक्के नहीं चलते, लिहाजा एक लीटर दूध 70 रुपए का और आधा लीटर दूध 35 रुपए का मिल रहा हैं। दूध के दाम बढ़े आज पूरे एक हफ्ते हो गए लेकिन कही हो-हल्ला नहीं मच रहा। बाजार में चर्चा है कि चुनाव के दौरान दूध माफिया ने जमकर राजनीतिक दलों की सेवा सुश्रा की, लिहाजा अब कोई हो-हल्ला नहीं हो रहा हैं। नियमित फ्लाईट सेवा के लिए सभी संगठन लामबंद होकर आंदोलन करने के लिए जुट गए। जबकि हवाई यात्रा उद्योगपतियों और नेताओं व रईसों से जुड़ी सेवा है। दूध न केवल अति आवश्यक वस्तु है बल्कि रोजमर्रा की घर-घर की जरुरत हैं। दूध महंगा होने से मासूम बच्चों का निवाला भी छीना जा रहा है अब किसी को तकलीफ महसूस नहीं हो रहा है। आम आदमी अपने आप को ठगा महसूस कर रहा हैं। जबलपुर में सबसे महंगा दूध बिक रहा है इसके बावजूद यहां के जनप्रतिनिधि मौन साधे हुए हैं। सत्ता पक्ष न सहीं कम से कम विपक्ष करारी हार के बाद जनपक्षों के मुद्दें को लेकर मैदान में उतर सकता हैं लेकिन करारी हार के बाद विपक्ष का मनोबल टूट गया। लिहाजा उपभोक्ता हितों के लिए काम करने वालें संगठनों पर अब इसकी जिम्मेदारी आ गई है। जनापेक्षा है कि दूध के दामों की समीक्षा की जाए। जो रेट उपयुक्त हो वो निर्धारित किए जाए। जिला प्रशासन से भी इस दिशा में कारगार कदम उठाने की उपेक्षा की है।
