जबलपुर (जयलोक)। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत, न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति विवेक जैन की फुल बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि तहसीलदार महज इस आधार पर नामांतरण का आवेदन को निरस्त नहीं कर सकता कि वह वसीयत पर आधारित है। तहसीलदार को निर्विवाद रूप से वसीयत के आधार पर नामांतरण का अधिकार है।
उक्त विवाद को लेकर दो न्यायाधीशों ने अलग-अलग मत व्यक्त किए थे, जिस पर इसके निराकरण के लिए फुल बेंच का गठन किया गया था। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कानूनी सिद्धांत का प्रतिपादन कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में अभिनिर्धारित किया कि यदि वसीयतकर्ता के किसी कानूनी उत्तराधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वसीयत निष्पादित करने की प्रामाणिकता से संबंधित कोई विवाद नहीं उठाया जाता है, तो ऐसे मामलों में तहसीलदार को नामांतरण करने का अधिकार है। तहसीलदार निजी पक्षों के बीच मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 109 और 110 के अंतर्गत नामांतरण के मामलों में न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्य नहीं करता है, बल्कि केवल प्रशासनिक कार्य करता है। इसलिए वह नामांतरण के आवेदनों पर निर्णय लेने के उद्देश्य से कोई साक्ष्य लेने के लिए अधिकृत नहीं है।
क्या था मामला
नर्मदापुरम निवासी आनंद चौधरी, कटनी के विजय यादव सहित पांच ने याचिकाएं दायर की थीं। इस मामले में पूर्व में एक न्यायाधीश ने कहा था कि वसीयत के आधार पर कृषि भूमि का नामांतरण नहीं किया जा सकता, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा था कि तहसीलदार को इसका अधिकार है। विरोधाभासी आदेशों के कारण यह मामला फुल बेंच में रेफर किया गया। सुनवाई के बाद बेंच ने कहा कि तहसीलदार वसीयत के आधार पर नामांतरण के लिए आवेदन स्वीकार कर सकता है, लेकिन नियमानुसार मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के बारे में पूछताछ करना और उन्हें नोटिस देना उसके लिए अनिवार्य होगा।
