राजेन्द्र चंद्रकांत राय
सेठ गोविंद दास 22 वर्ष तक लगातार सांसद रहे
जबलपुर जय लोक देश में पहले आम चुनाव का समय आया। एक अनोखा समय, जब आम आदमी को ही अपना राजा चुनना था। ऐसा राजा, जो राजवंश के उत्तराधिकार से राजा नहीं बनने वाला था, बल्कि जनता के अभिमत से उसे भारत जैसे विशाल, विराट और महान देश का प्रधान बनना था।
स्वाधीनता का उत्साह था, लोकतंत्र की उमंग थी। हर वयस्क नागरिक के पास एक वोट था। अमीर-गरीब का फर्क न था। राजाओं-नवाबों के मत का मूल्य जितना था, उतना ही सबसे निर्धन और कमजोर आदमी के मत का भी मूल्य था। यह सब भारतीय समाज, राजनीति और मनुष्य के जीवन में घटने वाली अनोखी घटनाएं थीं।
पहले आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटों पर विजय पाई थी। उसे कुल 37,13, 537 वोट मिले थे, जो कि 51.63 प्रतिशत मत थे। 2 सीटें निद्रलीय प्रत्याशियों ने जीती थीं। कुल 23 निर्दलीय उम्मीदवार लड़े थे, जिनको कुल वोट 8,88,407 मिले थे और वोट प्रतिशत था, 11.93। भारतीय जनसंघ ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ कर 3,55,356 वोट हासिल किए थे, जो कि 4.94 प्रतिशत होते थे। उसका कोई भी प्रत्याशी नहीं जीता था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदु महासभा ने एक-एक प्रत्याशी खड़ा किया था और दोनों ही दलों को एक भी सीट नहीं मिली थी। उन्हें क्रमश: 29422 यानी 0.41 प्रतिशत और 22285 यानी 0.31 प्रतिशत मत ही मिले थे। केएमपीपी ने 9 उम्मीदवार उतारे थे और 451749 मत यानी 6.28 प्रतिशत वोट पाए थे, पर विजय एक सीट पर भी नहीं मिली थी। समाजवादी पार्टी ने 20 सीटों पर लडक़र 877392 यानी 12.20 प्रतिशत मत हासिल किए थे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीती थी।
देश के पहले आम चुनाव यानी साल 1951 में जबलपुर में तीन संसदीय सीटें हुआ करती थीं। इन्हें ट्विन्स अर्थात जुड़वा सीट कहा जाता था। पहली सीट का नाम हुआ, जबलपुर उत्तर। इसमें एक ही सीट थी। दूसरी सीट कही जाती थी, जबलपुर दक्षिण, इसमें मंडला भी शामिल था। इसमें दो सीटें थीं, एक सीट सामान्य और दूसरी आदिवासी।
जबलपुर उत्तर सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया को 78,923 मत मिले थे और वे विजयी हुए थे। दूसरे क्रम पर निर्दलीय उम्मीदवार रामदास को 47,661 मत मिले थे। भारतीय जनसंघ तीसरे क्रम पर थी। उसके प्रत्याशी विमलचंद्र बैनर्जी को 27,433 वोट मिले थे। समाजवादी पार्टी के गणेश प्रसाद चौथे क्रम पर रहे थे और उन्हें 22,897 मत ही मिले थे।
जबलपुर दक्षिण नाम वाली जुड़वा सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सामान्य सीट पर गोविंददास माहेश्वरी को और आदिवासी सीट पर मंगरु उनके को अपना प्रत्याशी बनाया था। उन्हें क्रमश: 2,12,914 और 1,81,123 मत मिले थे। दोनों ही विजयी हुए। तीसरे क्रम पर समाजवादी पार्टी के कुसुम सिंह रहे, उन्हें 78,248 मत मिले थे। इसी पार्टी के सवाईमल ओसवाल को 52,023 मत मिल पाए थे। पाँचवे क्रम पर निर्दलीय उमेशदत्त पाठक ने 45,155 मत पाए थे और छठवें क्रम पर रहने वाले आरआरपी के शंभुप्रसाद को 23,829 वोट ही मिले थे। इस तरह जबलपुर की तीनों सीटों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी।
दूसरा आम चुनाव 1957 में संपन्न हुआ। इस बार भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सेठ गोविंद दास ने 85,212 मत लेकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महेशदत्त चंद्रगोपाल को पराजित कर दिया था। उन्हें केवल 44,254 मत ही मिले थे। ये महेशदत्त चंद्रगोपाल असल में प्रो महेशदत्त मिश्र थे, जो खंडवा के रहने वाले थे और जबलपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग में प्राध्यापक हो गए थे। वे पहले कांग्रेस में ही थे और खंडवा के स्वाधीनता सेनानियों में उनका नाम शीर्ष पर है। वे महात्मा गाँधी के निजी सचिव रह चुके थे। वे होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के ओर से सांसद भी रह चुके थे।
जब कांग्रेस के अंदर ही समाजवादी विचारधारा वाले राजनेताओं ने समाजवादी दल का निर्माण कर लिया, तब मिश्र जी भी समाजवादी दल में चले गए थे।
1962 में होने वाले आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सेठ गोविंददास को 1,05,785 और जनसंध की ओर से मुकाबला करने उतरे जगन्नाथ प्रसाद द्विवेदी को 49,403 मत प्राप्त हुए थे। 1967 में भी सेठ गोविंददास ही सांसद चुने गए थे, उन्हें 1,39,427 और जनसंघ के एस चंद्र को 74,697 वोट हासिल हुए थे। 1971 के चुनाव में भी सेठ गोविंददास ही विजेता बने। उन्हें 1,39,170 मत और जनसंघ के बाबूराव परांजपे को 47,249 मत प्राप्त हुए थे।
इस तरह 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 1974 में अपनी मृत्यु होने तक कांग्रेस के सेठ गोविंद दास ही जबलपुर के सांसद बने रहे। उनकी स्थिति अजातशत्रु वाली स्थिति बन गई थी। वे मध्यप्रदेश में काँग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे। वे 22 सालों तक सांसद रहे। संसद की सेवा के 50 वर्ष पूरे होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उनका अभिनंदन किया गया था।
उनकी मृत्यु हो जाने के कारण 1974 के उप चुनाव में छात्रा नेता शरद यादव जबलपुर से लोकसभा सदस्य चुने गऐ थे। उनके और 1974 के संसदीय चुनाव के बारे में अगली बार विस्तार से रपट पढिय़े।