जबलपुर (जयलोक)। पॉवर का दुरुपयोग कर फर्जी वसीयत बनाकर करोड़ों की जमीन हड़पने के मामले में फरार पटवारी जागेन्द्र पीपरे ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया। पटवारी पर पाँच हजार का इनाम भी घोषित किया गया था। शासन की ओर से की जा रही कार्यवाही के संदर्भ में फरार ईनामी पटवारी को प्रस्तुत होने के लिए दो बार आम सूचना का प्रकाशन भी किया जा चुका था। पटवारी जागेन्द्र पीपरे की ओर से यह पक्ष रखा गया है कि, उन्होंने नीयम विरूद्ध कोई कार्य नहीं किया है एवं इस प्रकरण में उन्हें बेवजह संलिप्त किया गया है। इस मामले में तहसील हरिसिंह धुर्वे को पूव में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। तहसीलदार पटवारी सहित सात लोगों पर मामला दर्ज किया गया था। जिसके बाद से ही पटवारी फरार था। लेकिन बढ़ते दबाव के कारण पटवारी ने खुद ही सरेंडर कर दिया। पुलिस ने पूछताछ के लिए पटवारी को एक दिन की रिमांड पर लिया। जिसकी रिमांड खत्म हो जाने के बाद आज उसे कोर्ट में पेश किया गया है।
पटवारी जागेन्द्र पीपरे ने पुलिस को पूछताछ में इस मामले से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया। जागेन्द पीपरे से पुलिस को पता चला है कि किस तरह से करोड़ों की जमीन को हड़पने के लिए योजना बनाई गई थी। पटवारी खुद को सिर्फ मोहरा बता रहा है। जबकि वह पूरा कारनामा तो अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों के सिर पर फोड़ रहा है। हालांकि पुलिस और भी पूछताछ के लिए आज फिर कोर्ट से पटवारी की रिमांड माँग सकती है।
पॉवर का दुरूपयोग पड़ा खुद पर भारी
पॉवर का दुरूपयोग कर फर्जी वसीयत तैयार कर करोड़ों की जमीन हड़पने वाले तहसीलदार और पटवारी सहित अन्य लोगों को अब इस चीज का आभास होने लगा है कि उनकी इस गलती ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुँचा दिया है।
यह मामला अधिकारों के दुरुपयोग, सुनियोजित षड्यंत्र और कूट रचना कर भूमि नामांतरण आदेश पारित करने का है। कलेक्टर दीपक सक्सेना के निर्देश पर यह एफआईआर अनुभागीय राजस्व अधिकारी शिवाली सिंह द्वारा विजय नगर थाने में दर्ज कराई गई। इस प्रकरण में तहसीलदार हरिसिंह धुर्वे को गिरफ्तार कर लिया गया था, जो अब जमानत पर बाहर है।
ये है मामला
मामला ग्राम रैगवां की 1.1 हेक्टेयर भूमि का है, जहाँ पर करीब 50 वर्षों से शिवचरण पांडे का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज था। तहसीलदार हरिसिंह धुर्वे ने अवैध रूप से नामांतरण करते हुए शिवचरण पांडे का नाम हटा दिया। यह नामांतरण एक अपंजीकृत वसीयत के आधार पर किया गया, जो कथित रूप से 50 साल पुरानी थी और महावीर प्रसाद द्वारा निष्पादित की गई थी। जाँच में यह पाया गया कि महावीर प्रसाद का नाम भूमि के राजस्व अभिलेखों में कभी दर्ज नहीं था, फिर भी उनकी कथित वसीयत के आधार पर यह अवैध नामांतरण किया गया। खोजबीन में पाया गया कि वसीयत के गवाहों और दस्तावेजों में भी कई अनियमितताएँ थीं। गवाहों के शपथ पत्र नोटराईज्ड थे, लेकिन उनके हस्ताक्षर अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों से मेल नहीं खाते थे। इसके अलावा, पटवारी जागेंद्र पिपरे की रिपोर्ट को भी पक्षपाती और गलत पाया गया।
इनका कहना है
पटवारी जागेन्द्र पीपरे की रिमांड खत्म होने के बाद आज उसे कोर्ट में पेश किया गया है। पूछताछ में पटवारी से इस मामले में बहुत कुछ उजागर हुआ है।
कमलेश मेश्राम, एसआई
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