जबलपुर (जय लोक) । देश में पहली बार प्रारंभ हुये शैक्षणिक सत्र से पहले पुस्तक मेला और यूनिफॉर्म मेला आयोजित करने की मुहिम में जबलपुर ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कर लिया है। 5 जनवरी 2024 को जबलपुर जिले के कलेक्टर के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद दीपक सक्सेना के समक्ष जब शिक्षा माफिया की शिकायतें और करतूतें लगातार सामने आईं तो उन्होंने एक बड़ा निर्णय लेते हुए शिक्षा माफिया की कमर तोडऩे के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाई की। कार्यवाहियाँ भी ऐसी हुईं कि पूरे देश में इसकी सराहना हुई और मध्य प्रदेश सरकार ने इस कार्यवाही को अन्य जिलों में भी लागू करते हुए पुस्तक मेला यूनिफॉर्म मेला आयोजित करने के निर्देश दिये। पिछली बार यह मेल काफी देर से लगा था उसी दौरान लोगों ने यह शिकायत की थी कि इस प्रकार के मेले शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में लगने चाहिए ताकि इसका सही लाभ बच्चों को मिल पाए। पिछली बार प्रयोग के तौर पर इस मेले का आयोजन किया गया था लेकिन उसे मिली सफलता और लोगों का रुझान देखते हुए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने पुस्तक मेले के आयोजन को शासकीय कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बना दिया है। विगत वर्ष शिक्षा माफिया के रूप में कार्य करने वाले प्रकाशकों,स्कूल प्रबंधन और यूनिफॉर्म विक्रेताओं से जुड़ी हुई कई बातें जिला प्रशासन के समक्ष उजागर हुई थीं। इन बातों में एक प्रमुख बात यह भी थी कि जबलपुर जिले में विभिन्न स्कूलों में 263 किस्म की यूनिफॉर्म प्रचलन में पाई गई थीं। इनमें से कई स्कूल ऐसे हैं जिनमें तीन से चार यूनिफॉर्म तक का प्रावधान किया गया है। जिसका आर्थिक भार सीधे तौर पर अभिभावकों पर पड़ता था। जिला प्रशासन ने विगत वर्ष भी निजी स्कूलों से यह अपील कर समझाइए दी थी कि वह सामान्य रूप से इस दिशा में आगे जाकर निर्णय लें और एक या दो स्कूल ड्रेस ही बच्चों के लिए लागू करें।
आसानी से मिल सके कपड़ा हो सके सिलाई
जिला प्रशासन ने निजी स्कूलों के प्रबंधन से चर्चा के दौरान यह बात भी रखी थी कि वह इस प्रकार की यूनिफॉर्म को प्रचलन में लाए जिसका कपड़ा आसानी से खुले बाजार में उपलब्ध हो और जिसकी सिलाई भी आसानी से हो सके। हर स्कूल अपनी अलग यूनिफॉर्म से अपनी अलग पहचान बनाना चाहता है लेकिन यूनिफॉर्म ऐसी होनी चाहिए जो हर वर्ग के अभिभावकों के बजट में आ सके और उनके बच्चे उसका उपयोग कर सकें।
इस बार 20 मार्च से लेकर तकरीबन 5 अप्रैल तक आयोजित होने वाली पुस्तक मेले में यूनिफार्म मेला भी शामिल होगा। जबलपुर के अलावा आसपास के वेंडर से लेकर बड़े शहरों के यूनिफॉर्म निर्माता भी संभवत: पुस्तक मेले और यूनिफॉर्म मेले में भाग लेने के लिए आएंगे। इसका सबसे बड़ा लाभ अभिभावकों को मिलेगा क्योंकि जब पुस्तक विक्रेताओं के साथ-साथ यूनिफॉर्म विक्रेताओं के बीच में स्वस्थ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा होगी तो मेले में विक्रय होने वाली सामग्री की राशि न्यूनतम स्तर पर होगी।
शासन द्वारा लागू की गई शिक्षा नीति के तहत इस बात का उल्लेख पाया जाता है कि जो भी स्कूल यूनिफॉर्म लागू करता है वह इसे हर साल नहीं बदल सकता और कम से कम 3 साल तक उसे यही यूनिफॉर्म अपने बच्चों के लिए प्रचलन में रखनी होगी।
कितने में खरीदी कितने में बेची
मार्च में आयोजित होने वाले पुस्तक मेले और यूनिफॉर्म मेले में जिला प्रशासन एक मूल सिद्धांत के आधार पर विक्रय होने वाली हर वस्तु पर नजर रखेगा। सामान्य सा सिद्धांत यही है कि जो भी कॉपी किताब पुस्तक के सेट या यूनिफॉर्म वेंडर से खरीद कर स्कूल वाले स्वयं विक्रय करना चाहते हैं या करते हैं तो उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि उसने वह सामग्री कितने में खरीदी और वह कितने में बेच रहा है। बिना मुनाफे के साथ किया गया कार्य आपत्तिजनक नहीं है लेकिन मुनाफाखोरी के नियत से जो भी कार्य होगा उसे पर जिला प्रशासन कार्यवाही करेगा।
विधायक संजय पाठक द्वारा खरीदी गई हैं जमीनें, सहारा जमीन घोटाले में शिकायत का दायरा बढ़ा
