जबलपुर (जय लोक)
आज सुबह से जबलपुर की लचर बिजली व्यवस्था ने हजारों लाखों लोगों को परेशान कर दिया। भीषण गर्मी के मौसम में उमस भरी सुबह से ही कई बार बिजली ट्रिपिंग के कारण गोल हुई लाइट से आम आदमी के साथ-साथ व्यापारी विशेष तौर पर परेशान नजर आये। सबसे बड़ी समस्या इस बात की बनी की बार-बार झटके से बिजली जाने और आने के कारण कई लोगों के घरों और दुकानों के विद्युत उपकरण खराब हुए। अब सबसे बड़ा सवाल या खड़ा हो रहा है कि इन खराब बिजली के उपकरणों की भरपाई कौन करेगा? बिजली विभाग की लापरवाही से हजारों लाखों रुपए का नुकसान होने पर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
इसके पूर्व में भी कई व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में लगाए जाने वाले बड़े एलइडी टीवी, कूलर, पंखे आदि जल चुके हैं। कंप्यूटर के स्टेबलाइजर से लेकर मॉनिटर तक वोल्टेज के ओवर हो जाने से या झटके से लाइट आने-जाने के कारण खराब हो चुके हैं। आम आदमी को होने वाले इस नुकसान की भरपाई का जिम्मेदार किसे माना जाए और कौन इस नुकसान की भरपाई करने की जिम्मेदारी उठाए यह एक बड़ा सवाल बिजली विभाग के सामने है।
दूसरी ओर बारिश का मौसम लगभग सर पर आ चुका है। हर साल बिल्कुल आखिरी के दौर में मेंटेनेंस के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए का फंड निकलता है और हर साल वही कमियाँ सुधारने के नाम पर इस फंड का उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा होता है। अब इस स्थिति में गला दबाकर लोगों से पैसा वसूलने के तर्ज पर काम करने वाली प्राइवेट लिमिटेड बिजली कंपनियाँ आगे आकर अपनी गलतियों की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेेतीं।
मेंटेनेंस होता है तो फिर क्यों बार-बार होती है बिजली गोल
आम नागरिक और व्यापारी यह सवाल भी पूछ रहे हैं कि अगर लाखों करोड़ों रुपए हर साल मेंटेनेंस पर खर्च होते हैं उन्हीं बिंदुओं पर हर साल सुधार कार्य किया जाता है तो फिर बार-बार बिजली क्यों गोल होती है। इसका सीधा आशय तो यही होता है कि मेंटेनेंस के नाम पर सिर्फ पैसे का खेल किया जाता है। थोड़ी सी तेज हवा चलने पर पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है। तेज बारिश शुरू होते ही आधे से ज्यादा शहर कई बार तो पूरा शहर अंधकार में डूब जाता है। अगर मेंटेनेंस गुणवत्ता के साथ किया जा रहा है तो उसके परिणाम नजर क्यों नहीं आ रहे।
प्राइवेट कंपनी के लोग करते हैं गुंडे जैसा व्यवहार
यह बात भी बिल्कुल सत्य है कि प्राइवेट लिमिटेड बिजली कंपनियों के द्वारा आउटसोर्स पर रखे गए कर्मचारी का व्यवहार आम आदमी के प्रति पूर्ण रूप से गुंडों जैसा है। आम उपभोक्ता गरीब लोग अगर अपनी शिकायत लेकर जाते हैं तो उनके साथ यह आउटसोर्स के कर्मचारी गाली गलौज और मारपीट करने से भी नहीं चूक रहे हैं। विजयनगर डिवीजन और पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के कार्यालय इस प्रकार के कृत्यों के लिए बदनाम हो चुके हैं। जो घटनाक्रम विजयनगर डिवीजन के अंतर्गत हुआ उसमें कहीं ना कहीं अधिकारियों और आउटसोर्स के कर्मचारियों का गुंडा रूपी रवैया भी जिम्मेदार है। क्योंकि समस्या सिर्फ एक भाजपा के पार्षद की नहीं थी जबकि इस क्षेत्र के अंतर्गत रहने वाले दर्जनों आम लोगों की भी थी।
1912 की व्यवस्था फेल
विद्युत वितरण कंपनी 1912 शिकायत नंबर पर आम उपभोक्ताओं को परेशानी होने पर शिकायत करने के लिए प्रेरित कर रही है। लेकिन शिकायत सुनना और उसके निराकरण का यह सिस्टम पूरी तरह से फेल है। खुद एमपीईबी के वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात को समझ रहे हैं कि निजीकरण के इस दौर में विद्युत व्यवस्था कितने बुरे दौर से गुजर रही है। 1912 शिकायत केंद्र की इतनी लचर व्यवस्था है कि कई बार विद्युत मंडल के अधिकारियों की शिकायत पर सुनवाई भी घंटे के बाद होती है। यहाँ बैठे ऑपरेटर आम उपभोक्ताओं को ऐसे जवाब देते हैं जैसे कि वह उपभोक्ता से नहीं अपने नौकर से बात कर रहे हो। उपभोक्ताओं की संतुष्टि से संबंधित वार्तालाप का बड़ा अभाव नजर आता है।
जमीन पर नहीं उतरते बड़े अधिकारी
निजी और बिजली वितरण कंपनियों के एमडी, सीएमडी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी कभी भी जमीनी हकीकत देखने के लिए आकस्मिक छापेमारी शैली में अपने ही प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कार्यालय में नहीं जाते। कभी जाना होता भी है तो इतने ताम-झाम से जाते हैं कि सब कुछ हरा भरा नजर आ जाता है। आउटसोर्स के कर्मचारियों को गुंडों की तरह व्यवहार करने की छूट किसने दी है। आम उपभोक्ता को सुविधा देना विद्युत वितरण कंपनियों का मुख्य उद्देश्य है लेकिन यहाँ सुविधा के नाम पर गालियाँ बकी जा रही है।