(जबलपुर जय लोक)। कांग्रेस का नगर अध्यक्ष विहीन होना अब आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भारी साबित हो सकता है। यह बात हर कार्यकर्ता से लेकर नेता तक समझ रहे हैं और अपने मन की कसमसाहट मिटाने के लिए सोशल मीडिया से लेकर शादियों तक में एकत्रित होने पर अपने मन की भड़ास निकाल रहे हैं। बहुत सारे लोग भोपाल जाकर नए नगर अध्यक्ष के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से मुलाकात भी कर आए हैं और बहुत सारे स्थानीय समीकरण उनके सामने रखकर भी आए हैं।लेकिन यह बात स्पष्ट रूप से नजर आ रही है कि कांग्रेस के नगर अध्यक्ष के चयन में हो रही देरी सीधे तौर पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पीछे धकेलने का काम कर रही है। नगर अध्यक्ष को लेकर नगर के कई कांग्रेसी नेताओं ने बैठकर भी की है और वरिष्ठ नेताओं के इस विषय पर मौन धारण से चिंता भी व्यक्ति की है। जिम्मेदार नेता आगे आकर कोई निर्णय नहीं ले रहे हैं। जिसके कारण नगर अध्यक्ष के लिए एक नाम पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है। अगले 15 दिन के बाद कभी भी आदर्श आचार संहिता लागू हो सकती है और चुनाव कार्यक्रम भी घोषित हो सकता है। लेकिन जबलपुर जिले में नगर अध्यक्ष ना होने के कारण कांग्रेस के हाल बिना राजा की फौज के समान है। किसी को यह पता ही नहीं है कि उसे करना क्या है। बूथ लेवल तक कार्यकर्ता बहुत ही उपेक्षित थके हुए मनोबल से भरे नजर आ रहे हैं। नगर अध्यक्ष के मुद्दे पर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी कोई ठोस जवाब देने की स्थिति में नहीं है।विगत दिनों आयोजित हुई कांग्रेस के नेताओं की बैठक के दौरान कांग्रेस नेता लक्ष्मी बैन ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को मोबाइल से फोन लगाया और स्पीकर चालू कर वहां मौजूद सभी कांग्रेस नेताओं के समक्ष प्रदेश अध्यक्ष से नगर अध्यक्ष की नियुक्ति के संबंध में बात की। प्रदेश अध्यक्ष ने जो जवाब दिया उसे ठोस जवाब नहीं कहा जा सकता। आश्वासन के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष ने कह दिया कि वह जल्द ही इस विषय पर निर्णय लेने वाले हैं, अभी वह प्रदेश के दौरे पर हैं, जल्दी इस पर कोई निर्णय लेंगे। बैठक में मौजूद कांग्रेसियों ने भी इस जवाब को संतोषजनक नहीं माना। बैठक में मौजूद कांग्रेसियों ने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को भी संदेश भेज कर इस विषय पर जल्द निर्णय लेने के लिए आग्रह किया। लेकिन यह बात स्पष्ट है कि नगर अध्यक्ष की नियुक्ति न होने से चुनावी माहौल में कांग्रेस कार्यकर्ताओंं और नेताओं की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है।