त्वरित टिप्पणी- सत्यम तिवारी
जबलपुर जय लोक। बीते विधानसभा चुनाव के बाद से कमलताल में नए-नए कमलों का खिलना जोर-शोर से जारी है। लोकसभा चुनाव में अपनी-अपनी शर्तों पर सौदेबाजी कर कांग्रेसी नेता एक के बाद भाजपा को अपने ईमान और वफादारी के दाम बताकर सौदा तय कर रहे हैं और भाजपा के मुकुटमणि बन रहे हैं? कांग्रेस भी इन भगोड़ों को अपना रत्न ही बताते आई है शायद कांग्रेस यही चूक भी कर गई! चर्चाओं की चौपाल में उनका भी जिक्र कम नहीं है जो वर्षों से भाजपा के गले में बतौर हार बनके लटके हैं? कहा जा रहा है कि स्वयं चलकर बिकने आ रहे गए जवान बूढ़े रत्न मुकुट में स्थान पा रहे हैं और गले के हारों के नसीब में लटके रहना ही लिखा है? राजा की मर्जी पर निर्भर करता है कि गले के हार छाती पर लादे रहे या उतार फेंके लेकिन मुकुट वही रहता है।
कभी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा कांग्रेस युक्त होती जा रही है और कांग्रेस नेताओं द्वारा याचित पद और टिकट उन्हें पहली शर्त पर दे रही है तो आखिर केंद्र और प्रदेश में लगातार सत्ता सिंहासन पर आसीन भाजपा के सामने ऐसी भी क्या मजबूरियां आ गई कि उसे कांग्रेस नेताओ को उनकी शर्तों पर स्वीकार करना पड़ रहा है? क्या एक के बाद एक लगातार भाजपा के पदों और टिकटों पर अपना कब्जा जमाकर भाजपा के समर्पित और संघर्षशील पुराने नेताओं का रास्ता रोक रहे इन नवागत नेताओं को और इनके साथ पलायन कर रहे पिछलग्गुओं को भाजपा कार्यकर्ता खुशी-खुशी अपना नेता स्वीकार कर लेगा? क्या भविष्य में ये भी देखने मिल सकता है कि भाजपाई ही कमल के इन कांग्रेसियों को हराने और पटकने की मुहिम छेड़ देंगे? जैसा कि कांग्रेस की परंपरा बना दी गई कि अब कांग्रेसी ही कांग्रेस को हरा रहा हैं, सीने पर कांग्रेस का बिल्ला लगाकर अपने पंजे से कमल का बटन दबा और दबवा रहा है?
