जबलपुर (जय लोक)
भारतीय जनता पार्टी बहुत ही जल्द व्यवस्था को सीख कर उसे लागू करने वाला राजनीतिक दल है। भाजपा के नेता भी इस मामले में पीछे नहीं रहते। विगत कुछ महिनों से समीकरण बदलने के बाद से एक बात और महसूस की जा रही है कि वर्तमान समय में प्रदेश स्तर के भाजपा नेताओं से लेकर स्थानीय स्तर के नेताओं तक सभी भाजपा नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर प्रचारक याने पीआरओ की व्यवस्था जमा रखी है। मूल रूप से पी.आर.ओ का पद हर एक शासकीय विभाग में होता था। जो जनमानस और विभाग के बीच की कड़ी माना जाता है। विभाग या संस्थान की गतिविधियों को सार्वजनिक रूप से प्रचारित-प्रसारित करने का काम इनके जिम्में होता है।
राजनीतिक दलों में इस कार्य के लिए मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता के हर स्तर पर पद होते हैं। भाजपा में तो यह व्यवस्था नजर आती है, इसका पालन भी होता है। लेकिन वर्तमान में कांग्रेस में इस नाम की कोई चिडिय़ा नहीं है। यहाँ तो बिना राजा की फौज वाला आलम नजर आता है। कांग्रेस में हर नेता खुद ही अपने और पार्टी सम्बंधित गतिविधियों के प्रचार का काम करता है।
अधिकृत रूप से पार्टी की गतिविधियों और पार्टी नेताओं के प्रचार आदि से संबंधित जो भी जानकारियाँ होती हैं वह इन्हीं अधिकृत पदाधिकारी के माध्यम से आती है। लेकिन वर्तमान में दूसरा दौर चल रहा है।
अपनी डफली..अपना राग की तर्ज पर हर बड़े भाजपा के नेता के पास अपनी स्वयं की पब्लिसिटी करने के लिए पी.आर.ओ की पृथक व्यवस्था है। मतदान वाले दिन यह बात स्पष्ट रूप से उजागर भी हुई। हर नेता के माध्यम से उनके प्रचारकों द्वारा अपने अपने स्तर पर उनके फोटो को प्राथमिकता से मीडिया संस्थानों तक पहुँचाने का कार्य किया गया। इसके बाद यह बात प्रकाश में आ गई कि भाजपा के अंदर अपनी ही अलग तरह की व्यवस्था काम कर रही है। कुछ ऐसे नेता भी हैं जो अभी हाल ही में भाजपा में गए हैं और उन्हें पब्लिसिटी मिलने का अभाव नजर आ रहा है। इस वजह से भी ऐसे नेताओं ने स्वयं ही अपने प्रचार की अलग व्यवस्था करने को ही उचित समझा ताकि उनके द्वारा की जा रही गतिविधियाँ शहर वासियों के समक्ष आ सकें और मीडिया में उनका स्थान बना रह सके। कुछ ऐसे भी नेता हैं जो आपसी मनमुटाव के कारण प्रचार प्रसार में पीछे रह जाते हैं ऐसे नेताओं ने खुद को दौड़ में बनाये रखने के लिए अपने प्रचारक रखने का यह रास्ता निकाल लिया है।