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अब वास्तविक मुद्दों पर चुनाव परिणाम आएंगे विश्लेषण

विश्लेष
चैतन्य भट्ट
2024 के लोकसभा चुनाव ने अपने आप में नया ट्रेंड सामने ला दिया है। भारतीय जनता पार्टी जो पिछले लंबे अरसे से इस बार 400 पार का नारा लगा रही थी उस नारे की हवा मतदाताओं ने एक ही झटके में निकाल दी, न केवल भारतीय जनता पार्टी को मात्र दो सौ इकतालीस सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया गया बल्कि मतदान के तत्काल बाद शुरू हुए एग्जिट पोलों की भी पोल मतदाताओं में खोल दी। विभिन्न एजेंसियों द्वारा जो एग्जिट पोल किए जा रहे थे उसमें भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए को साढ़े तीन सौ से चार सौ तक की सीटें देने की बात कही जा रही थी और इंडिया गठबंधन को सवा सौ से डेढ़ सौ में सीमित किया जा रहा था लेकिन जब मतदान के बाद मतों की गिनती शुरू हुई तब किसी को इस बात पर भरोसा ही नहीं हुआ कि इंडिया गठबंधन और कांग्रेस इतनी तेजी से आगे बढ़ेगी, जो कांग्रेस पिछली बार 44 सीटों तक सीमित कर रह गई थी उसने इस बार 99 का फिगर छू लिया जो दुगने से भी ज्यादा होता है ।
यह माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है और यह सही भी है क्योंकि 80 लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश में है जिस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का महिमा मंडन किया जा रहा था और ये बताया जा रहा था कि उन्होंने तमाम माफियाओं को खत्म कर दिया और जिस तरह का सुशासन उन्होंने दिया है उस को लेकर प्रदेश की जनता बेहद खुश है लेकिन जो परिणाम आए वे न केवल आश्चर्यचकित कर देने वाले थे बल्कि इस बात को भी इंगित कर रहे थे कि योगी आदित्यनाथ के राज में एक विशेष वर्ग को जिस तरह से टारगेट किया गया उसकी नाराजगी भारतीय जनता पार्टी को भोगना पड़ी।  मध्य प्रदेश निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के लिए एक संजीवनी साबित हुआ। वैसे भी यह माना जा रहा था कि पिछले लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को 29 में से 28 सीटें मिली थी और इस बार 29 का लक्ष्य भारतीय जनता पार्टी लेकर चल रही थी। राजनीतिक पंडित और सर्वे ये जरूर बतला रहे थे कि इस बार कांग्रेस तीन या चार सीटें प्राप्त कर लेगी जिसमें राजगढ़, छिंदवाड़ा, रतलाम, मंडला और बालाघाट शामिल थी लेकिन जो परिणाम आए उसने इन तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमान और कांग्रेस की आशाओं पर पानी फेर दिया।
वहीं दूसरी तरफ  राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को अपने वरिष्ठ नेताओं के प्रति बेरुखी के चलते नुकसान उठाना पड़ा। इस लोक सभा चुनाव में ऐसे बहुत से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को बहुमत से दूर कर दिया जिसकी मीमांसा करना आवश्यक है।  सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी ने जो गलती की थी वो यह थी चार सौ पार का नारा देना। मतदाता को यह लगा कि भारतीय जनता पार्टी कैसे अपने आप को चार सौ पार का नारा देकर अपने आप को विजयी घोषित कर रही है क्या उसकी यानी मतदाता की कोई हैसियत नहीं है, क्या उसके मत की कोई कीमत नहीं दूसरी तरफ  पार्टी के लोगों को भी लगा कि मोदी मैजिक और मोदी के चेहरे पर अगर चार सौ पार हो रही है तो हमें मेहनत करने की जरूरत क्या है तो जो मेहनत कार्यकर्ताओं द्वारा की जानी चाहिए वह नहीं की गई।दूसरा बड़ा कारण मतदाताओं की उदासीनता के कारण हुआ कम मतदान भी बेहद मायने रखता है। मतदाता को लगने लगा है कि राजनेताओं का ना तो कोई भरोसा है न कोई सिद्धांत, ना शुचिता है ना पार्टी के प्रति कोई आस्था। अगर कोई मतदाता किसी पार्टी को या किसी नेता को मत देता है और वो नेता दूसरे ही दिन किसी दूसरे दल का दुपट्टा ओढ़ लेता है तो फिर उसके मत का अर्थ ही नहीं। एक बड़ा कारण इन दल बदलू नेताओं का भी रहा जिसके कारण मतदान कम हुआ और जब मतदान काम हुआ तो ऐसा माना जा रहा है कि यह मतदान भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में होने वाला था जो नहीं हो पाया।तीसरा प्रमुख कारण ये भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने जनता के वास्तविक मुद्दों को छोडक़र धार्मिक स्तर पर धु्रवीकरण करने की कोशिश की वो भी शायद इस देश के धर्मनिरपेक्ष मतदाता को अच्छा नहीं लगा। मंदिर मस्जिद, मंगलसूत्र, हिंदू मुसलमान, भैंस जैसे मुद्दों की बजाय यदि भारतीय जनता पार्टी विकास, महंगाई, बेरोजगारी पर अपना ध्यान केंद्रित करती तो शायद उसे ज्यादा फायदा होता लेकिन इन मुद्दों को इंडिया गठबंधन ने अपना लिया और और शुरू से ही इन मुद्दों को लेकर चलते रहे। जाहिर सी बात है कि जनता से जुड़े जो मुद्दे होते हैं वो जनता को और आम मतदाता को प्रभावित करते हैं शायद यही कारण है कि इंडिया गठबंधन दो सौ बतीस सीटों पर विजयी घोषित हो गई।अति आत्मविश्वास और अहंकार ने भी भारतीय जनता पार्टी को कहीं ना कहीं चोट पहुँचाई, विरोधियों के खिलाफ  लगातार की गई की कार्यवाहियों को भी आम जनता ने पसंद नहीं किया। दूसरी तरफ  इंडिया गठबंधन उनके इस बार चार सौ पार के नारे को संविधान को बदलने से जोडऩे में सफल हो गया। एक लोकतांत्रिक देश में यदि कोई सरकार संविधान को बदलने का प्रयास करती है जैसा कि विरोधी दलों में यह संदेश दिया उसे शायद जनता ने स्वीकार नहीं किया और तमाम सफाई के बावजूद भारतीय जनता पार्टी विरोधियों द्वारा गढ़े गए इस नेरेटिव को खत्म नहीं कर पाई।भारत एक विशाल देश है जिसमें हर जाति संप्रदाय के लोग वर्षों से एक साथ मिलजुल कर रह रहे हैं इस देश पर मुगलों ने भी राज किया, पुर्तगालियों ने भी ,अंग्रेजों ने भी राजपूतों ने मराठों ने भी। लेकिन यह देश अपनी एक लीक पर चलता रहा लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से हिंदुत्व और धर्म के धु्रवीकरण करने का प्रयास किया वह लगता है कि आम जनमानस को ठीक नहीं लगा। अब स्थितियां सरकार बनाने की है। 2019 में 303 सीटें पाकर भारतीय जनता पार्टी ने अपने हिसाब से सरकार चलाई लेकिन अब उसे अपने सहयोगियों की दया पर निर्भर रहना पड़ेगा और जब सहयोगियों का दबाव सरकार पर होता है तो बहुत से ऐसे काम सरकार को करना पड़ते हैं जो वह नहीं करना चाहती। आज ही खबर आई है कि चंद्रबाबू नायडू ने पाँच छह बड़े मंत्रालय की माँग की है इतना ही नहीं उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष का पद उनकी पार्टी को देने की बात भी कही है इसके बाद अब चिराग पासवान, नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी, अपना दल, रालोद, शिंदे की शिवसेना इन तमाम सहयोगी दलों की मांगों पर भारतीय जनता पार्टी को न केवल विचार करना पड़ेगा बल्कि उनकी मांगों को मानना भी पड़ेगा अन्यथा उनकी सरकार संकट में आ सकती है और ये इसलिए भी कहा जा सकता है की अटल बिहारी वाजपेई और नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली में जमीन आसमान का अंतर है। अटल बिहारी वाजपेई ने तमाम लोगों के साथ मिलकर सरकार चलाई लेकिन नरेंद्र मोदी के साथ दबाव की राजनीति चल पाए ये कहना बड़ा कठिन है क्योंकि उनका स्वभाव दूसरी तरह का है ऐसी परिस्थितियों में ये सरकार अगर बन भी जाती है अगर तो वह कितने दिन तक चल पाएगी यह भी एक बड़ा सवाल है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अब जनता के मुद्दों पर ही राजनीति करना और उन पर ध्यान देना ही तमाम राजनीतिक दलों के लिए जरूरी हो गया है वरना जो हश्र भारतीय जनता पार्टी का इस लोकसभा चुनाव में हुआ है उससे तमाम राजनीतिक दलों को सीख लेना जरूरी हो गया है।
Jai Lok
Author: Jai Lok

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