भोपाल (जयलोक)
अंतरराष्ट्रीय मिर्गी दिवस पर भोपाल न्यूरोसाइक्याट्रिक क्लिनिक एवं डायग्नोस्टिक सेंटर और श्री मिश्रीलाल संपत देवी मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास संस्था के द्वारा आयोजित किए गए एक सफल मिर्गी जागरूकता कार्यक्रम में 200 से ज्यादा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े लोगों और मिर्गी रोगियों की उपस्थिति में प्रतिष्ठित चिकित्सक एवं वरिष्ठ विशेषज्ञ प्रो. डॉ. आर. एन. साहू, डॉ. माया साहू और गांधी मेडिकल कॉलेज की चिकित्सक डॉ. समीक्षा साहू ने मिर्गी रोग जागरूकता कार्यक्रम में अपने अपने विचार रखे और लोगों को मिर्गी रोग के लक्षण एवं रोकथाम के बारे में बताया।
इसी विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ चिकित्सक प्रो. डॉ. आर. एन. साहू ने बताया कि मिर्गी एक स्वाभाविक रूप से होने वाली न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क की विद्युत क्रिया में असमानता होती है, जिससे व्यक्ति अचानक और अनियमित रूप से दौरे आना, शारीरिक नियंत्रण खोना या दत्ती बंध जाना(दांत भींच लेना)भी शामिल है। इस रोग के कारण विभिन्न हो सकते हैं, जैसे कि जन्म से होने वाली अविकसितता, मस्तिष्क की चोट, या अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याएं। मिर्गी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित एक विकार है जिसकी स्थिति में मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिका की गतिविधि बाधित होती है। नतीजतन, मरीज को दौरे पड़ते हैं, वह बेहोश हो सकता है या कुछ समय तक असामान्य व्यवहार कर सकता है। मिर्गी रोगियों को बहुत सी मानसिक समस्याएं जैसे अवसाद, एंजाइटी अथवा इंटर इक्टल साइकोसिस भी सकती है। मिर्गी कोई संक्रमण की बीमारी नहीं है। इसका उपचार संभव है। मिर्गी के दौरों को लेकर आम लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियां हैं। कुछ लोग इसे मानसिक बीमारी, अभिशाप, पूर्व जन्म या इस जन्म में किये बुरे कर्मों का फल, भूत-प्रेत आदि से जुड़ी बीमारी मानते हैं । मिर्गी के उपचार के लिए लोग प्याज सुंघाना, जूता सुंघाना, चम्मच से जुड़े हुए जबड़े खोलने का प्रयास करना तथा झाड़-फूंक आदि भी करते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। नियमित उपचार से 3 से 5 साल में 75 फीसदी मरीज ठीक हो रहे हैं। सबसे बड़ी बाधा भ्रांतियां हैं। अभी भी सभी मरीज चिकित्सकों के पास नहीं आ रहे हैं। उपचार में बहुत सारी दवाइयां हैं, जो रोगी को उनके चिकित्सक द्वारा निर्धारित मात्रा में दी जाती हैं। मिर्गी से पीडि़त व्यक्तियों को समर्थन, समझदारी और सहयोग की जरूरत होती है, ताकि वे इस समस्या के साथ जीवन को सामंजस्यपूर्ण रूप से जी सकें। गांधी चिकित्सा महाविद्यालय के साइकियाट्री विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. समीक्षा साहू ने भी इस जागरूकता कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए बताया की बच्चों को बचपन में ही मिर्गी का दौरा आने और बीमारी का सही समय पर इलाज ना होने पर रोग सही नियंत्रण नहीं हो पाने से बच्चों का पूर्ण मानसिक विकास नहीं हो पाता है, जिससे अन्य मानसिक रोग होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इसी क्रम में डॉ. समीक्षा ने वॉलंटियर के सहयोग से एक नाटिका के द्वारा मिर्गी आने पर क्या करें इसका सजीव प्रदर्शन किया, जिसमें कैसे रोगी को दौरा आने पर बाईं करवट लिटाकर कपड़े ढीले करते हुए मुंह में आई झाग को हटाकर पास में कुछ भी नुकीला हो तो उसे हटाते हुए आराम से लिटा दें और हवा आने देना चाहिए। कोहे फिजा स्थित मानसिक रोग निवारण सेंटर बी. एन. पी. सी. की डायरेक्टर डॉ. माया साहू जी ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए रोक की रोकथाम, दवाओं का सही प्रयोग, उचित इलाज और नशे से दूर रहने के लिए लोगों को प्रेरित किया और सफल कार्यक्रम के आयोजन के लिए सभी का धन्यवाद दिया और इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम सतत करने पर जोर दिया जिससे आम लोगों में मिर्गी रोग के प्रति जागरूकता आए। कार्यक्रम में उपस्थित रोगियों अथवा उनके परिजनों ने अपने सवाल चिकित्सकों से पूछे और उसका समाधान लिया ।