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कहो तो कह दूँ -इधर टिकट कटी, उधर पोस्टर से फोटो हटी…

चैतन्य  भट्ट
मध्यप्रदेश के बालाघाट लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद ‘ढाल सिंह बिसेन साहेब’ इन दोनों बहुत ज्यादा दुखी हैं और उनके दुखी होने के दो कारण है पहला कि  पार्टी  ने उनकी टिकिट काट दी और दूसरा ये कि उनकी जगह  जिस महिला प्रत्याशी को टिकट मिला उसके सम्मान में शहर में जो पोस्टर और होर्डिंग्स लगाए गए थे उसमें से अपने बिसेन साहब की फोटो गायब थी जबकि पोस्टर में पार्षदों तक की फोटुए खिलखिला रही थीं। अपनी इस उपेक्षा से बेहद दुखी मन से बिसेन साहब ने एक ट्वीट किया है  कि ‘मेरा फोटो हटा दिया गया’।  इतने बरस हो गए बिसेन जी को  राजनीति करते-करते उन्हें इतनी सी बात समझ में नहीं आई कि ये तो राजनीति है जब तक आप पोस्ट पर हो तब तक आपकी जय-जय कार है और जिस दिन पद से हटे उस दिन से आप आम आदमी बन जाते हो, लेकिन दिक्कत ये है कि जो नेता एक बार किसी पद पर पहुँच जाता है तो फिर उसे जय-जय कार करवाने की, होर्डिंग्स और बैनर में फोटो छपवाने की लालसा जिंदगी भर के लिए बन जाती है फिर चाहे वह पद पर रहे ना रहे । ढाल सिंह बिसेन साहब तो फिर भी सांसद थे दूर क्यों जाते हो अपने ‘मामा जी’ को ही देख लो सत्रह  साल तक मध्यप्रदेश में राज किया लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री बदले तमाम होर्डिंग्स और पोस्टरों से मामा जी की तस्वीर गायब हो गई और उन्हें कहना पड़ा कि ‘मेरी फोटो ऐसी गायब हुई जैसे गधे के सर से सींग’ तो ये तो राजनीति का स्वभाव है ‘इधर आपकी टिकट कटी उधर पोस्टर से आपकी फोटो हटी’ इसमें  दुखी होने की क्या बात है? बहुत साल मजे कर लिए सत्ता में रहने के। अब यदि टिकट नहीं मिल पाई तो इतना रंज किस बात का, ये तो दुनिया का उसूल है कि उगते सूरज को सब सलाम करते हैं और जब सूरज ढलता है तो लोग उस पर नजर भी नहीं डालते  ढाल सिंह बिसेन जी आप भी ढलता सूरज हो इसलिए अब आपकी तरफ कोई नहीं देखेगा समझ लो जितने दिन किस्मत ने साथ दिया था इतने दिन सत्ता का सुख भोग लिया अब दूसरों को मौका भी तो मिलना चाहिए लेकिन दिक्कत ये है कि राजनीति का कीड़ा जिसके अंदर एक बार घुस जाता है फिर उसको निकालना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाता है, वही कीड़ा आपके अंदर घुसा हुआ है जो आपको भीतर ही भीतर कचोट रहा है लेकिन अब हाथ में कुछ है नहीं, ज्यादा से ज्यादा दुखी हो सकते हो एकाध बयान दे सकते हो, ट्वीट कर सकते हो इसके अलावा और कुछ आपके बस में है नहीं । उमा भारती को देख लो जिनके दम पर मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी उनके क्या हाल है बेचारी तरह-तरह के बयान दे कर अपने वजूद को बरकरार रखने की कोशिश करती हंै, लेकिन कोई गंभीरता से लेता ही नहीं है, आप भी ये सोच लो कि आपका समय गया जितनी जल्दी ये समझ लोगे तो शायद दुखी नहीं होंगे और फिर दुखी होने से ऐसा तो है नहीं कि फिर से होर्डिंग्स और पोस्टर में चमकने लगो अपनी तो एक ही सलाह है की साहेब जी अब पुराने दिन भूल जाओ और एक साधारण आदमी की तरह जिंदगी गुजारो उसी में आपका फायदा है।
विश्नोई जी को गुस्सा क्यों आता है
कुछ बरस पहले ‘नसीरुद्दीन शाह’ अभिनीत एक फिल्म आई थी जिसका नाम था ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ पिछले कुछ लंबे समय से अपने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय विश्नोई अल्बर्ट पिंटो  बन चुके हैं , शिवराज सरकार में महाकौशल  की उपेक्षा को लेकर उन्होंने कई बयान दिए थे मसलन ‘महाकौशल फड़-फड़ा सकता है उड़ नहीं सकता’ अब उनका एक बयान इन दिनों सोशल मीडिया पर जबरदस्त रूप से वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने चंडीगढ़ के एक अस्पताल में अपना इलाज करवाते वक्त जारी किया था जिसमें उन्होंने जबलपुर लोकसभा के लिए तय किए गए भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी आशीष दुबे की  उम्मीदवारी पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि पार्टी के निर्णय का स्वागत है हमें यह भूलना होगा कि हमारे चुनाव में  आशीष जी ने पार्टी के विरोध में काम किया था यानी इशारे-इशारे में उन्होंने आशीष दुबे की उम्मीदवारी पर अपना गुस्सा जाहिर कर दिया था भले ही आशीष दुबे उन्हें अपना वरिष्ठ मानते हुए उनके बयान से कन्नी काट रहे हों, लेकिन पार्टी में इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है। वैसे इस बात के लिए अजय भैया की हिम्मत की दाद तो देना ही पड़ेगा कि जिस भारतीय जनता पार्टी में कोई इतनी हिम्मत नहीं करता कि वो पार्टी के निर्णय के खिलाफ कोई बयान दें ऐसे में अजय भैया ने अपना गुस्सा निकाल कर दिखा दिया कि उन्हें  जो सही लगता है वे बयां कर देते हैं पार्टी उनके साथ क्या करती है यह अलग बात है लेकिन पार्टी के भीतर इस बात को लेकर चर्चा जरूर है कि अजय भैया इतने गुस्सैल आखिर कैसे हो गए हैं।
इसमें तो फस्र्ट आ गए
लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने जो तिथियां घोषित की हैं उसके हिसाब से पूरे जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं को चुनाव आयोग का बार-बार धन्यवाद अदा करना चाहिए कि कम से कम उसने मतदान में तो जबलपुर को ‘नंबर वन’ पर रख दिया वरना जबलपुर तो हर चीज में पिछड़ा ही माना जाता है चाहे वह विकास का मुद्दा हो, उद्योगों की स्थापना की बात हो, सफाई का मसला हो, राजनैतिक प्रतिनिधित्व की बात हो ,हवाई उड़ानों का मामला हो हर जगह जबलपुर फिसड्डी रह जाता है लेकिन मतदान में जबलपुर को जो पहला नंबर मिला है उसको लेकर पूरी संस्कारधानी हर्षित है यहां के नागरिकों को लग रहा है कि कम से कम इस मामले में तो जबलपुर अव्वल आ गया ,ये बात अलग है कि इसमें ना तो लोगों का कोई हाथ है ना यहां के जनप्रतिनिधियों का । अपने को तो लगता है कि जबलपुर की उपेक्षा का मसला और उसके फिसड्डी होने की खबर जरूर चुनाव आयोग के पास पहुँची होगी और उनको लगा होगा कि चलो एक बार इसी बहाने जबलपुर को नंबर वन तो बना दें, इसी में यहां के लोग खुश हो जाएंगे और सही बात भी है पहले चरण के चुनाव में जब से जबलपुर का नाम आया है तब से हर जबलपुरवासी की छाती 56 इंच की हो गई है और वह कहता फिर रहा है कि लोग कहते थे जबलपुर फिसड्डी है अब देखो वोट डालने में सबसे पहला नंबर जबलपुर का ही है, अपनी तरफ से भी चुनाव आयोग और उनके आयुक्त को बार-बार धन्यवाद, आभार, शुक्रिया कि कहीं तो उन्होंने जबलपुर की लाज रख ली।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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