Download Our App

Follow us

Home » Uncategorized » श्री राम के बारे में पढ़े शानदार जानकारी का संग्रह– भाग-2

श्री राम के बारे में पढ़े शानदार जानकारी का संग्रह– भाग-2

राम का लक्ष्य आर्य सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखना

प्रशांत पोल
(जयलोक)। सृष्टि के पालनकर्ता, सर्वव्यापी नारायण ने निर्णय लिया है, रावण जैसी आसुरी शक्ति के निर्दालन के लिए, ईश्वाकु कुल के वंशज, राजा दशरथ के पुत्र के रूप में माध्यम बनने का..! राजा दशरथ इसी समय पुत्रकामेष्टि यज्ञ कर रहे हैं। ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में एक तेजस्वी प्राजापत्य पुरुष, राजा को पायस (खीर) देता है, राजा की तीन रानियों के लिए. तीनों साध्वी रानियां, इस पायस का प्रसाद के रूप में प्राशन करती है। कालांतर में तीन रानियों को चार पुत्र होते हैं। माता कौसल्या को श्रीराम के रूप में तेजस्वी पुत्र होता है। रानी सुमित्रा को लक्ष्मण और शत्रुघ्न यह यमल (जुड़वा) पुत्र होते हैं। कैकेई भरत को जन्म देती है। राजा दशरथ अत्यंत आनंदित है। कोशल जनपद को चार युवराज मिले हैं। अयोध्या में भव्यतम उत्सव हो रहा है। अयोध्या समवेत पूरे कोशल जनपद के नागरिक, अपने राजकुमारों का जन्मोत्सव मना रहे हैं। कालचक्र सीधा, सरल घूम रहा है।
चारों राजकुमार बड़े हो रहे हैं। उन्हें सभी प्रकार की शिक्षा, विद्वान शिक्षकों द्वारा दी जा रही है। सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण चल रहा है। प्रजा के लिए चलने वाले कार्य, नगर रचना, कोषागार की व्यवस्था, कर संग्रहण, न्याय दान आदि सभी विषयों में, ये चारों युवराज निपुण हो रहे हैं। इन सब में राम की अलग पहचान दिख रही है। बाकी तीनों भाई, श्रीराम को अत्यंत आदर के साथ सम्मान दे रहे हैं। उनकी हर एक बात को मान रहे हैं। श्रीराम सभी विषयों में सबसे आगे हैं। अपने सभी भाइयों की चिंता कर रहे हैं। अत्यंत मृदु स्वभाव, संयमित आचरण, बड़ों के प्रति, शिक्षकों के प्रति, ऋषि – मुनियों के प्रति अत्यधिक आदर, यह श्रीराम की विशेषता है। किंतु इन तीन भाइयों में, शत्रुघ्न के युग्म, लक्ष्मण, श्रीराम के प्रति विशेष अनुराग रखते हैं। श्रीराम इन्हें प्राण से भी प्रिय है। श्रीराम भी लक्ष्मण के बिना भोजन नहीं लेते हैं।
लक्ष्मणो लक्ष्मी सम्पन्नो बहि: प्राण इव अपरा: ।
न च तेन विना निद्राम् लभते पुरुषोत्तम: ॥30॥
(बालकांड / अठारहवा सर्ग)
कालचक्र घूम ही रहा है। इतिहास के पृष्ठ फडफ़ड़ाते हुए आगे बढ़ रहा हैं..
यह चारों राजकुमार अब यौवन में प्रवेश कर रहे हैं। सभी अस्त्र-शस्त्र शास्त्रों में यह निपुण हो गए हैं। विशेषत: श्रीराम और लक्ष्मण की धनुर्विद्या तथा शस्त्रास्त्रों का कौशल, सारे कोशल जनपद में चर्चा का विषय है। अयोध्या के नागरिक, श्रीराम की न्यायप्रियता की प्रशंसा कर रहे हैं।ऐसे समय, एक दिन राजा दशरथ के प्रात: कालीन सभा में सूचना आती है कि कुशिक वंशी, गाधी पुत्र, विश्वामित्र आए हैं तथा वे अवध नरेश राजा दशरथ से मिलना चाहते हैं। राजा दशरथ थोड़े असहज होते हैं। इसलिए नहीं की ऋषि विश्वामित्र के आने का उन्हें आनंद नहीं; वे असहज होते हैं, कारण विश्वामित्र यह कठोर व्रत का पालन करने वाले तपस्वी है। वे तेजस्वी है। तप:पुंज है. उन्हें देखकर राजा दशरथ प्रसन्न होते हैं, तथा उन्हें विधिपूर्वक अर्घ्य अर्पण करते हैं। दोनों एक दूसरे का कुशल – मंगल – क्षेम पूछते हैं। पश्चात अवध नरेश दशरथ, मुनिश्री से पूछते हैं, मुनिवर आपके आगमन से आज मेरा घर तीर्थ क्षेत्र हो गया। मैं मानता हूं कि आपके दर्शन मात्र से मुझे पुण्यक्षेत्रों की यात्रा करने का भाग्य मिला है। विदित कीजिए, आपके शुभागमन का उद्देश्य क्या है? राजा दशरथ की यह वाणी सुनकर, मुनिवर प्रसन्न होते हैं। वह कहते हैं, हे अवध नरेश, आपकी यह वाणी, आप जैसे चंडप्रतापी राजा को ही शोभा देती है। अब मैं मेरे आगमन का उद्देश्य विदित करता हूं।हे पुरुषप्रवर, मैं कुछ विशिष्ट ज्ञान एवं सिद्धि प्राप्ति हेतु एक अनुष्ठान कर रहा हूं। किंतु इस अनुष्ठान में कुछ दानवी शक्तियां विघ्न डाल रही है। विशेषत: दो राक्षस, मेरे अनुष्ठान को बंद करा रहे हैं। वह हैं – मारीच और सुबाहू। यह दोनों बलवान और शिक्षित भी है। किंतु मेरा अनुष्ठान पूर्ण होने में बाधक बन रहे हैं।
व्रते मे बहुश: चीर्णे समाप्त्याम् राक्षसाविमौ ।
मारीच: च सुबाहु: च वीर्यवन्तौ सुशिक्षितौ ॥5॥
(बालकांड / उन्नीसवां सर्ग)
हे राजन, इन राक्षसों ने मेरी यज्ञ वेदी पर रक्त और मांस की वर्षा कर दी है। इस कारण मेरा सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया। अत: मैं निरुत्साही होकर आपके पास आया हूं। राजन, यह दोनों राक्षस, आतंक के पुरोधा, रावण के क्षत्रप है। पूरे आर्यावर्त में आज इन दानवों का आतंक है। हे नृपश्रेष्ठ, मेरे अनुष्ठान को निर्विघ्नता से संपन्न कराने हेतु मैं आपके जेष्ठ पुत्र श्रीराम को मांगने आया हूं। हे भूपाल, मेरा विश्वास है, इन रघुनंदन के सिवा दूसरा कोई पुरुष, इन राक्षसों को मारने का साहस नहीं कर सकता। मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र के यह वचन सुनते ही राजा दशरथ कांप उठते हैं। रावण के ऐसे दुराचारी और कपटी दानवों के सामने मैं अपने युवा पुत्र को कैसे भेजूं?  राजा दशरथ संज्ञाशून्य (मूर्छित) हो जाते हैं। कुछ पलों में सचेत होने पर, अत्यंत विनम्रता से बोलते हैं,  हे महर्षि, मेरा कमलनयन राम तो अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। उसे मैं इन राक्षसों से युद्ध करने कैसे भेज सकता हूं?
ऊनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचन: ।
न युद्धयोग्यतामस्य पश्यामि सह राक्षसै: ॥ 2॥
(बालकांड / बीसवां सर्ग)
राजा दशरथ के मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र से प्रार्थना करते हैं कि उनके पास अक्षौहिणी सेना है। अत्यंत कुशल, शूरवीर सैनिक है, जो राक्षसों से लडऩे की क्षमता रखते हैं। इन्हें ले जाइए। आवश्यकता पड़े, तो मैं स्वयं आपके यज्ञ की रक्षा के लिए आ सकता हूं। किंतु राम को ले जाना उचित नहीं होगा।
राजा दशरथ के यह बोल सुनकर विश्वामित्र पुनश्च कहते हैं, महाराज, यह क्षत्रप उस राक्षसराज रावण के हैं, जो पुलस्त्य कुल में उत्पन्न हुआ है। वह निशाचर, संपूर्ण आर्यावर्त के निवासियों को अत्यंत कष्ट दे रहा है। यह महाबली दुष्टात्मा, स्वयं यज्ञ में विघ्न डालने को तुच्छ कार्य समझता है. इसलिए उसने मारीच और सुबाहु जैसे अपने क्षत्रपों को भेजा है।
पौलस्त्यवंशप्रभवो रावणो नाम राक्षस: ।
स ब्रह्मणा दत्तवरस्त्रैलोक्यं बाधते भृशम् ॥16॥
(बालकांड / बीसवां सर्ग)
मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र के यह वचन सुनकर राजा दशरथ दुखी हो जाते हैं। वे कहते हैं, रावण के ऐसे क्षत्रपों के सामने, शायद मैं भी नहीं टिक सकूंगा, तो मेरा पुत्र कैसा सामना कर सकेगा?यह सुनना था, कि विश्वामित्र कुपित हो उठते हैं। स्थिति को संभालते हुए धीर चित्त महर्षि वशिष्ठ, राजा को समझाते हैं कि अयोध्या के बाहर इन दानवी शक्तियों का आतंक है। ऋषि – मुनि भी अपना यज्ञ – याग, अनुष्ठान पूर्ण करने में असमर्थ है, तो सामान्य जनों की क्या स्थिति होगी, यह हम समझ सकते हैं। इस आतंक से हमें विश्वामित्र जैसे मुनिश्रेष्ठ को बचाना होगा। इसलिए श्रीराम का जाना उचित होगा। श्रीराम बलशाली है तथा सारी विद्याओं मे तथा विधाओं में निपुण है। अत: श्रीराम को भेजना ठीक रहेगा।वशिष्ठ मुनि की वाणी सुनकर राजा दशरथ, श्रीराम को भेजने तैयार होते हैं। साथ में लक्ष्मण जाने में रुचि दिखाते हैं। अत: श्रीराम – लक्ष्मण यह विश्वामित्र मुनि के साथ जाएंगे, यह निश्चित होता है।राजा दशरथ अत्यंत प्रसन्नचित होकर श्री राम लक्ष्मण को विश्वामित्र को सौंप देते हैं। अब यह तीनों, अन्य ऋषि मुनियों के साथ यज्ञ स्थल की ओर रवाना होते हैं।

Jai Lok
Author: Jai Lok

Leave a Comment

RELATED LATEST NEWS

Home » Uncategorized » श्री राम के बारे में पढ़े शानदार जानकारी का संग्रह– भाग-2
best news portal development company in india

Top Headlines

Live Cricket