जबलपुर (जयलोक)
संस्कारधानी के औद्योगिक विकास की दिशा में मध्य प्रदेश शासन ने एक बड़ा कदम उठाया। इसके तहत एक ऐतिहासिक आयोजन रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव के रूप में विगत 20 जुलाई को जबलपुर में संपन्न हुआ। लगभग 4000 लोगों ने इसमें अपनी सहभागिता की। खुद मुख्यमंत्री 5 से 6 घंटे तक उद्योगपतियों के बीच में उपस्थित रहे। मुख्यमंत्री का पूरा ध्यान और जोर इसी बात पर था कि किसी भी तरीके से जबलपुर और महाकौशल में अच्छे निवेश की साझेदारी बड़े उद्योगपतियों के साथ हो जाए। कुछ हद तक यह आयोजन इस मुकाम को पाने में सफल रहा। 20 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव आए हैं। आधा सैकड़ा से अधिक कार्यों के भूमि पूजन और लोकार्पण मुख्यमंत्री ने वर्चुअल कार्यक्रम के दौरान किए हैं। इस पूरे आयोजन में सबसे चौंकाने वाली और आश्चर्य चकित करने वाली बात यह थी कि इस पूरे आयोजन से यानी की पहली बार हुए रीजनल कॉन्क्लेव से जबलपुर और महाकौशल के करोड़पति कांग्रेसी उद्योगपतियों ने पूरी तरीके से दूरी बनाकर रखी। जबलपुर में ही ऐसे बहुत से बड़े-बड़े नाम है जिनका कारोबार करोड़ अरबों में चल रहा है लेकिन उन्हें शायद जबलपुर के औद्योगिक विकास की ओर बढ़ाए गए इस कदम के साथ कदम मिलाना उचित नहीं लगा। शायद इन कांग्रेसी उद्योगपतियों को राजनीति अधिक महत्वपूर्ण लगी और उन्होंने यह तय कर लिया कि यह लोग जबलपुर के विकास की दृष्टि से आगे बढ़ाए जा रहे इस कदम और इस विकास के आयोजन से अपनी भूमिका दूर रखेंगे।
जबलपुर के अलावा पूरे महाकौशल में भी ऐसे कई दिग्गज उद्योगपतियों के नाम हैं जो कांग्रेस के बैनर पर दशकों से राजनीति करते आ रहे हैं। लेकिन आज जब मध्य प्रदेश सरकार ने आगे बढक़र उद्योगपतियों के लिए सुविधाओं का पिटारा खोला तो इन कांग्रेसी उद्योगपतियों ने इस पूरे आयोजन से दूरी बना ली। क्या इनके पास उद्योग से संबंधित कोई सफल योजनाएं नहीं है जिन्हें उद्योग के रूप में जबलपुर और महाकौशल के आसपास स्थापित किया जा सके? क्या ऐसे कांग्रेसी उद्योगपतियों के पास जबलपुर और महाकौशल में निवेश करने के लिए पैसे की कमी है? या यह सिर्फ विदेश में ही और देश के दूसरे बड़े शहरों में ही निवेश को सुरक्षित मानते हैं? क्या ऐसे कांग्रेसी उद्योगपतियों की जवाबदारी और जिम्मेदारी नहीं है कि वह भी अपने क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे बड़े निवेश के मौकों पर आगे आकर अपनी भूमिका अदा करें।
यह बात भी संभव है कि भाजपा सरकार ने अपने संयोजन में आयोजित कान्क्लेव में कांग्रेसियों को ज्यादा तवज्जो न दी हो। भले ही फिर वह बड़े उद्योगपति ही क्यों ना हो। अगर ऐसा है तो भी इस राजनीतिक गतिविधियों का नुकसान विकास के कार्यों और संभावनाओं के छूट जाने पर पड़ेगा।
यह बात तो तय है कि कुछ ही समय बाद कांग्रेस के नेता इस रीजनल इंडस्ट्रियल कान्क्लेव को लेकर प्रदर्शन करते और विज्ञप्तियां जारी करते नजर आएंगे। लेकिन उस दौरान भी इस बात पर कोई चर्चा नहीं करेगा की अरबों करोड़ों के इसी मिट्टी पर रहकर काम करने वाले कांग्रेसी उद्योगपतियों ने इस रीजनल कॉनकेव में आगे आकर अपनी भूमिका क्यों नहीं सुनिश्चित की।