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ब्योहार राजेन्द्र सिंह : साहित्य और स्वाधीनता का जुनून

(जयलोक)।  ब्योहार राजेन्द्र सिंह  का जन्म 14 सितम्बर 1900 को जबलपुर में हुआ था। वे जबलपुर के राष्ट्रवादी मॉडल हाई स्कूल के पहले बैच के छात्र थे। हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे। उन्होंने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसके लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। इसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं और लोगों को मनाया।
उनका संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू और अंग्रेजी भाषा पर भी अधिकार था।
वे अखिल भारतीय चरखा संघ, नागरी प्रचारिणी सभा, हरिजन सेवक संघ, नागरिक सहकारी बैंक, भूदान यज्ञ मण्डल, हिंदी साहित्य सम्मलेन, सर्वोदय न्यास जैसी संस्थाओं के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व सर्व धर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
उनके निवास पर महात्मा गाँधी लगभग एक सप्ताह तक रहे थे। आचार्य जीवतराम कृपलानी, मौलाना अबुलकलाम आजाद, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, एडिथ एलेन ग्रे, सरोजिनी नायडू, सर सैयद महमूद, वीर खुरशेद नरीमन, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, जमनालाल बजाज, मीरा बहन व अन्य भी साथ में थे। इस अवसर पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी की बैठक भी व्यौहारनिवास-पैलेस में ही हुई थी। इस स्थान का नाम बाद में ‘गांधी मंदिर’ कर दिया गया था।
उनके निवास पर दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और महत्वपूर्ण पत्रों आदि का अनमोल संग्रह था। उन्होंने लगभग 100 से अधिक ग्रंथों की रचना की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में संस्तुत समाविष्ट भी की गईं। उनकी प्रमुख रचनाओं में गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना, महात्मा जी का महाव्रत, त्रिपुरी का इतिहास, हिंदी गीता, आलोचना के सिद्धांत, हिंदी रामायण और सावित्री को देखा जा सकता है।
उन्हें साहित्य वाचस्पति, हिन्दी भाषा भूषण, श्रेष्ठ आचार्य जैसे सम्मानों से विभूषित किया गया था। जबलपुर का ब्योहार बाग नामक स्थान उन्हीं के परिवार से संबंधित है।
02 मार्च 1988 को उनका निधन हुआ।
ऐसे मनीषी को प्रणाम!
प्रणाम जबलपुर!

प्रणाम जबलपुर!
अब तक आप रानी दुर्गावती, विलियम हेनरी स्लीमन, कामकंदला-माधवानल, नाटककार राजशेखर, शहीद राजा शंकरशाह-रघुनाथशाह, पाटन की वीरांगना सरस्वती बाई, माखनलाल चतुर्वेदी, बाबू कंछेदीलाल जैन, प्रेमचंद जैन उस्ताद, सीताराम जाधव, थानेदार नौरोज अली, गाड़ाघाट के गजराज सिंह और जवाहर सिंह, सिलौंड़ी की श्रीमती सुंदरबाई गौतम, पाटन के बद्रीप्रसाद पाठक, सुभद्राकुमारी चैहान, सूरजप्रसाद शर्मा, बालमुकुंद त्रिपाठी, हन्नु पहलवान, सेठ गोविंददास और द्वारका प्रसाद मिश्र के बारे में पढ़ चुके है।                                                  –                                                                                                                                                              संपादक जय लोक

Jai Lok
Author: Jai Lok

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