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प्रधानमंत्री नेहरू के खिलाफ पहला चुनाव जबलपुर के चिरऊ महाराज ने लड़ा था

स्वामी स्वरूपानंद जी की रामराज्य परिषद से लड़ें चिरऊ महाराज को बीबीसी ने महाराजा ऑफ चिरऊ स्टेट बना दिया

सच्चिदानंद शेकटकर , समूह संपादक

जबलपुर (जयलोक)
1952 में हुए लोकसभा के पहले चुनाव में जबलपुर इसलिए चर्चाओं रहा क्योंकि स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने रामराज्य परिषद से जबलपुर के चिरऊ महाराज को चुनाव लड़वाया था। रामनवमी के दिन 1948 में स्वामी करपात्रीजी ने सनातनधर्मियों के एक राजनैतिक दल रामराज्य परिषद का गठन किया था। करपात्रीजी ने अपने गुरुभाई स्वामी स्वरूपानंद जी को रामराज्य परिषद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। थोड़े ही समय में रामराज्य परिषद कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में देशभर में तैयार होने लगी।
1952 मे आजादी के बाद लोकसभा के पहले आम चुनाव हुए। तब तक रामराज्य परिषद का संगठन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ  चुनाव लडऩे तैयार हो गया।
सबसे बड़ी समस्या चुनौतीविहीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने की आयी। स्वामी स्वरूपानंदजी नेहरूजी के खिलाफ रामराज्य परिषद का उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला कर चुके थे और उम्मीदवार की खोज कर रहे थे।
स्वामी स्वरूपानंदजी ने जबलपुर के प्रतिष्ठित पंडित मथुराप्रसाद शास्त्री को संदेश भिजवाया कि वे नेहरूजी के खिलाफ  चुनाव लडऩे जबलपुर से किसी को तुरंत लेकर इलाहाबाद आ जायें और साथ में चुनावी जमानत के लिए 250 रुपए भी ले कर आयें। शास्त्री जी ने इस किस्से को एक बार मुझे भी सुनाया था। पं. मथुरा शास्त्री बस स्टैंड में दूध बेचने वाले चिरऊ महाराज के पास पहुँचे और स्वामी स्वरूपानंद जी की मंशा से उन्हें अवगत कराया और उनसे नेहरूजी के खिलाफ  चुनाव लडऩे चलने कहा। चिरऊ महाराज नेहरू जी के खिलाफ  लोकसभा का चुनाव फूलपुर से लडऩे तैयार हो गये। लेकिन चिरऊ महाराज ने मथुरा शास्त्री से कहा कि अभी तो मेरे पास पैसे नहीं हैं। तब शास्त्रीजी ने चिरऊ महाराज से पूछा कि महाराज दूध की उधारी के पैसे आपको किस-किस से लेना है उनके पास चलकर पैसे ले लेते हैं। फिर दोनों कमानिया गेट रिक्शे से पहुँचे और वहां आजाद डेरी के मालिक से दूध की उधारी के पैसे लेकर तुरंत ही बस से इलाहाबाद रवाना हो गए।
1952 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फूलपुर से पहली बार कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे थे। तब स्वरूपानन्द जी ने नेहरू जी को चुनौती दी। चिरऊ महाराज का स्वामी स्वरूपानंदजी ने रामराज्य परिषद से नेहरूजी के खिलाफ  नामांकन पत्र भरवाया। प्रधानमंत्री नेहरू के खिलाफ  चुनाव लडऩे वाले चिरऊ महाराज आखिर हैं कौन यह जानने की चर्चा जोरों से चल पड़ी। देश-विदेश का मीडिया भी प्रधानमंत्री नेहरू के खिलाफ  चुनाव लडऩे वाले रामराज्य परिषद के उम्मीदवार चिरऊ महाराज के बारे में जानने उत्सुक था। तभी बीबीसी ने अंग्रेजी में खबर सुना दी कि ‘महाराजा आफ  चिरऊ स्टेट फाईटिंग अगेंस्ट प्राईमिनिस्टर आफ  इंडिया जवाहरलाल नेहरू।’ बीबीसी की खबर ने तो जबलपुरिया दूधवाले चिरऊ महाराज को चिरऊ स्टेट का महाराजा प्रचारित कर दिया। तब सभी पता करते रहे कि आखिर चिरऊ स्टेट आखिर है कहां। चिरऊ महाराज का महाराजा आफ  चिरऊ स्टेट के रूप में चुनाव लडऩा राष्ट्रीय और विदेशी मीडिया में चर्चा में आ गया। यह चुनाव रोचक हो गया। नेहरू जी का जीतना तो तय था ही।
1952 के पहले आम चुनाव में स्वामी स्वरूपानंदजी की रामराज्य परिषद ने नेहरू जी सहित कांग्रेस को अच्छी टक्कर दी और अपने तीन सांसद जिताकर लाये।
कौन थे चिरऊ महाराज
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ  रामराज्य परिषद से चुनाव लडऩे वाले चिरऊ महाराज पाटन के एक गाँव के रहने वाले उरमिलिया परिवार से थे। वे हर दिन पाटन से दूध लेकर शहर के बस स्टैंड पर बेचने आते थे और लौट जाते थे। वे चिरऊ महाराज के रूप में लोकप्रिय रहे। बसवाले भी चिरऊ महाराज का इंतजार करते थे उनके दूध के डिब्बे आये बिना बस नहीं छूटती थी।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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