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अपने कर्तव्य और अधिकार से अनजान ईओडब्ल्यू , बिना अधिकार ही दर्ज कर ली प्राथमिकी : रेरा में हुई नियुक्तियों की कैसे होगी पड़ताल…?

@ डॉ. नवीन जोशी
भोपाल (जयलोक)। मध्य प्रदेश  पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अपने ही विभाग के मैन्युअल की मूलभूत जानकारी नहीं है जिसके चलते वे न केवल वे हंसी का पात्र बन रहे हैं , बल्कि सिस्टम को भी क्षतिग्रस्त कर रहे हैं। ताजा मामला  आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो(ई ओ डबल्यू) द्वारा मध्य प्रदेश रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा)के अध्यक्ष अजीत प्रकाश श्रीवास्तव के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज करने का हैं। दरअसल आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो के पास किसी भी नियुक्ति संबंधी  प्रकरण में जांच के अधिकार नहीं है ,यह उनकी नियमावली में ही दर्ज है, यह सामान्य ज्ञान वहां तैनात वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं होने की वजह से पिछले दिनों ईओडब्ल्यू के डीजी अजय शर्मा द्वारा रेरा के अध्यक्ष श्रीवास्तव के खिलाफ प्राथमिक की दर्ज कर जांच भी शुरू कर दी गई। उसके बाद से ही दोनों एजेंसियां आमने-सामने हो गई है।  जानकार सूत्रों की माने तो मध्य प्रदेश के गृह विभाग ने 1976 में  सेंट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई)की तजऱ् पर एक सशक्त संगठन स्टेट ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन  का गठन किया था। मुख्यालय भोपाल रखा गया, और पूरे देश भर में एसबीआई (स्टेट ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन )को काम करने का अधिकार मिला, कालांतर में इसे एक छोटी सी विंग बनाकर रख दिया जिसे ईओडब्ल्यू नाम दिया गया ,यहीं से इसके पतन की कहानी शुरू हो गई और इसमें तैनात अधिकारी अपने ही मूल दायित्व और उद्देश्यों से भटक गए। ये क्रम निरंतर जारी है,जबकि गृह विभाग ने अपनी मार्गदर्शिका में ईओडब्ल्यू को बड़े पैमाने के आर्थिक अपराध की  जांच करने के ही अधिकार दिए हैं। मप्र शासन ने जो कार्य विभाजन किया उसके अनुसार सीआईडी वह जांच एजेंसी हैं जिसके कामकाज में  अधिकारियों के टी ए, डी ए,मेडिकल बिल की गड़बडिय़ा, फेक शैक्षणिक और जाति प्रमाणपत्रों, जैसी शिकायतों के मामले जांच में लिए जाते हैं। वहीं लोकायुक्त को भ्रष्टाचार के संबंध में जांच करने और ट्रैप करने के समस्त अधिकार दिए गए हैं ।इस कार्य विभाजन के तहत ईओडब्ल्यू के पास कर चोरी,आर्थिक अपराध,संपत्ति छिपाना जैसे अन्य बड़े घोटाले के अपराध की जांच के अधिकार निहित है,किसी भी नियुक्ति के मामलों की जांच करने का अधिकार  नहीं हैं। फिर बिना अधिकार के उन्होंने प्रकरण में न केवल प्राथमिकी  दर्ज कर ली ,बल्कि सरकार के उच्च पदस्थ लोगों को इस बारे में गुमराह भी किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ईओडब्ल्यू के वर्तमान कामकाज पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं कि वर्ष 2006 के बाद से ई ओ डब्ल्यू अपनी स्थापना के मूल उद्देश्य से भटकता जा रहा है पहले राज्य में केवल मुख्यालय पर एक कार्यालय  था और समस्त शिकायतों की जांच और उनके निराकरण यहीं हुआ करते थे, लेकिन अब इस विंग को पूरे 9 संभागों में ईकाई बनाकर इसका महत्व कम कर दिया गया है। यही कारण है कि अब  एजेंसी में प्रकरण और उनकी जांच पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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