जबलपुर में गांधीजी के पोते के लडऩे से इंदिरा गांधी की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी थी
संदर्भ : 1980 का लोक सभा चुनाव
@सच्चिदानंद शेकटकर,समूह संपादक
जबलपुर (जयलोक)
आपातकाल लगने के पहले कांग्रेस का इंदिरा गांधी ने विभाजन करा दिया। तब कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (ओ) दो धड़े बने। आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी में इंदिरा गांधी के विरोधी नेता 1977 में बनी जनता पार्टी में शामिल हो गए। जनता पार्टी की सरकार इंदिरा गांधी को हराकर बनी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। कुछ समय बाद इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी की सरकार में उपप्रधानमंत्री रहे चौधरी चरणसिंह को संदेश भिजवाया था कि वे यदि जनता पार्टी को तोड़ते हैं तो वे उन्हें प्रधानमंत्री बनने कांग्रेस का समर्थन दे देंगी। चरणसिंह इंदिरा गांधी के झांसे में आ गए और उनने जनता पार्टी को तोडक़र लोकदल बना लिया। चरणसिंह इंदिरा गांधी के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गये। 6 माह बाद इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस लेकर चरणसिंह को प्रधानमंत्री पद से बिदा करा दिया। जनता पार्टी और लोकदल की सरकार को इंदिरा गांधी ने ढाई वर्ष में ही उखाड़ फेंका और 1980 में लोकसभा के चुनाव में एक बार फिर वे विजयी होकर सत्ता में काबिज हो गयीं।
मुंदर शर्मा ने जबलपुर में बनाई इंदिरा कांग्रेस
कांग्रेस के विभाजन के समय जबलपुर में विभाजित कांग्रेस का एक धड़ा इंदिरा गांधी की कांग्रेस के साथ आ गया। जिसका नेतृत्व उस समय दैनिक नवीन दुनिया के संपादक रहे पं. मुंदर शर्मा ने सम्हाला। उन्होंने अपने समर्थक शिवनाथ साहू को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाकर इंदिरा कांग्रेस का संगठन बना दिया।
जबलपुर नगर निगम से इंदिरा गांधी को सत्ता मिलने की शुरुआत हुई 1977 में जनता पार्टी के शासन के बाद देश और प्रदेशों में जनता पार्टी की सरकारें बन गईं। लेकिन 1979 में जब नगर निगम जबलपुर के चुनाव हुए तब पंडित मुंदर शर्मा ने इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवारों को नगर निगम का चुनाव लड़वाया और नगर निगम में इंदिरा कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की कांग्रेस को देश में सत्ता मिलने की शुरुआत नगर निगम जबलपुर से हुई। मुंदर शर्मा महापौर चुने गए।
महापौर के साथ मुंदर शर्मा सांसद भी बन गए
मुंदर शर्मा ऐसे भाग्यशाली नेता रहे जो 30 अप्रैल 1979 में महापौर चुने गए और महापौर रहते हुए उन्होंनेे 1980 में जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में लड़ा और जीते। वे ऐसे नेता रहे जो महापौर रहते हुए सांसद भी चुन गए। कांग्रेस के एक और महापौर विश्वनाथ दुबे ने भी महापौर रहते हुए लोकसभा का चुनाव लडा़ था लेकिन वे भाजपा के राकेश सिंह से हार गए थे।
चुनौतीपूर्ण मुकाबले में जीते थे मुंदर शर्मा लोकसभा चुनाव
1980 का लोकसभा चुनाव इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण हो गया था क्योंकि जनता पार्टी ने महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी को जबलपुर से चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवार बनाया था। सेठ गोविंद दास के निधन के बाद हुए उपचुनाव में शरद यादव सर्वदलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीते इसके बाद शरद यादव 1977 में हुए लोकसभा के चुनाव में भी जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते। चुनाव के बाद जनता पार्टी का विभाजन हो गया और शरद यादव चरण सिंह की पार्टी लोक दल में शामिल हो गए। 1980 में शरद यादव तीसरी बार जबलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े। राजमोहन गांधी और शरद यादव के उम्मीदवार बन जाने से जबलपुर का चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया। जब चुनाव हुआ तो कांग्रेस के उम्मीदवार मुंदर शर्मा प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले में चुनाव जीते और मुंदर शर्मा को 1,72,408 वोट मिले और जनता पार्टी के उम्मीदवार राजमोहन गांधी को 94882 वोट हासिल हुए थे। शरद यादव की इस चुनाव में तो जमानत ही जप्त हो गई थी।
अजित वर्मा ने कह दिया था मुंदर शर्मा जीते तो इंदिरा गांधी को 300 से ज्यादा सीट मिलेंगी
कांग्रेस से चुनाव लडऩे वाले मुंदर शर्मा दैनिक नवीन दुनिया के संपादक थे। तब उनके साथ मेरे अग्रज पत्रकार अजित वर्मा जी भी काम करते थे। संपादक शर्मा जी लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे इसलिए दैनिक नई दुनिया के सभी लोग उनके प्रचार में लगे थे अजित वर्मा जी ने शर्मा जी के प्रचार कार्य का मोर्चा संभाला था वे शर्मा जी के चेंबर में ही बैठते थे। तब यह नईदुनिया का कार्यालय बल्देवबाग में था। भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार जबलपुर के चुनावी माहौल का जायजा लेने आए थे। नईदुनिया आने पर ये पत्रकार अजित वर्मा जी से भी मिले और चुनाव का हाल जाना। तब वर्मा जी ने बताया कि जबलपुर का चुनाव महत्वपूर्ण है शर्मा जी राजमोहन गांधी और शरद यादव से लड़ रहे हैं। जबलपुर से हवा का रुख पता चलेगा। यदि मुंदर शर्मा ऐसे कड़े मुकाबले में जीतते हैं तो इंदिरा गांधी को तीन सौ सीट मिल सकती हैं। भोपाल से आये पत्रकार बाद में जब मुंदर शर्मा से मिले तो उनने कहा कि कैसे आदमी को आपने कार्यालय में बैठाया है। अजित वर्मा कह रहे थे कि मुंदर शर्मा जैसे घटिया आदमी चुनाव जीत पाए तो इंदिरा गांधी को तीन सौ सीट पर जीत मिलेगी।
शर्मा जी ने बुलवाकर पूछा अजित जी आप का कह रहे थे
ऊंचे पूरे कद वाले मुंदर शर्मा दबंग संपादक थे। बिहार के रहने वाले थे बोलने के लहजे में बिहारीपन था। सुबह शर्मा जी ने अजित वर्मा जी को घर बुलाया और सीधे पूछा कि काहे अजित जी आप भोपाल वाले पत्रकार से कहें थे कि मुंदर शर्मा जैसा घटिया आदमी चुनाव जीत गया तो इंदिरा गांधी को तीन सौ सीटें मिलेंगी तो का हम घटिया हैं। संयोग से मैं भी अजित वर्मा जी के साथ शर्मा जी के यहां गया था। अजित भाई ने कहा कि मैंने आपको घटिया छोडक़र बाकी सब कहा। अजित भाई बोले शर्मा जी आपको अपने चुनाव का महत्व मालूम होना चाहिए। आप मामूली लोगों से नहीं लड़ रहे हैं राजमोहन गांधी और शरद यादव जैसे दिग्गज उम्मीदवारों से लड़ रहे हैं। ये चुनाव इंदिरा जी के लिए भी प्रतिष्ठापूर्ण है। तब शर्मा जी गंभीर हुए और कहा कि अजित जी तो हल्की बात नहीं कर सकते।
जब इंदिरा गांधी ने कहा वाह मुंदरजी आप तो खूब जीते राजमोहन गांधी को हरा दिया
मुंदर शर्मा जब चुनाव जीत कर दिल्ली पहुँचे तो मध्यप्रदेश भवन में कतार में खड़े होकर प्रदेश के जीते कांग्रेस के सांसदों ने स्वागत किया। इस स्वागत के बाद शर्मा जी ने अजित वर्मा जी को फोन किया अरे अजित जी से कहा कि गजब हो गया इंदिरा जी ने सारे सांसदों में सिर्फ मुझसे ही बात की और बोलीं वाह मुंदरजी आप क्या खूब जीते आपने तो गांधी जी के पोते राजमोहन को हरा दिया मेरी तो प्रस्टेज जबलपुर में लगी थी। अजित जी आप सही कह रहे थे।
शर्मा जी जैसी कामयाबी किसी को नहीं मिली
मुंदर शर्मा संपादक का दायित्व निभाते हुए जबलपुर के महापौर बन गये। महापौर रहते हुए जबलपुर के सांसद भी बन गए और मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने शर्मा जी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बनवा लिया। इतनी जल्दी ताबड़तोड़ तरीके से कामयाबी वे ही पा सके। लेकिन यह सब उन्हें कुछ समय नसीब हुआ और शर्मा का निधन हो गया। 1982 में शर्मा जी के निधन के बाद उपचुनाव भी हुआ। जिसमें भाजपा के बाबूराव परांजपे जीते थे।
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