धार्मिक स्थलों को पर्यटन से जोड़े लेकिन मूल स्वरूप की रक्षा करें
जबलपुर (जय लोक)
संस्कारधानी प्रवास पर पधारे अनंत श्री विभूषित द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज ने वर्तमान में देश की धार्मिक स्थिति और धार्मिक स्थलों को पर्यटन के साथ जोडक़र किये जा रहे प्रयासों पर दैनिक जयलोक से साक्षात्कार में अपनी बात रखी। इसके साथी महाराज श्री ने कहा कि धार्मिक स्थलों को पर्यटन के साथ जोडऩे से उस स्थान में भीड़ का होना तो प्रारंभ हुआ है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए की किसी प्रकार से प्राचीनता की हानि न हो। प्राचीन धरोहर के प्रति अर्थात पुरातत्वीय स्मारक के प्रति हमारा स्वाभाविक आकर्षण होता है। महाराजश्री ने कहा कि हम चाहेंगे की मूल शिल्पकला, वास्तु कला और मंदिरों की प्राचीनता की सुरक्षा करते हुए ही विकास कार्य होना चाहिए। धार्मिक स्थलों में बन रहे कॉरिडोर की स्वच्छता का तो हम सभी स्वागत करते हैं, करना भी चाहिए हमारे जो आकर्षण के केंद्र है उनके यथावत स्वरूप में विकृति नहीं आनी चाहिए।
राजनीति और धर्म
शंकराचार्य जी ने कहा कि जहां तक राजनीति और धर्म का संबंध है तो यह प्रत्यक्ष है की राजनीति और राजनीतिक जीवन से लाखों लोगों का साक्षात संबंध है। राजनीतिक व्यक्ति से लाखों लोग जुड़े रहते हैं। राजनीतिक व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का हो या हो जाए तो उसके अनुयाई और समर्थकों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है और उनका झुकाव भी धार्मिक कार्यों की ओर बढ़ जाता है। महाराज श्री ने आगे कहा कि नीतिकार चाणक्य ने कहां है कि देश के राजा को धार्मिक होना चाहिए, हमारे पिता और गुरु को सदाचारी होना चाहिए क्योंकि यही सनातन धर्म की कसौटी है।
स्कूल पाठ्यक्रम में धार्मिक ग्रंथों का समावेश होना चाहिए
वर्तमान में स्कूली पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा को शामिल करने के विषय पर महाराज श्री ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा केंद्रों में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाए इसके लिए भगवत गीता और रामचरित मानस के अंश एवं महाभारत का शांति पक्ष जिसमें नीति विशेष ज्ञान प्राप्त होता है इसको भी शामिल किया जाना चाहिए। महाराज श्री ने कहा कि ऐसे ग्रंथों का सहारा लेकर पाठ्यक्रम में समा पेश करना चाहिए कालखंड( पीरियड) इस विषय का होना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी धार्मिक व नैतिक सिद्धांतों की शिक्षा अभी से ग्रहण कर सके। महाराज श्री ने आगे कहा कि गुजरात और हरियाणा राज्य की सरकारों ने गीता का समावेश अपने स्कूली पाठ्यक्रम में करना प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए दोनों सरकारें आशीर्वाद की पात्र हैं।
महाराज श्री ने आगे कहा कि वर्तमान की शिक्षा पद्धति धनअर्जन को प्रमुख बिंदु बनाकर अध्ययन करा रही है। धनअर्जन जीवन यापन के लिए आवश्यक है और अध्ययन भी जरूरी है। लेकिन संस्कारों और संस्कृति का बोध भी अगर ग्रंथों के माध्यम से बड़े होते बच्चों के मस्तिष्क में समावेश हो जाएगा तो यह सनातन परंपरा के लिए और हिंदू धर्म की निरंतर प्रगति के लिए सार्थक कदम होगा। यदि हमारी संस्कृति का ज्ञान हमारे बालकों को नहीं होगा तो उनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होगा। बौद्धिक विकास के साथ बुद्धि में आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए।
