जबलपुर (जय लोक) । शहर की राजनीति में इन दिनों ऐसे कांग्रेसियों में भी बहुत अधिक दहशत व्याप्त है जो हाल फिलहाल में ही सत्ता पक्ष के रथ से उतरकर विपक्षी बन गए हैं। कई तो भ्रष्टाचार और अनियमिताओं के दलदल में फंसे हैं उन्हें भाजपा के नेताओं को ही बाप बनाने में अकलमंदी नजर आ रही है। जब सत्ता का हिस्सा थे तो मनमर्जी और बेधडक़ तरीके से अवैध कार्य कर लिए अब बड़ी मजबूरी है जो अवैध प्लाटिंग कर ली है ….अवैध कॉलोनी बसा ली है….और जब सत्ता में आए तो अपने थोड़े बहुत प्रभाव का असर दिखाकर नगर निगम से सडक़ बिजली का कुछ काम भी अवैध तरीके से कर लिया है। कुछ बड़े मगरमच्छ थे जिन्होंने माईनिंग के काम में हाथ आजमाया और गलत सही जैसा समझ में आया दबाकर पैसा भी कमाया।
अब सत्ता के रथ की सवारी छूट गई है और विपक्षी बन कर सत्ता धारियों के निशाने पर आ गए हैं। आलम यह है कि नेतागिरी तो दूर जनता ने जिस काम के लिए चुनकर भेजा है वह काम तक ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। जानकारों की माने तो ऐसे नेता ना तो नगर निगम में नजर आ रहे हैं और ना ही पार्टी द्वारा सडक़ों पर आयोजित किए जाने वाले विरोध प्रदर्शन, धरना प्रदर्शन, यहां तक कि ज्ञापन सौंपने तक नहीं जाते हैं।
कांग्रेस के पदाधिकारी ऐसे नेताओं की मजबूरी को बहुत ही सहज अंदाज से दबी जुबान में बयां कर देते हैं कि हमारा फलाना फलाना साथी सत्ता पक्ष के फलाने नेता के निशाने पर है इसलिए उसने नेतागिरी और जिस काम के लिए निर्वाचित हुए हैं वह काम करना छोड़ दिया है। उन्हें डर है कि उनके द्वारा किए गए अवैध कार्यों के लिए अब उनके खिलाफ पुलिस में मामला भी दर्ज हो सकता है और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।
यह मानना है कि अब ऐसे ठगी किस्म की धोखेबाजी और अवैध कार्य करने वाले लोगों को कांग्रेस में लाना ही नहीं चाहिए था। यह मान भी लें कि चंदे की जरूरत रही इसलिए इन्हें पार्टी का हिस्सा बना लिया तो इन ऐसे गलत तरीके से पैसे की उगाही करने वाले खुद को व्यापारी समझने वाले लोगों को टिकट देने की कांग्रेस की कौन सी मजबूरी हो गई थी।
टिकट वितरण में हुई गलती के कारण ही आज कांग्रेस को कहीं ना कहीं अपनी इन कमजोर कडिय़ों के कारण नुकसान भुगतना पड़ रहा है। इनके कारनामों का पूरा काला चि_ा हर बड़े नेता के पास उपलब्ध है यहां तक की नगर सत्ता भी उनके सभी प्रकार के काले कारनामों से भली-भांति परिचित है।
अब तो बस इस बात का इंतजार किया जा रहा है कि कब इनके खिलाफ गोपनीय तरीके से चल रही जांच और कार्यवाही खुलकर सामने आएगी और इन्हें अपनी अवैध हरकतों के लिए पुलिस के समक्ष पेश होकर जेल जाने तक की स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
धंधा भी सीधे साधे तरीके से किया होता तो कोई दबाव की बात आती ही नहीं लेकिन जब अवैध कमाई के लिए अवैध तरीके अपनाए गए तो यह तो होना ही था और एक न एक दिन यह बात सामने खड़ी होनी ही थी कि अब धंधा बचाए या नेतागिरी।