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लोकनायक श्री राम के बारे में अद्भुत जानकारियों की श्रृंखला भाग -1

आर्यावर्त की पवित्र नगरी अयोध्या
लोकनायक श्रीराम – 1
प्रशांत पोल
(जयलोक)। कालचक्र की गति तेज है. वह घूम रहा है. घूमते – घूमते पीछे जा रहा है. बहुत पीछे. इतिहास के पृष्ठ फडफ़ड़ाते हुए हमें ले चलते हैं त्रेतायुग में. कई हजार वर्ष पीछे..!
इस त्रेतायुग में पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा भूभाग है, जिसे आर्यावर्त नाम से जाना जा रहा है. यह प्रगत मानवी संस्कृति का क्षेत्र है. समृद्ध देश है. उच्चतम एवं उदात्त मानवी भाव-भावनाओं से समाज प्रेरित है. समाज में ज्ञान की लालसा है. अध्ययनशील विद्यार्थी है. नए-नए ग्रंथ लिखे जा रहे हैं. उन्नत ऐसी ऋषि संस्कृति का समाज पर प्रभाव है. यज्ञ – याग हो रहे हैं. वायुमंडल और समाज जीवन, दोनों में शुद्धता की सतत प्रक्रिया चल रही है. देवाधिदेव, पृथ्वी पर स्थित इस आर्यावर्त को निहार रहे हैं. इस पर विचरण करने की आकांक्षा रख रहे हैं.
इस आर्यावर्त में, सरयू नदी के किनारे बसा हुआ एक बहुत बड़ा जनपद है, जो कोशल नाम से विख्यात है. यह समृद्ध है. धन-धान्य से सुखी है. आनंदी है.
कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान्।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान् ॥5॥
(वाल्मीकि रामायण / बालकांड / पांचवा सर्ग) इस जनपद की राजधानी है – अयोध्या. समूचे आर्यावर्त में विख्यात है. अयोध्या, जहां युद्ध नहीं होता. श्रेष्ठतम नगरी, जिसे स्वयं मनु महाराज ने बनाया और बसाया है.
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता ।
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ॥6॥
(बालकांड / पांचवा सर्ग)
यह नगरी अति विशाल है. भव्य है. 12 योजन (अर्थात 150 किलोमीटर) लंबी है और 3 योजन (अर्थात 38 किलोमीटर) चौड़ी है. इस नगरी में विस्तीर्ण राजमार्ग है. लता – वृक्ष, फल – फूलों से यह नगरी सुशोभित है. इस नगरी के चारों ओर गहरा खंदक खुदा हुआ है. सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था है. इस नगरी के लोग उद्यमी हैं. कला प्रेमी है. नृत्य – गान – संगीत – नाटक में परिपूर्ण है. सभी नागरिक धर्मशील, संयमी, सदा प्रसन्न रहने वाले तथा चारित्र्यवान है.ऐसी पवित्र और संपन्न नगरी जिसकी राजधानी है, ऐसे कोशल जनपद पर, महा पराक्रमी राजा दशरथ राज्य कर रहे हैं. जिस प्रकार आकाशपट पर, सारे नक्षत्रलोक में चंद्रमा राज करता है, उसी प्रकार, शीतल, सुखद शासन राजा दशरथ का है.
तां पुरीं स महातेजा राजा दशरथो महान् ।
शशास शमितामित्रो नक्षत्राणीव चन्द्रमा: ॥27॥
(बालकांड / छठवा सर्ग)
चंडप्रतापी राजा दशरथ, अपने अष्टप्रधानों के साथ लोक कल्याणकारी राज्य चला रहे हैं. उनके सभी आठो मंत्री यह उच्च गुणों से और शुद्ध विचारों से ओतप्रोत है. यह मंत्री है – धृष्टि, जयंत, विजय, सौराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप, धर्मपाल और सुमंत्र. इनमें, सुमंत्र यह अर्थशास्त्र के ज्ञाता है तथा राज्यकोषीय व्यवहार देख रहे हैं. यह सारे मंत्री, एक विचार से, देश हित के लिए प्रेरित है. यह सभी विनय संपन्न है. शस्त्र विद्या के ज्ञाता है. सुदृढ़ और पराक्रमी है. इनके सिवा सुयज्ञ, जाबालि, कश्यप, गौतम, दीर्घायु, मार्कंडेय और कात्यायन यह ब्रह्मर्षि भी राजा दशरथ के मंत्री है. ऐसे मंत्रियों के साथ, गुणवान राजा दशरथ, कोशल का शासन कर रहे हैं.
ईदृशैस्तैरमात्यैश्च राजा दशरथोऽनघ: ।
उपपन्नो गुणोपेतैरन्वशासद् वसुन्धराम् ॥20॥
(बालकांड / बीसवां सर्ग)
किंतु आर्यावर्त में सभी कुछ ठीक नहीं चल रहा है. अयोध्या तो सुरक्षित है. किंतु अयोध्या के बाहर, न केवल कोशल जनपद में, वरन् समूचे आर्यावर्त में, एक दहशत की काली छाया छाई हुई है. सज्जन शक्ति भयभीत है. ऋषि, मुनियों को, ब्रह्मर्षियों को यज्ञ – याग करना भी कठिन हो रहा है. किसी भी शुभ कार्य में आसुरी शक्तियों के विघ्न डालने का भय लगातार बना हुआ है। इस दहशत का केंद्र बिंदु है – रावण. सुदूर दक्षिण में, सिंहल द्वीप अर्थात लंका का राजा. पुलस्त्य मुनि जैसे विद्वान ऋषि का पौत्र और वेदविद् विश्रवा का पुत्र. परम शिव भक्त. किंतु अन्यायी, क्रोधी और कपटी राजा. सज्जन शक्ति को कष्ट देने में आसुरी आनंद प्राप्त करने वाला. इस रावण ने सारे आर्यावर्त में अपने क्षत्रप बनाकर रखे हैं. यह सभी क्षत्रप दानवी प्रवृत्ति के, आसुरी वृत्ति के है. नागरिकों का उत्पीडऩ कर रहे हैं. उनसे धन की वसूली करते हैं. सामान्य नागरिकों का जीवन इन्होंने दूभर करके रख दिया है. पूरे आर्यावर्त की सज्जन शक्ति, रावण के इन आसुरी प्रवृत्ति के क्षत्रपों से भयभीत है. अत्यंत कष्ट में है.
यह सज्जन शक्ति प्रार्थना कर रही है, इस सृष्टि के रचयिता से, परमपिता परमेश्वर से, की रावण नाम का राक्षस, आपका कृपा प्रसाद पाकर, अपने असीम बल से हम लोगों को अत्यंत पीड़ा दे रहा है. कष्ट दे रहा है. हम में यह शक्ति नहीं है, कि हम इसे परास्त करें. अत: आप ही कुछ कीजिए.’
भगवंस्त्वत्प्रसादेन रावणो नाम राक्षस: ।
सर्वान् नो बाधते वीर्याच्छासितुं तं न शक्नुम: ॥6॥
(बालकांड / पंद्रहवा सर्ग)
देवलोक में सृष्टि के निर्माता, सृष्टि के पालनकर्ता, परमपिता परमेश्वर यह प्रार्थना सुन रहे हैं. वह पृथ्वी के पवित्र देश आर्यावर्त में रावण ने दस दिशाओं में मचाया हुआ उत्पात भी देख रहे हैं. रावण का आतंक, एक प्रकार से प्रत्यक्ष अनुभव भी कर रहे हैं. सज्जन शक्ति को हो रहे कष्ट भी देख रहे हैं.इन सब को देखते हुए. सृष्टि के रचयिता यह तय कर रहे हैं कि आर्यावर्त के नागरिकों को निर्भय होकर जीवन यापन करने के लिए रावण का विनाश अवश्यंभावी है.  किंतु यह विनाश किसी चमत्कार से नहीं होगा, ऐसा परमपिता परमेश्वर ने तय किया है. नरसिंह अवतार में चमत्कार आवश्यक था, कारण हिरण्यकशपू में ऐसी दानवी शक्ति निर्माण हुई थी, जिसे किसी सामान्य व्यक्ति के द्वारा नष्ट करना संभव नहीं था.
किंतु इस बार नहीं- इस बार कोई चमत्कार नहीं. यदि इस बार भी चमत्कार से रावण को नष्ट करते हैं, तो सज्जन शक्ति निष्क्रिय हो जाएगी. जब कभी समाज में आसुरी प्रवृत्ति जन्म लेगी, तब यह सज्जन शक्ति प्रतीक्षा करेगी परमपिता परमेश्वर के किसी अवतार की.
वह प्रत्यक्ष संघर्ष नहीं करेगी.यह उचित नहीं है. इस सज्जन शक्ति के आत्मविश्वास को जगाना होगा. उनमें यह विश्वास निर्माण करना होगा की सारी सज्जन शक्ति यदि एक होती है, संगठित होती है, तो किसी भी बलशाली दानवी शक्ति को परास्त कर सकती है. परमपिता परमेश्वर के अंश इसमें माध्यम बनेंगे.
किंतु सारा संघर्ष करेगी सज्जन शक्ति. बस्. तय हो गया. भगवान अवतार अवश्य लेंगे. किंतु किसी चमत्कार के बगैर. वे तो संगठित सज्जन शक्ति मे देवत्व का संचार करने का कार्य मात्र करेंगे. इसके लिए वे माध्यम बनेंगे, आर्यावर्त की पवित्र नगरी अयोध्या के चंडप्रतापी राजा दशरथ के पुत्र के रूप में।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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