(जय लोक)
ऊपर वाले ने तीन प्रमुख मौसम बनाए ठंड, गर्मी, बरसात तीनों मौसम हर व्यक्ति के लिए एक से होते हैं अगर गर्मी है तो सबको गर्मी लगती है अगर ठंड है तो हर व्यक्ति रजाई ढूंढता है और अगर बरसात है तो सारे लोग भीग जाते हैं इन मौसमों के बीच में कुछ और छोटे-मोटे मौसम होते हैंजैसे बसंत, शरद, शिशिर, बहार, पतझड़ लेकिन आजकल का दो प्रमुख राजनीतिक दलों में एक साथ दो अलग-अलग मौसम चल रहे हैं हम बात कर रहे हैं कांग्रेस और भाजपा की कांग्रेस में इन दिनों पतझड़ का मौसम है रोजाना कांग्रेस के बट वृक्ष से एक न एक पुराना पत्ता गिरता है और जाकर भाजपा की बहार में शामिल हो जाता है जिस गति से कांग्रेस के नेता रुपी पत्ते रोजाना गिरते जा रहे हैं उस हिसाब से बहुत जल्द वह ठूंठ बनकर रह जाएगा। अब दिक्कत ये है कि बट वृक्ष को ना तो खाद मिल रही है और ना ही पानी, इधर भाजपा में चौतरफा बहार ही बहार है सारे पत्ते फल फूल रहे हैं बाहर से आए पत्तों को भी पेड़ की ऊंची-ऊंची डगालों में सुशोभित किया जा रहा है लेकिन इन सब के बीच अपने भाजपा के पुराने पत्ते बेचारे बड़े दुखी हैं जिंदगी भर जिस पेड़ को हरा भरा रखा उस पेड़ पर उनकी कोई औकात ही नहीं बची उनके सर के ऊपर कांग्रेस के पतझड़ के पत्तों को सजाया जा रहा है। दरअसल ये राजनीति है ही ऐसी चीज सत्ता के लिए तमाम राजनीतिक दल साम, दाम दंड भेद तमाम तरह की चीजों को अपना लेते हैं कल तक जो बड़े-बड़े नेता कांग्रेस के बड़े-बड़े पदों पर रहे मंत्री रहे, सांसद रहे उन्हें अचानक कांग्रेस की नीतियों से नफरत हो गई उनका कहना है कि आज की कांग्रेस वो कांग्रेस नहीं रह गई है तो भैया आप भी तो वो कांग्रेसी अब वो कांग्रेसी नहीं रहे यह भी तो सोचो और फिर परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है जमाना वो भी था जब कांग्रेस पूर्ण बहुमत में हुआ करती थी अब उसको एक सैकड़ा तक पहुंचने में सांस फूली जा रही है कहते हैं ना कभी नाव पानी के ऊपर तो कभी पानी नाव के भीतर यही हाल कांग्रेस और भाजपा का है लेकिन जिस तेज गति से पतझड़ की हवाएं कांग्रेस रूपी पेड़ के खिलाफ चल रही है वो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के लिए चुनौती तो है उसको देखना होगा कि कहीं ऐसा ना हो कि पत्तों के साथ-साथ पूरा पेड़ ही जड़ से उखड़ जाए लेकिन यह भी कहा जाता है कि जब पतझड़ आता है तो पुरानी पत्तियां टूट कर बिखर जाती हैं लेकिन उसके बाद नई कोपलें आना शुरू होती है जो बाद में बड़ी पत्ती का रूप धारण कर लेती अपने को तो लगता है। कांग्रेस यही सोचकर पुरानी पत्तियों को समेटना नहीं चाहता, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस से उसके नेता नाता तोड़ रहे हैं उस पर किसी शायर की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं। ‘पतझड़ भी हिस्सा है जिंदगी के मौसम का, फर्क इतना है कुदरत में पत्ते टूटते हैं और हकीकत में रिश्ते’
मानते हैं उनकी हिम्मत को
अखबारों में एक खबर बड़ी सुर्खियों में है कि मीडिया टायकून अरबपति रूपर्ट माडोक जिनकी उम्र 92 वर्ष की हो चुकी है वे आप पांचवी शादी करने की तैयारी में है और उनकी जो प्रेमिका है ना है वो भी कोई कमसिन हसीना नहीं बल्कि 67 साल की डुकरिया है मानते हैं अपन उनकी हिम्मत को दाद देने की इच्छा होती है। उनके पौरुष पर, यहां तो इंसान एक बीवी से परेशान है और उसे संभालने में जिंदगी व्यतीत हो जाती है लेकिन भाई साहब को तो देखो एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार नहीं अब पांचवी शादी की तैयारी में लेकिन कहते हैं ना मोहब्बत की कोई उम्र नहीं होती, कब किस से आंख लड़ जाए यह कहना बड़ा मुश्किल है। भाई साहब की उम्र भले ही 92 साल की हो गई हो लेकिन उनका जो दिल है वो अभी भी 16 साल जैसा धडक़ता है यही कारण है कि पांचवीं बार हल्दी लगवाने तैयार हैं अपनी तरफ से साहब को पांचवी शादी की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं भगवान उन्हें और भी लंबी उम्र दे ताकि वे छठवीं और सातवीं शादी भी कर सके क्योंकि जिसकी चार बीवियां अनसेरुखसात हो गई हों पांचवी उसके साथ कब तक रहती है यह कहना बड़ा मुश्किल है। बहरहाल उनकी जिंदा दिल्ली को तो सलाम करना ही पड़ेगा लोग बाग 92 साल में खटिया से नहीं उठ पाए लेकिन उनकी हिम्मत तो देखो सात फेरे लेने तैयार हैं।
उमाजी करें तो क्या करें
एक जमाने में फायर ब्रांड नेता कहीं जाने वाली प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रही उमा भारती इन दिनों भारी परेशान हैं उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें भाजपा ने तो उन्हें दूध से मक्खी जैसा निकाल कर बाहर कर दिया है अब अपने वजूद को बचाने के लिए तरह तरह के जतन करती हैं कभी शराब की दुकान में ईंट मारती हैं तो कभी कहती है कि मैं लोकसभा का चुनाव लडूंगी और फिर जब टिकट नहीं मिलती तो कहती है कि मैं लोकसभा का चुनाव नहीं लडूंगी। उनके चाहने वाले भी भारी पशोपेश में है कि उनकी कौन सी बात पर भरोसा करें और कौन सी बात पर भरोसा ना करें लेकिन कहते हैं ना राजनीति में कब किसका सूरज उदय हो जाए और कब अस्त की ओर चल पड़ेयह भी कहना बड़ा मुश्किल और नामुमकिन होता है उमा जी को भी पहले अपने हाई कमान से यह कंफर्म कर लेना चाहिए था कि उन्हें चुनाव लड़वाया जाएगा या नहीं उसके बाद यह बयान देना था कि मैं चुनाव लडूंगी अब जब टिकट नहीं मिल रही है तो मजबूरी में कहना पड़ रहा है कि मेरा मन चुनाव लडऩे का नहीं है बीच में बता रही थी कि मैं हिमालय चली जाऊंगी फिर बाद में पता लगा कि नहीं हिमालय नहीं जा रही हैं। दिक्कत ऊमा जी के साथ ये है कि जिस उमा भारती की एक जमाने में तूती बोला करती थी उन्हें पार्टी ने हासिए पर रख दिया है और जब कोई राजनीतिक व्यक्ति को हासिये पर रख दिया जाता है तो उसकी मनो दशा कैसी होती है ये उमा भारती से ज्यादा बेहतर और कोई नहीं जान सकता। लेकिन उमा जी को इस बात से संतोष कर लेना चाहिए कि जब उनके गुरु आडवाणी और मुरली मनोहर जैसे नेता किनारे कर दिए गए हैं तो फिर उनको किनारे कर भी दिया तो बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है अब उमा भारती को यही गीत गुनगुनाना चाहिए।
‘सुख भरे दिन बीते रे भैया अब दुख आयो रे’
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
श्रीमान जी का ज्ञान
‘काफी लंबी खोज केबाद पता चला है कि पति पत्नी के बीच होने वाले झगड़ों की मुख्य वजह है पंडित क्योंकि उसी ने ही फेरों के वक्त आग में घी डाल था’