आम जनता को मिली राहत, शिक्षा माफिया पर प्रहार
जबलपुर (जय लोक)। 1 अप्रैल को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहले ट्वीट कर पूरे प्रदेश में हावी शिक्षा माफिया को खुली चुनौती दी और सुधर जाने की हिदायत दी। साथ ही सभी जिले के कलेक्टरों को यह निर्देशित किया कि शिक्षा माफिया के खिलाफ आ रही शिकायतों पर सख्ती से कार्रवाई करें। फिर क्या था जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने इन 60 दिनों में पूरे देश के समक्ष ऐसी नज़ीर प्रस्तुत की है कि यह 60 दिन शिक्षा माफिया कभी नहीं भूल पाएगा।
जबलपुर में हुई कार्यवाही का असर देश भर में पहले फर्जी प्रकाशन संस्थानों पर भी पड़ेगा। देर सवेर इनके द्वारा छापी गई फर्जी आईएसबीएन वाली पुस्तकों के मामले में इन्हे जेल की हवा खानी पड़ेगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा पर चलते हुए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कदम दर कदम बढ़ाते हुए आज इस कार्यवाही को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है कि हर कोई अपने जिले में ऐसा ही कलेक्टर और ऐसी ही शिक्षा माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई माँग कर रहा है।
दैनिक जय लोक ने माफिया द्वारा देश में पहली बार हुई इतनी बड़ी कार्रवाई और इसको अंजाम देने की कार्य योजना बनाने वाले जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना से इस विषय पर विशेष साक्षात्कार किया। इस पूरे प्रकरण की रूपरेखा को समझने के बाद यह स्पष्ट समझ आया कि यह खेल हजारों करोड़ रुपए का है, मुनाफाखोरी में अंधे हुए लोगों ने सिंडिकेट बनाकर लाखों बच्चों के अभिभावकों को जमकर लूटा है। यह बात भी स्पष्ट समझ में आई कि आने वाले समय में इस कार्रवाई का स्वरूप बढ़ता जाएगा और परत दर परत कई चौंकाने वाले खुलासे होंगे।
पुस्तक मेले से ज्यादा बढ़ा लोगों में विश्वास
जयलोक के सवाल के जवाब में कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा कि जब प्रारंभिक तौर पर स्कूलों द्वारा की गई फीस वृद्धि और अन्य बातों को लेकर आम व्यक्ति और अभिभावकों से शिकायतें आमंत्रित की गईं तो फिर आगे नहीं आए। इस स्थिति को देखते हुए मैंने खुद ही अपना व्हाट्सएप नंबर सार्वजनिक रूप से जारी कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि पहले दिन में ही 300 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं और यह भी समझ में आया कि लोग शिकायत करना चाहते हैं, लेकिन सिर्फ ऐसे व्यक्ति के पास जहाँ उनका नाम गोपनीय भी रह सके और उनकी शिकायतों पर प्रभावी रूप से कार्रवाई भी हो सके। प्रारंभिक जाँच में पाया गया की पुस्तकों, स्टेशनरी के सामान, यूनिफॉर्म, कॉपी किताब को मनमाने दाम पर बेचा जा रहा है। इसलिए प्रारंभिक कदम बढ़ाते हुए पुस्तक मेले की 10 दिन में परिकल्पना की गई। पुस्तक मेले से हमें कई बातें सीखने को मिलीं, बहुत से अनुभव हुए और सबसे बड़ी बात प्रशासन की कार्यवाही पर लोगों का विश्वास जागा। जिसका परिणाम यह हुआ है कि और अधिक शिकायतें, गंभीर अनियमितता को उजागर करती हुईं सामने आने लगीं।
25 हजार से ज्यादा, 90 प्रतिशत फर्जी किताबें हुई जप्त
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने इस बात का भी खुलासा किया कि छापामार कार्रवाई के दौरान पुस्तक विके्रताओं के हाथ से 25 हजार से ज्यादा फर्जी किताबों में गलत आईएसबीएन नंबर लिखा हुआ था या फिर आईएसबीएन नंबर था ही नहीं जब जप्ती की गई। कलेक्टर ने बताया कि यहां बरामद हुई किताबें दुकान में उपलब्ध किताबों का 90 से 95 प्रतिशत का हिस्सा थीं।
अंदाजा नहीं था कि इतना बड़ा होगा घोटाला
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जय लोक के सवाल पर कहा कि उन्हें प्रारंभिक तौर पर यह अंदाज नहीं था कि यह घोटाला इतने बड़े स्तर पर होगा। लेकिन जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ी तो यह पाया गया कि स्कूलों ने ना तो फीस बढ़ाने के पूर्व शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया। ना ही वे इस बात की जानकारी दे पा रहे हैं की फीस बढ़ाने का आधार क्या था। स्कूलों द्वारा जमा करने वाली ऑडिट रिपोर्ट में भी बहुत सारी गड़बड़ी थी। यहां तक की फर्जी आईएसबीएन वाली किताबें लगाई जा रही थीं। लूट का खुला खेल चल रहा था और परत दर परत इसके सबूत जाँच के दौरान सामने आने लगे। तब हमें अंदाजा हुआ कि यह पूरा खेल सैकड़ों हजारों करोड़ का है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने की महत्वपूर्ण गणना
जय लोक के सवाल पर दीपक सक्सेना ने बताया कि इस कार्यवाही को मूल रूप में ले जाने के लिए जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी काफी मेहनत की है। जिला शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्कूलों की गड़बड़ी पकडऩे के लिए एक माह तक गणना भी की। स्कूलों में 6 से 7 साल की गणना भी की गई। निर्धारित नियमों के पालन से संबंधित स्कूलों से दस्तावेज माँगे गए तो उन्होंने उतना सहयोग नहीं किया। लेकिन की गई गणना से यह स्पष्ट हो गया कि फीस बढ़ोतरी के मामले में भी बड़ी गड़बड़ी हुई है, किताबों को लागू करने के मामले में भी कमीशनखोरी हुई है।
फर्जी किताबों का एमआरपी से कोई मतलब नहीं, पन्ने गिनकर निकाली कीमत
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बताया कि जब यह जाँच पड़ताल आगे प्रारंभ हुई , उस दौरान यह पाया गया कि फर्जी आईएसबीएन वाली किताबों का उत्पादन और उपयोग केवल कमीशन खोरी और मुनाफा खोरी के उद्देश्य से किया गया। इन फर्जी किताबों का उसमें दर्ज एमआरपी से कोई लेना देना नहीं। इसलिए इन किताबों का वास्तविक मूल्य निकालने के लिए इनके एक एक पन्ने की गिनती करवाई गई। उसके आधार पर किताब के मूल्य का आंकलन किया गया और एमआरपी से उसका अंतर निकाला गया। इसमें 60 प्रतिशत तक का अंतर मुनाफे के लिए निकाल कर रखा गया है। जो कि सरासर गलत है। इसी प्रकार स्टेशनरी के समान में भी 60 से 70 प्रतिशत तक का मार्जिन पाया गया।
करोड़ों के कमीशन का खेल
जाँच के दौरान कलेक्टर दीपक सक्सेना के समक्ष यह बात भी निकल कर सामने आई की पूरे मामले में 4 करोड़ रुपए के आसपास की राशि कमीशन के रूप में इधर से उधर हुई है। जब यह स्पष्ट समझ में आने लगा कि आपराधिक षड्यंत्र बनाकर इस काम को अंजाम दिया गया है तो फिर पुलिस को भी इस जाँच का हिस्सा बनाया गया।
कमीशन बढ़ाने किताबों की संख्या बढ़ाई
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बताया कि जाँच के दौरान यह भी पाया गया कि जिन स्कूलों ने मनमर्जी की किताबें को लागू करने के लिए प्रकाशकों से साठगांठ की थी उन्होंने कमीशन अधिक खाने के चक्कर में नियमों की अवहेलना करते हुए और अधिक किताबें लागू कर दीं ताकि उन्हें और अधिक कमीशन प्राप्त हो सके। कलेक्टर ने कहा कि जब उनका इससे भी मन नहीं भरा तो फर्जी आईएसबीएन वाली किताबों को भी स्कूलों में लागू कर दिया गया।
2 माह पहले से किताबों का ऑर्डर और मार्च में दी सूचना
कलेक्टर सक्सेना ने बताया कि जांच के दौरान यह बात सामने आई कि जिन किताबों को स्कूल द्वारा मार्च में लागू किए जाने की सूचना अभिभावकों को दी जाती है उसके लिए दिसंबर जनवरी से ही प्रकाशक को ऐसी किताबें छापने का आर्डर दे दिया जाता है। इस बात के पुख्ता प्रमाण प्रशासन को मिले हैं जो इस कमीशन खोरी के खेल को उजागर करते हैं।
बहुत बड़ा है घोटाले की राशि का आंकड़ा
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जय लोक के सवाल पर कहा कि प्रारंभिक तौर पर यह जो 240 करोड़ का आंकड़ा निकल कर सामने आया है, वास्तव में अगर सही आंकलन और गणना की जाएगी तो यह पूरा घोटाला इससे भी कहीं अधिक राशि का निकलेगा। मिली भगत कर कमीशन खोरी करने के लिए पूरा आपराधिक षड्यंत्र रचकर सिंडिकेट की तर्ज पर कार्य किया गया है। 2018 से अगर हम गणना करायेंगे कि किस प्रकार से अधिक फीस वसूली की गई, कॉपी किताब में किस प्रकार से कमीशन लिया गया, अन्य मदों में कैसे अतिरिक्त राशि वसूली की गई तो यह आंकड़ा बहुत अधिक हो जाएगा।
जाँच के दायरे में जो हैं उन पर होगी कार्रवाई
प्रारंभिक तौर पर अभी केवल शहर के 11 स्कूलों के खिलाफ जांच प्रक्रिया पूरी हो पाई है। ऐसे 75 स्कूल हैं जिनके खिलाफ शिकायत आई हैं। इनमें से अधिकांश स्कूल बड़े नामधारी हैं और इन्हीं ने सबसे ज्यादा चोरी की है। ऐसी स्थिति में जिन स्कूलों के खिलाफ जांच की प्रक्रिया जारी है उनके खिलाफ भविष्य में जल्द ही कार्रवाई होगी।
1 लाख 18 हजार बच्चों से अधिक वसूले 81 करोड़ 30 लाख रुपए
कलेक्टर ने इस बात का भी खुलासा किया कि प्रारंभिक जाँच में जिन 11 स्कूलों के खिलाफ जाँच पूरी हुई है, उसमें यह बात स्पष्ट निकल कर सामने आई है इन स्कूलों में पढऩे वाले 1 लाख 18 हजार बच्चों से स्कूल प्रबंधन ने 81 करोड़ 30 लाख रुपए अधिक वसूले है। इन स्कूल वालों को वसूली गई फीस अभिभावकों के खाते में जमा करने के लिए कहा गया है।
जिन खातों से ली उन्हीं में वापस करेंगे फीस
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा कि प्रारंभिक 11 स्कूलों की जाँच में पाया गया है कि 118000 बच्चों से 81 करोड़ 31 लाख रुपए फीस के नाम पर अधिक वसूल किए गए हैं। यह बहुत स्पष्ट है और स्कूलों के पास रिकॉर्ड भी है कि अधिकांश फीस ऑनलाइन जमा हुई है। बढ़ी हुई फीस इन स्कूल संचालकों को उन्हीं खातों में वापस लौटना होगी जिन खातों से उन्होंने फीस वसूल की थी।
सुखद दिख रहा है इस कार्यवाही का भविष्य
जय लोक के सवाल पर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जवाब देते हुए कहा कि इस कार्यवाही का भविष्य वह अच्छा देख रहे हैं। 2018 में मध्य प्रदेश में शिक्षा से संबंधित एक्ट लागू हुआ। इसे समझने में लागू करवाने में 3-4 साल सामान्य रूप से लग जाते हैं। इस कार्यवाही से जबलपुर ही नहीं पूरे प्रदेश और देश में शिक्षा अधिनियम के संबंध में लोगों के बीच में जागरूकता आई है। वह अपने अधिकार के बारे में जान रहे हैं, समझ रहे हैं। मैं यह देख रहा हूँ कि अब यह जागरूकता इस कमीशन खोरी और मिली भगत के खेल को चुनौती देगी और भविष्य में यह व्यवस्था बदलेगी।
पुस्तक मेला लगाने से पहले मारे छापे
कार्यवाही का घटनाक्रम बताते हुए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जय लोक को बताया कि जब हमें गड़बड़ समझ में आने लगी तो हमने पहला कदम बढ़ाते हुए पुस्तक मेले के आयोजन की परिकल्पना की। इस दौरान हमें यह सुझाव प्राप्त हुए कि मेला लगने से पहले हमें फर्जी आईएसबीएन के माध्यम से पुस्तक का विक्रय करने वाले पुस्तक विके्रताओं के यहाँ छापा मारकर उन किताबों को जप्त कर लेना चाहिए अन्यथा वह पुस्तक मेले में बिक जाएंगी और साक्ष्य मिट जाएंगे। इसीलिए पुस्तक मेला लगने से 1 दिन पहले संबंधित एसडीएम और उनकी टीम को, तहसीलदार को आदेशित किया गया कि वह ऐसे पुस्तक विके्रताओं के यहां छापामार कार्रवाई को अंजाम दे।
कार्यवाही का असर बच्चों पर आया तो स्कूल की खैर नहीं
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में यह संदेश दिया है कि जिन अभिभावकों के द्वारा जिन स्कूलों की अनियमितता की शिकायत की गई है अगर किसी भी स्कूल में इस बात का आधार बनाकर स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को परेशान किया गया या उससे भेदभाव हुआ तो स्कूल कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार रहें। कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा कि मेरा बहुत स्पष्ट मत है कि कार्यवाही का असर अगर बच्चों पर पड़ा तो स्कूल प्रबंधक और संचालकों को सख्त कार्रवाई से गुजरना होगा जो उन्हें काफी भारी पड़ सकता है।
दो यूनिफार्म लगा सकते हैं स्कूल 3 साल तक नहीं होता है बदलाव
यूनिफॉर्म के मामले में अभिभावकों के बीच में बहुत चिंता व्याप्त है। कॉपी किताब का माफिया जैसे स्कूलों से साठगांठ कर इस लूट को अंजाम देता था , वैसे ही यूनिफॉर्म माफिया लाखों करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाने के लिए अभिभावकों को लूट रहा है। एक ही स्कूल में कई प्रकार की यूनिफॉर्म लगाई जाती हैं। इस सवाल पर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बहुत स्पष्ट कहा कि इस बारे में शिकायतें उनके समक्ष आई हैं। यूनिफॉर्म के मामले में स्पष्ट निर्देश हैं कि कोई भी स्कूल दो यूनिफार्म लागू कर सकता है। किसी भी यूनिफार्म को 3 साल तक नहीं बदला जाना चाहिए। कलेक्टर सक्सेना ने कहा कि उन्होंने स्कूलों से यह बात कही है कि यूनिफार्म स्कूल के ब्रांड जैसी होती है। इसे बार बार बदलना नहीं चाहिए। यह भी स्पष्ट है की यूनिफार्म को जानबूझकर चेक वाली, पॉकेट वाली, लोगो-मोनो वाली सिलवाई जाती है ताकि सिर्फ चुनिंदा यूनिफार्म विके्रता के ही पास यह उपलब्ध हो सके एवं मनमाने दामों पर इसका विक्रय हो सके।
लगेगा यूनिफार्म मेला
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जयलोक को बताया कि जून माह के अंत में वे पुस्तक मेले की तर्ज पर यूनिफार्म मेले का आयोजन करने जा रहे हैं। इसके माध्यम से बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली यूनिफार्म बहुत कम दाम पर उपलब्ध हो सकेंगी। महिला स्व सहायता समूह वह अन्य लोगों को आमंत्रित कर इस मेले का आयोजन किया जाएगा।
अपने हक का सवाल पूछें बच्चे और अभिभावक
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने स्कूल के बच्चों और उनके अभिभावकों से कहां है कि वे मूल रूप से पाँच सवालों को याद कर लें और जब भी फीस वृद्धि की बात आए तो उन्हें अपने हक के लिए यह सवाल जरूर पूछना चाहिए। पहला सवाल क्या स्कूल ने ऑडिट रिपोर्ट पोर्टल पर अपलोड की है? दूसरा क्या आपकी वार्षिक फीस वृद्धि का आधिक्य कुल प्राप्ति के 15 प्रतिशत से कम है? क्या आपने औचित्य सहित फीस वृद्धि की सूचना सत्र प्रारंभ होने के 90 दिवस की अवधि में प्रशासन को दी है? क्या आपने 10 प्रतिशत से अधिक फीस वृद्धि के लिए सक्षम स्वीकृति जिला कलेक्टर या राज्य शासन से प्राप्त की है? यदि नहीं तो फिर कैसे फीस समृद्धि की जा रही है?
विशेषज्ञों की समिति से स्कूल करवा सकते हैं अपनी समीक्षा
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा कि हम स्कूलों को भी एक मौका देना चाहते हैं कि उनके द्वारा जो गलतियां पूर्व में हुई हैं वह उसे सुधार सकें। इसीलिए जल्द ही विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा। जो स्कूलों के फीस वृद्धि से लेकर अन्य विषयों के संबंध में समीक्षा करेगी। स्कूलों को भी स्वतंत्र रूप से इस समिति के समक्ष अपने प्रकरण की समीक्षा करवाने के लिए आगे आने का आवाहन किया गया है। जो स्कूल साफ पाक हैं उन्हें इस समिति के द्वारा स्कूल के साफ सुथरे होने का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया जाएगा और जिन स्कूलों ने अतिरिक्त फीस वसूली की है उन्हें एक अवसर दिया जाएगा कि वह बढ़ी हुई फीस वापस कर दें।