30 वर्ष पुरानी राइफलों में आयी नई जान
जबलपुर (जयलोक)
सीओडी की सुरक्षा में रखी एसएलआर राईफल अब उत्तराखंड की रक्षा करेंगी। तीस वर्ष पुरानी इन राईफलों को सीओडी जबलपुर ने उत्तराखंड पुलिस को सौंपी है। यह राइफल वर्ष 1988 से आर्मी के बेड़े से बाहर हुईं थी। जिनकी संख्या तीन हजार बताई जा रहीं हैं। 7.62 एमएम सेल्फ लोडेड राइफल (एसएलआर) की डिजाइन और मारक क्षमता की इसकी खासियत है। जनकारी के अनुसार तीस वर्षों से भी अधिक समय तक भारतीय सेना का मुख्य हथियार एसएलआर राइफल रही है।
भारतीय थल सेना द्वारा उत्तराखंड पुलिस को 3000 राइफलों की सौगात- 7.62 एम एम सेल्फ लोडेड राइफल (एसएलआर) 30 वर्षों से भी अधिक समय तक भारतीय सेना का प्राथमिक हथियार रहा था, लेकिन सन 1988 में इसे 5.56 एम एम इंसास राइफल द्वारा बदल दिया गया। हालांकि एसएलआर के डिजाइन और मारक क्षमता की विशेषता के कारण अभी भी इसकी उपयोगिता बरकरार है और राज्य पुलिस द्वारा इनकी मांग जारी है। भारतीय सेना की सराहनीय पहल के साथ ब्रिगेडियर वसंत कुमार, कमांडेंट सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो, जबलपुर और ऑर्डिनेंस डिपो जबलपुर के सभी कर्मचारियों ने ‘राष्ट्र प्रथम’ के लोकाचार को ध्यान में रखकर प्रभावी समाधान प्रदान करते हुए, उत्तराखंड पुलिस बल को तीन हजार 7.62 एम एम सेल्फ लोडेड राइफल (एसएलआर) को सौंपकर राज्य के सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए नवीनीकरण का अथक प्रयास किया। भारतीय सेना की इस सराहनीय पहल का उत्तराखंड पुलिस द्वारा स्वागत किया गया, जिससे विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण इलाकों और स्थितियों में उनकी परिचालन क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। यह संयुक्त प्रयास भारतीय सेना और सिविल प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल को प्रदर्शित करता है जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। सेंट्रल आर्डिनेंस डिपो, जबलपुर ने उत्तराखंड के अग्रिम पंक्ति के रक्षकों को मजबूत करने के लिए अप्रचलित सैन्य सम्पतियों का पुन: उपयोग करके एक उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत व स्थापित किया है।
उत्तराखंड पुलिस को मिली ताकत- भारतीय सेना की इस पहल से उत्तराखंड पुलिस को ताकत मिली है। उत्तराखंड पुलिस को राइफल मिल जाने से चुनौतीपूर्ण इलाकों और स्थितियों में उनकी परिचालन क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।