चैतन्य भट्ट
कांग्रेस के अपने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी गुटबाजी से भारी हलाकान हैं कभी कोई बड़ा नेता कह देता है कि हमें बताया नहीं जाता कि क्या हो रहा है पार्टी में, कभी कोई कहता है कि सब अपनी मर्जी से चल रहा है। बेचारे जीतू पटवारी करें तो करें क्या, कितनी कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी प्रदेश में फिर से खड़ी हो जाए और एक बार फिर सत्ता में आ जाए। हार कर उनको एक मीटिंग में यह कहना पड़ा कि कांग्रेस में जो ‘गुटबाजी का कैंसर’ फैला हुआ है उसको खत्म करना होगा वरना हम खत्म हो जाएंगे बात तो बड़ी मार्के की की है पटवारी जी ने लेकिन शायद वे यह भूल गए कि तमाम डाक्टरों और वैज्ञानिकों की खोज के बावजूद अभी तक कैंसर का कोई इलाज सामने नहीं आया है। कीमो करवा लो, ऑपरेशन करवा लो, लेकिन कैंसर वो बीमारी है वह फैलती ही जाती है और अंत में कैंसर पीड़ित ईश्वर को प्यारा हो जाता है अब अगर पार्टी में ऐसी बीमारी हो गई हो तो फिर उसका इलाज कैसे होगा ये तो ना कोई डॉक्टर बता पाएगा ना कोई वैज्ञानिक। दरअसल पटवारी जी ने गुटबाजी को कैंसर के रूप में परिभाषित कर दिया उसके बदले अगर ये कह देते कि अपनी पार्टी में गुटबाजी की ‘खांसी सर्दी’ हो गई है तो उसका इलाज किया जा सकता था वैसे भी मौसम चेंज जब होता है तो अच्छे भले इंसान को खांसी सर्दी होती जाती है तो फिर यहां तो सरकार बदली थी खांसी सर्दी होना ही थी एलर्जी भी हो सकती थी लेकिन सबका इलाज संभव था लेकिन पटवारी जी ने ऐसी भयानक बीमारी का संबंध पार्टी में फैले कैंसर से जोड़ दिया जिसका कोई इलाज अभी तक तो नहीं आया है। हां अभी जरूर सुना है कि रशिया ऐसा कोई इंजेक्शन बना रहा है जो कैंसर को जड़ से खत्म कर देगा लेकिन ये इंजेक्शन कब बनेगा और कब बाजार में आएगा यह भी कहना मुश्किल है अपनी तो पटवारी जी को एक ही सलाह है कि एलोपैथी में तो बड़ा मुश्किल है कि कैंसर का कोई इलाज मिल जाए नेचुरोपैथी में, होम्योपैथी में, आयुर्वेद में इन सब में ढूंढो शायद ये कैंसर का इलाज कर सके लेकिन कैंसर के भी कई प्रकार होते हैं किसी को मुंह का कैंसर हो जाता है, तो किसी को पेट का, लेकिन आपकी पाटीज़् में तो एक नए टाइप का कैंसर है जिसका नाम है गुटबाजी अब अभी तक डाक्टरों ने जिन भी कैंसर के बारे में पढ़ा लिखा होगा उसका इलाज भी थोड़ा बहुत करने की कोशिश की होगी लेकिन ये जो नए टाइप का कैंसर है इसके बारे में तो अभी डाक्टरों को भी कोई जानकारी नहीं होगी। एक बात हम बताए देते हैं पटवारी जी कि अगर ये कैंसर कोई खत्म कर सकता है तो वो है आपका हाई कमान, यदि हाई कमान सोच ले कि पार्टी में गुटबाजी नहीं होगी तो किसी की औकात नहीं कि वह गुटबाजी कर सके लेकिन दिक्कत तो यही है कि ऊपर जो बैठे आपके नेता है वे किसी चीज में निर्णय ही नहीं लेते जैसा चल रहा है चलने दो और जब तक ऐसा होगा तब तक फिर पार्टी ऐसी ही चलती रहेगी आप लाख चिल्लाते रहो लेकिन गुटबाजी का कैंसर पार्टी में बरकरार रहेगा।
आठ मिनट ही दे दो
ब्रिटेन में एक नई शुरूआत हुई है जिसमें पुरुषों को आठ मिनट बोलने का मौका दिया जा रहा है जिसमें वे अपनी पूरी भड़ास निकाल सके और घुट घुट कर ना जिएं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि पुरुषों को आठ मिनट बोलने का मौका दिया जाएगा तो उनके अंदर आने वाला डिप्रेशन और भारीपन दूर होगा उनकी मानसिक सेहत सुधर जाएगी क्योंकि जब इंसान के भीतर का गुबार शब्दों के माध्यम से निकल जाता है तो फिर उसको अपने आप हल्कापन महसूस होने लगता है। अभी तक तो अपन यह मानते थे कि भारत में ही महिलाएं पुरुषों को नहीं बोलने देती बेचारे पुरुष जैसे ही बोलना शुरू करते हैं महिलाएं उनका मुंह बंद करके खुद शुरू हो जाती है लेकिन अपने को क्या मालूम था कि ये रोग पूरे विश्व में फैला हुआ है और क्यों ना फैले, महिलाएं तो ईश्वर ने ही बनाई है कुछ इंडिया में आ गई, कुछ अमेरिका चली गई कुछ ब्रिटेन में सैटिल हो गई तो उनकी बोलने की ताकत तो वैसे ही की वैसी ही है अब ऐसे में बेचारा पुरुष कैसे अपने मन की भड़ास निकाल सके इसलिए ब्रिटेन ने अपने यहां एक नई स्कीम शुरू की है जिसमें पुरुष आते हैं और आठ मिनट लगातार बोलकर अपने अंदर का जितना भी गुबार है वो निकाल देते हैं वैसे जिस तरह से महिलाएं पुरुषों को दबाती हैं उस हिसाब से पुरुषों को आठ मिनट नहीं आठ घंटे देना चाहिए क्योंकि 365 दिनों में से 364 दिन तो उनकी जुबान बंद ही रहती है एक दिन मान लो थोड़ा बहुत बोलने का मौका मिलता भी है तो उसमें भी फिर मीन मेक निकल जाते हैं तो कम से कम आठ घंटों से उसे इस बात का तो सुकून मिलेगा कि कम से कम चलो हमें आठ घंटे बोलने का मौका मिला ।भारत में भी बहुत जल्द यह स्कीम शुरू कर देनी चाहिए अपनी तो यही मांग है देखते हैं सरकार इस मांग को मानती है या नहीं वैसे आप किसी भी पुरुष से पूछ लोगे तो यही कहेगा कि भैया ये स्कीम बहुत जल्दी शुरू करवा दो कम से कम हम अपने अंदर के गुबार को तो बाहर कर पाएंगे
ममता का लफड़ा
अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री ‘ममता कुलकर्णी’ किन्नर अखाड़ा में ‘महामंडलेश्वर’ क्या बन गई पूरा किन्नर अखाड़ा दो भागों में बट गया, जिन लक्ष्मी नारायण ने त्रिपाठी ने ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की उपाधि दे दी थी उसको किन्नर अखाड़ा के संस्थापक अजय दास ने एकदम रिजेक्ट कर दिया और न केवल ममता कुलकर्णी बल्कि लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को भी किन्नर अखाड़े से बर्खास्त करने की घोषणा कर दी, इधर ये घोषणा हुई उधर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कह दिया कि अजय दास होता कौन है उसको तो हम लोग 2017 में ही किन्नर अखाड़ा से बर्खास्त कर चुके हैं। ममता का लफड़ा है ही ऐसा, न जाने कितने विवादों में वे रह चुकी हैं पता नहीं कहां से अचानक प्रकट हो गई और कुंभ में पहुंचकर किन्नर अखाड़े में जाकर महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त कर ली। पिछले कई वर्षों से में कहां थी, क्या कर रही थी, किसी को नहीं मालूम लेकिन वे कह रही है कि हम तो तपस्या कर रहे थे अब वो तपस्या कहां हो रही थी, कैसी तपस्या हो रही थी, इसका भी कोई उल्लेख अभी तक तो सामने नहीं आया है लेकिन कुल मिलाकर अच्छा खासा किन्नर अखाड़ा जो अभी तक एक था ममता बाई के चक्कर में दो फाड़ हो गया। एक तरफ ममता और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी है और उनके संगी साथी तो दूसरी तरफ अजय दास हैं उनका कहना है कि वे संस्थापक है अखाड़े के और उनका अधिकार है कि वे जिसे चाहे अखाड़े से निष्कासित कर सकते हैं लेकिन अब ममता के चक्कर में उनकी तक कुर्सी खतरे में आ गई है देखना ये है कि इस जंग में जीतता कौन है।
सुपर हिट ऑफ द वीक
श्रीमान जी और श्रीमती जी में झगड़ा हो गया गुस्से में श्रीमान जी घर से बाहर निकल गए रात में भूख लगने पर श्रीमती जी को फोन कर उन्होंने पूछा
‘खाने मे क्या है’
‘ज़हर’ श्रीमती जी ने उत्तर दिया
‘ठीक है मैं देर से आऊंगा, तुम खाकर सो जाना’। श्रीमान जी ने भी नहले पर दहला मार दिया।