जबलपुर (जयलोक)। भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा चुनाव लडऩे वालों की लंबी सूची बनती जा रही है। चूंकि भाजपा का माहौल है इसलिए चुनाव लडऩे के लिए नेताओं के साथ ही धर्मगुरू उद्योगपति, फिल्मकार, डॉक्टर, वकील और समाजसेवी चुनाव लडऩे के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। अभी यह उम्मीद की जा रही है कि भारतीय जनता पार्टी अगले सप्ताह जबलपुर लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर सकती है। भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने 150 सीटों पर नाम फायनल होने के संकेत दिये हैं। पहली लिस्ट इसी हफ्ते आने की संभावना है। बताया जा रहा है कि इस हफ्ते भाजपा की पहली सूची जारी हो सकती है जिनमें अधिकांशत: वह सीटे होंगी, जहां भाजपा पिछला चुनाव हारी है या कम मतों के अंतर से जीती है। जहां तक जबलपुर का सवाल है तो जबलपुर के साढ़े 4 लाख से अधिक वोटों से भाजपा चुनाव जीती। लेकिन राकेश सिंह के प्रदेश मंत्री बनने के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि जबलपुर में लोकसभा के प्रत्याशी का नाम पहली सूची में जारी किया जा सकता है ताकि नए प्रत्याशी अपने हिसाब से फील्डिंग जमाने का मौका मिल सके। जिसके चलते जबलपुर की राजनीति में हलचल बन गई है।
करीब दो दशक तक जबलपुर के सांसद रहे राकेश सिंह के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी किसे मैदान में उतारेगी इस पर जबलपुर सहित पूरे मध्य प्रदेश की नजर है। वहीं इसी सप्ताह भाजपा भी अधिकांश नाम घोषित कर देगी। पश्चिम से विधानसभा चुनाव जीत कर मोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री बन चुके राकेश सिंह के चुनाव लडऩे की संभावना न के बराबर है। अब सवाल यह है कि 2004 से जबलपुर के लगातार सांसद रहे राकेश सिंह के स्थान पर भाजपा अपने गढ़ से चुनाव लडऩे का मौका किसे देगी। जबलपुर सीट को लेकर मारामारी का आलम यह है नेता, धर्मगुरु, उद्योगपति, फिल्मकार, चिकित्सक, समाज सेवी सब जबलपुर से चुनाव लडऩे को बेताब हैं। लेकिन लाटरी किसकी खुलेगी इस पर अंतिम मोहर मोदी शाह की ही लगेगी। हालांकि इस सप्ताह भाजपा के जबलपुर प्रत्याशी का चेहरा साफ होने की पूरी संभावना है।
9 बार भाजपा, 7 बार कांग्रेस
आजादी के बाद से यहां कुल 17 चुनाव और एक उप-चुनाव हुए। जिनमें 9 बार भाजपा, 7 बार कांग्रेस और एक बार भारतीय लोकदल ने जबलपुर से चुनाव जीता। साल 1991 के बाद से कांग्रेस पार्टी ने यहां पर कोई चुनाव नहीं जीता है। पिछले लगभग 2 दशक से जबलपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपना दबदबा बनाया हुआ है। पिछले चुनाव में यहां से राकेश सिंह ने चुनाव जीता था। उनके इस्तीफे के बाद दिसंबर 2023 से जबलपुर लोकसभा सीट खाली है।
सेठ गोविंददास बने थे पहले सांसद
आजादी के 10 साल बाद 1957 में जबलपुर लोकसभा सीट के गठन के बाद यहां पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। पहले चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सेठ गोविंददास दीवान बहादुर ने जीत दर्ज की थी। साल 1962, 1967 और 1971 में भी स्व. गोविंददास ने जीत दर्ज की। आपातकाल के बाद साल 1977 के लोकसभा चुनाव हुए। तब लोकदल के उम्मीदवार शरद यादव ने चुनाव जीता था। उसके बाद हुये लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी कर ली और मुंदर शर्मा निर्वाचित हुए।
1982 में भाजपा की एंट्री
साल 1980 के चुनाव के दो साल बाद ही साल 1982 में उप-चुनाव हुए। जिनमें भाजपा के बाबूराव परांजपे सांसद बने। दो साल बाद 1984 में फिर से लोकसभा के चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस के अजय नारायण मुशरान निर्वाचित हुए। साल 1989 के चुनाव में जबलपुर सीट से भाजपा ने दोबारा वापसी की और बाबूराव परांजपे सांसद बने। साल 1991 में कांग्रेस वापस सत्ता में आई और श्रवण कुमार पटेल सांसद बने।
1991 के बाद नहीं लौटी कांग्रेस
1991 में कांग्रेस कांग्रेस जीती लेकिन उसके बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हुई। इसके बाद बाबूराव परांजपे ने जबलपुर सीट पर भाजपा को फिर विजयी बनाया। 1998 में बाबूराव परांजपे ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लडक़र जीता। साल 1999 में भाजपा की जयश्री बैनर्जी सासंद बनी। साल 2004 में भाजपा से राकेश सिंह की एंट्री हुई, राकेश ने 2004, 2009, 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज की।
2019 के नतीजे
पिछले चुनाव के नतीजों की बात करें तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा प्रत्याशी राकेश सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तनखा को 4 लाख 54 हजार 744 वोटों के भारी अंतर से हराया था। भाजपा को तब कुल 8 लाख 26 हजार 454 वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस पार्टी को कुल 3 लाख 71 हजार 562 वोट मिले थे।
